
भारत में रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) की ओर बढ़ते झुकाव के चलते सोलर उत्पादों की मांग में तेज़ी से इज़ाफा हुआ है। खासतौर पर ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में सस्ते सोलर पैनल्स, सोलर लाइट्स और सोलर चार्जर जैसे उत्पाद लोगों के लिए एक सस्ता और सरल विकल्प बनते जा रहे हैं। हालांकि, इन सस्ते सोलर उत्पादों के बढ़ते उपयोग के साथ-साथ इससे जुड़ी कई गंभीर समस्याएं भी सामने आ रही हैं। कम गुणवत्ता, पर्यावरणीय खतरे और सोलर ई-वेस्ट (Solar E-waste) का बढ़ता संकट अब एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।
कम गुणवत्ता और सीमित जीवनकाल
बाजार में उपलब्ध अधिकांश सस्ते सोलर उत्पाद बेहद कम लागत में बेचे जाते हैं, लेकिन इनकी गुणवत्ता उतनी ही कमजोर होती है। अधिकतर ऐसे उपकरणों की वारंटी सिर्फ 3 से 6 महीने की होती है, जिसके बाद ये खराब होने लगते हैं। इनकी निर्माण सामग्री भी घटिया स्तर की होती है, जिससे इनका औसत जीवनकाल बहुत छोटा होता है। उपभोक्ता कम कीमत के लालच में इन उत्पादों को बार-बार खरीदते हैं, जिससे न सिर्फ उनकी जेब पर असर पड़ता है बल्कि यह एक अस्थायी समाधान बनकर रह जाता है।
बढ़ता सोलर कचरा और पर्यावरणीय खतरा
सोलर उत्पाद, विशेष रूप से खराब गुणवत्ता वाले उपकरण, जल्दी खराब होकर कबाड़ में तब्दील हो जाते हैं। यह कचरा सामान्य प्लास्टिक या इलेक्ट्रॉनिक कचरे से अधिक खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इनमें लेड, कैडमियम और अन्य भारी धातुएं होती हैं। इनका अगर सही तरीके से निस्तारण न किया जाए, तो ये पदार्थ मिट्टी और भूजल को प्रदूषित कर सकते हैं, जिससे पर्यावरण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ सकता है। सोलर ई-वेस्ट का यह संकट भारत जैसे विकासशील देश के लिए एक नई चुनौती बन चुका है।
अनौपचारिक क्षेत्र में सोलर कचरे का प्रबंधन
भारत में सोलर कचरे के प्रबंधन का अधिकांश हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र यानी गैर-सरकारी स्क्रैप डीलरों और कबाड़ी बाजार के हाथ में है। यहां न तो कोई नियमन होता है और न ही प्रशिक्षित मानव संसाधन होते हैं। इससे कचरे को सुरक्षित और वैज्ञानिक तरीके से नहीं निपटाया जा पाता। इसके अलावा, इस क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों की सेहत भी खतरे में पड़ती है क्योंकि वे बिना किसी सुरक्षा उपकरण के जहरीले तत्वों के संपर्क में आते हैं। यह न केवल पर्यावरण बल्कि सामाजिक स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है।
उपयोगकर्ताओं में जागरूकता की कमी
सोलर उत्पादों का उपयोग करने वाले अधिकांश उपभोक्ता इस बात से अनजान होते हैं कि जब उपकरण खराब हो जाए तो उसका निस्तारण किस प्रकार किया जाए। वे अक्सर इन उत्पादों को सामान्य घरेलू कचरे के साथ फेंक देते हैं, जिससे यह कचरा अन्य कचरे में मिलकर और अधिक नुकसानदायक बन जाता है। सरकार और संगठनों द्वारा इस विषय में अभी तक कोई ठोस जागरूकता अभियान नहीं चलाया गया है। जब तक उपभोक्ता खुद इसके प्रति सजग नहीं होंगे, तब तक इस समस्या का समाधान मुश्किल है।
सरकारी नीतियों और निगरानी की कमी
सोलर ई-वेस्ट के बढ़ते खतरे को नियंत्रित करने के लिए भारत में अभी तक कोई स्पष्ट और व्यापक नीति नहीं बनी है। ई-वेस्ट के सामान्य नियम तो मौजूद हैं, लेकिन सोलर कचरे के लिए अलग से कोई दिशा-निर्देश या निगरानी व्यवस्था नहीं है। इससे कंपनियां और वितरक भी अपनी जिम्मेदारी से बच निकलते हैं। यदि सरकार इस दिशा में सख्त नियम नहीं बनाती, तो आने वाले वर्षों में सोलर उत्पादों का यह कचरा देश के लिए एक नई पर्यावरणीय आपदा का रूप ले सकता है।