भारत में स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के मकसद से देश में “मेड इन इंडिया” सोलर मॉड्यूल के उत्पादन को जोर दिया जा रहा है। यह दिशा सौर ऊर्जा को अधिक सुलभ और पर्यावरण अनुकूल बनाने की रणनीति का एक अहम हिस्सा है। हालांकि, घरेलू निर्मित सोलर मॉड्यूल की कीमतें अक्सर विदेशी, खासकर चीनी मॉड्यूल की तुलना में महंगी होती हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा की राह चुनौतीपूर्ण बन जाती है।

घरेलू सोलर मॉड्यूल महंगे क्यों हैं?
चीन जैसे देशों की तुलना में भारत में सोलर मॉड्यूल की उत्पादन लागत अधिक होने के कई कारण हैं। इनमें कच्चे माल की महंगाई, उत्पादन तकनीक की सीमित उपलब्धता, और अपेक्षाकृत कम पैमाना शामिल हैं। चीन ने इस क्षेत्र में बड़े निवेश और उत्पादन क्षमता के विस्तार से लागत को कम कर दिया है। वहीं भारत अभी भी अपने सोलर विनिर्माण उद्योग को विकसित कर रहा है, जिसके कारण मूल्य अंतर बना रहता है।
सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाएं
भारत सरकार ने घरेलू सोलर उद्योग को मजबूत करने के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना जैसी कई पहलें शुरू की हैं। इस योजना के तहत निर्माताओं को आर्थिक प्रोत्साहन दिए जाते हैं ताकि वे अपने उत्पादन को बढ़ा सकें और नवीन तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित हो सकें। इसके परिणामस्वरूप भारत की सोलर मॉड्यूल उत्पादन क्षमता में तेजी का अनुमान है और लक्ष्य है कि अगले कुछ वर्षों में यह क्षमता 165 गीगावाट तक पहुंच जाए।
उद्योग की भूमिका और प्रगति
देश की प्रमुख कंपनियां सोलर ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। बड़े पैमाने पर उत्पादन तथा निर्यात करके वे भारत को वैश्विक सौर ऊर्जा मानचित्र पर स्थापित कर रही हैं। इससे न केवल घरेलू मांग पूरी हो रही है, बल्कि निर्यात के जरिये भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता भी बढ़ रही है। उत्पादन तकनीक और गुणवत्ता में निरंतर सुधार के चलते भारतीय सोलर मॉड्यूल की मांग भी बढ़ रही है।
भविष्य की उम्मीदें
सरकारी योजनाओं और उद्योग की प्रगति को देखते हुए यह उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वर्षों में भारत के ‘मेड इन इंडिया’ सोलर पैनल अधिक प्रतिस्पर्धी और किफायती होंगे। इससे घरेलू उत्पादकों को बाजार में अच्छा स्थान मिलेगा और वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चीन जैसे बड़े प्रतिद्वंद्वियों का सामना कर सकेंगे। इससे भारत की ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और आर्थिक स्थिरता को मजबूती मिलेगी।







