
सौर ऊर्जा (Solar Energy) के क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों ने एक ऐसी क्रांतिकारी तकनीक विकसित की है, जो भविष्य में हमारे घरों और उद्योगों को मिलने वाली बिजली का स्वरूप बदल देगी, शोधकर्ताओं ने पेरोव्स्काइट-सिलिकॉन टैंडम सोलर सेल की मदद से बिजली उत्पादन की क्षमता में 30% से अधिक की वृद्धि दर्ज की है।
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क्या है यह नई तकनीक?
पारंपरिक सोलर पैनल केवल सिलिकॉन से बने होते हैं, जिनकी सूर्य की रोशनी को बिजली में बदलने की एक सीमा होती है नई तकनीक में सिलिकॉन के ऊपर ‘पेरोव्स्काइट’ नामक एक विशेष अर्धचालक (semiconductor) की परत लगाई गई है, यह ‘टैंडम’ संरचना सूर्य के प्रकाश के अलग-अलग स्पेक्ट्रम (नीली और लाल रोशनी) को अधिक प्रभावी ढंग से सोख लेती है, जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है।
लेख की मुख्य विशेषताएं
- 30% से ज्यादा बिजली: वर्तमान में उपलब्ध कमर्शियल सोलर पैनलों की दक्षता आमतौर पर 20-25% होती है, लेकिन इस नए आविष्कार ने लैब टेस्ट में 33.9% तक की दक्षता हासिल कर ली है।
- कम धूप में भी फुल बैकअप: यह नई सेल तकनीक बादलों वाले मौसम, छाया या कम रोशनी (indoor light) में भी बिजली बनाने में सक्षम है। यह उन इलाकों के लिए गेम-चेंजर साबित होगी जहाँ धूप कम रहती है।
- सस्ती और टिकाऊ: वैज्ञानिकों ने एक नई ‘मॉलिक्यूलर लेयर’ (आणविक परत) भी विकसित की है, जो इन सेल्स को भीषण गर्मी में भी खराब होने से बचाती है, इससे सोलर पैनलों की लाइफ बढ़ जाएगी और लंबे समय में बिजली की लागत कम होगी।
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कब तक आएगा बाजार में?
विशेषज्ञों के अनुसार, यह तकनीक वर्तमान में व्यावसायिक उत्पादन के शुरुआती चरणों में है, दुनिया भर की बड़ी सौर ऊर्जा कंपनियाँ जैसे Tata Power और वैश्विक निर्माता अब इस तकनीक को बड़े पैमाने पर बाजार में उतारने की तैयारी कर रहे हैं। उम्मीद है कि अगले 2 से 3 वर्षों में ये उन्नत पैनल आम उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध होंगे।
यह खोज न केवल बिजली बिल को कम करने में मदद करेगी, बल्कि भारत जैसे देशों में अक्षय ऊर्जा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी मील का पत्थर साबित होगी।







