
भारत में रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy के क्षेत्र में तेज़ी से बढ़ते निवेश और तकनीकी विकास ने आम नागरिक से लेकर बड़े उद्योगपतियों तक को अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए वैकल्पिक स्रोतों की ओर आकर्षित किया है। खासतौर पर सौर ऊर्जा-Solar Energy और पवन ऊर्जा-Wind Energy दो ऐसे प्रमुख स्रोत हैं जो न सिर्फ पर्यावरण के लिए अनुकूल हैं बल्कि दीर्घकालिक आर्थिक लाभ भी प्रदान करते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि इनमें से किस विकल्प में निवेश करना ज़्यादा फायदेमंद है? चलिए इस लेख में दोनों के बीच तकनीकी, आर्थिक और व्यावहारिक तुलना के आधार पर इस सवाल का जवाब ढूंढते हैं।
सौर ऊर्जा: घरेलू उपयोग के लिए सरल और किफायती समाधान
भारत के अधिकतर हिस्सों में साल भर धूप प्रचुर मात्रा में मिलती है, जो सौर ऊर्जा को एक बेहद व्यावहारिक विकल्प बनाती है। सोलर पैनल्स की स्थापना बेहद आसान है और इसे घर की छतों, खेतों या खाली ज़मीन पर बिना अधिक तकनीकी जटिलता के लगाया जा सकता है।
एक बार पैनल लगाने के बाद इसकी रख-रखाव लागत बहुत कम होती है और यह लगभग 25-30 साल तक काम कर सकते हैं। भारत सरकार भी इस सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए विशेष सब्सिडी और स्कीमें उपलब्ध कराती है, जिससे शुरुआती लागत और भी कम हो जाती है। खास बात यह है कि सोलर पैनल्स शहरी और ग्रामीण, दोनों ही क्षेत्रों में घरेलू उपयोग के लिए बेहद उपयुक्त हैं।
हालांकि, सौर ऊर्जा पूरी तरह से सूर्य की उपलब्धता पर निर्भर होती है, जिससे इसका उत्पादन केवल दिन के समय और साफ मौसम में ही संभव होता है। रात के समय ऊर्जा उपयोग के लिए बैटरी स्टोरेज की आवश्यकता होती है, जो अतिरिक्त लागत को बढ़ा सकती है। लेकिन इसके बावजूद घरेलू स्तर पर यह एक सुलभ और सस्ता समाधान बना हुआ है।
पवन ऊर्जा: औद्योगिक उपयोग के लिए अधिक उपयुक्त लेकिन महंगी
पवन ऊर्जा-Wind Energy की बात करें तो यह बिजली उत्पादन की दृष्टि से कहीं अधिक कुशल तकनीक मानी जाती है। आधुनिक पवन टर्बाइन हवा की ऊर्जा का लगभग 45-50% बिजली में बदल सकते हैं, जो सौर पैनलों की तुलना में अधिक है। हवा की उपलब्धता के आधार पर ये टर्बाइन दिन और रात दोनों समय काम कर सकते हैं, जिससे स्थायी बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है।
लेकिन पवन ऊर्जा के साथ कई तकनीकी और भौगोलिक चुनौतियां भी जुड़ी होती हैं। टर्बाइनों की स्थापना के लिए बड़े और खुले क्षेत्रों की आवश्यकता होती है, जो सभी क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं होते। इसके अलावा, पवन ऊर्जा परियोजनाओं की शुरुआती लागत ₹1 से ₹6 करोड़ तक हो सकती है, जिससे यह घरेलू निवेशकों के लिए मुश्किल विकल्प बन जाता है।
शोर, मरम्मत और रख-रखाव की लागत भी पवन ऊर्जा की प्रमुख सीमाओं में से एक है। इसके बावजूद, बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन और औद्योगिक आवश्यकताओं को देखते हुए यह एक अत्यधिक प्रभावी विकल्प साबित हो सकता है।
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निवेश के नजरिए से कौन है ज़्यादा फायदेमंद?
यदि निवेश की दृष्टि से तुलना की जाए तो सौर ऊर्जा स्पष्ट रूप से एक सस्ता और व्यवहारिक विकल्प बनकर उभरती है। 10 किलोवाट की सोलर सिस्टम की लागत लगभग ₹70,000 तक होती है, जबकि पवन टर्बाइन लगाने के लिए करोड़ों की लागत आती है। इसके साथ ही, सौर ऊर्जा पर भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी इसे और भी आकर्षक बनाती है।
पवन ऊर्जा में निवेश अधिकतर उन कंपनियों या उद्योगों द्वारा किया जाता है जिनकी बिजली की आवश्यकता बहुत अधिक होती है और जो लंबे समय के लिए निवेश कर सकते हैं। वहीं, घरेलू उपभोक्ताओं और छोटे व्यवसायों के लिए सौर ऊर्जा ही सबसे अच्छा विकल्प है।
गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में क्या है उपयुक्त?
उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों, विशेष रूप से गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में सालभर अच्छी धूप मिलती है लेकिन हवा की निरंतरता अपेक्षाकृत कम है। ऐसे में यहां सौर ऊर्जा में निवेश करना अधिक लाभदायक और व्यावहारिक है। सरकारी स्कीमों के अंतर्गत सब्सिडी मिलने से यहां इस सेक्टर में निवेश करना और भी लाभप्रद बन जाता है।
हालांकि, यदि औद्योगिक परियोजनाओं या बड़े व्यवसायों की बात करें और यदि वे ऐसे क्षेत्र में स्थित हैं जहां हवा की गति स्थिर और मजबूत होती है, तो पवन ऊर्जा वहां एक अच्छा विकल्प हो सकता है। लेकिन इन दोनों के संयोजन से भी एक स्थायी और विश्वसनीय ऊर्जा व्यवस्था बनाई जा सकती है, जिसे हाइब्रिड सिस्टम कहा जाता है।