
घर की बिजली जरूरतों को पूरा करने और बिजली बिलों में भारी कटौती के लिए सोलर सिस्टम अपनाना आज के समय की सबसे स्मार्ट और स्थायी रणनीति बन गई है। खासकर जब रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) की मांग और सरकारी सब्सिडी बढ़ रही है, तब हर गृहस्वामी यह जानना चाहता है कि घर के बिजली बिल के आधार पर सोलर पैनल और बैटरी का आकार कैसे तय किया जाए।
भारत में सोलर एनर्जी तेजी से पांव पसार रही है और सरकार द्वारा rooftop solar योजना के तहत दी जा रही 40% तक की सब्सिडी इसे और आकर्षक बना रही है। लेकिन सोलर सिस्टम लगाने से पहले जरूरी है कि आप अपनी घरेलू बिजली खपत, सूरज की उपलब्धता और बैकअप जरूरतों के अनुसार इसकी पूरी योजना बनाएं।
मासिक बिजली खपत के आधार पर करें गणना की शुरुआत
सोलर सिस्टम की सही डिजाइनिंग का पहला कदम है अपने बिजली बिल से मासिक खपत का विश्लेषण करना। अधिकतर घरों में बिजली का मासिक उपयोग यूनिट या किलोवाट-घंटे (kWh) में दर्ज होता है। उदाहरण के लिए, यदि आपके घर की मासिक खपत 300 यूनिट है, तो दैनिक खपत होगी:
300 यूनिट ÷ 30 दिन = 10 किलोवाट-घंटे प्रतिदिन
यानी, आपके घर को हर दिन 10 kWh ऊर्जा की जरूरत है। इसी के आधार पर सोलर पैनल और बैटरी की क्षमता का निर्धारण किया जाएगा।
भारत की जलवायु को ध्यान में रख सोलर पैनल की क्षमता तय करें
भारत में औसतन प्रतिदिन 4 से 5 घंटे तीव्र सूर्यप्रकाश मिलता है, जिसे “पीक सन आवर्स” कहा जाता है। यदि आपके घर को प्रतिदिन 10 kWh ऊर्जा चाहिए, और प्रतिदिन औसतन 4 घंटे तीव्र रोशनी मिलती है, तो आपके लिए जरूरी सोलर पैनल क्षमता होगी:
10 kWh ÷ 4 घंटे = 2.5 kW
हालांकि, मौसम की अनियमितता और उपकरणों की दक्षता को ध्यान में रखते हुए, थोड़ी अतिरिक्त क्षमता रखना बेहतर होता है। इसलिए 3 kW का सोलर पैनल सिस्टम अधिक उपयुक्त रहेगा, जो सामान्य घरेलू जरूरतों को पूरा कर सकता है।
बैकअप की आवश्यकता हो तो बैटरी क्षमता भी तय करें
अगर आप पावर कट की स्थिति में बैकअप चाहते हैं, तो बैटरी लगाना जरूरी है। इसकी क्षमता इस तरह तय होती है:
यदि आपको 1 दिन के लिए बैकअप चाहिए और आपकी दैनिक जरूरत 10 kWh है, और आप लिथियम-आयन बैटरी (जिसकी डिस्चार्ज गहराई 90% यानी 0.9 होती है) का इस्तेमाल करते हैं, तो बैटरी क्षमता होगी:
10 kWh ÷ 0.9 = 11.1 kWh
यानी, एक दिन के लिए पूरी बैकअप सुविधा पाने हेतु 11.1 kWh की बैटरी की जरूरत होगी। यह प्रणाली उन इलाकों में खासतौर पर जरूरी है जहां बिजली कटौती सामान्य है।
अपनी आवश्यकताओं के अनुसार सोलर सिस्टम का प्रकार चुनें
बिजली की उपलब्धता और उपयोग के अनुसार सोलर सिस्टम के तीन प्रमुख प्रकार होते हैं:
ऑन-ग्रिड सिस्टम – यह तब उपयुक्त है जब आपके घर में नियमित रूप से ग्रिड बिजली उपलब्ध रहती है और आप बैकअप की जरूरत नहीं समझते। इसमें सोलर से बनी बिजली सीधे ग्रिड को भेजी जाती है और अतिरिक्त बिजली पर नेट मीटरिंग के जरिए क्रेडिट भी मिलता है।
ऑफ-ग्रिड सिस्टम – यदि आप ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जहां ग्रिड बिजली नहीं है या बहुत कम है, तो यह प्रणाली उपयुक्त है। इसमें बैटरी के साथ पूरा सिस्टम स्वतः संचालित होता है।
हाइब्रिड सिस्टम – यह सिस्टम उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो ग्रिड और बैटरी दोनों का उपयोग करना चाहते हैं। यह लचीला और स्मार्ट विकल्प है जो हर परिस्थिति में कार्य करता है।
लागत का आकलन और सरकार की सब्सिडी
भारत में एक सामान्य ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम की लागत ₹50,000 से ₹60,000 प्रति kW के बीच होती है, जबकि ऑफ-ग्रिड सिस्टम की लागत लगभग ₹1 लाख प्रति kW तक जाती है, क्योंकि इसमें बैटरी और चार्ज कंट्रोलर जैसे अतिरिक्त उपकरण लगते हैं।
भारत सरकार की MNRE (Ministry of New and Renewable Energy) योजना के तहत 1 से 10 kW तक के सोलर सिस्टम पर 40% तक की सब्सिडी दी जा रही है, जिससे सोलर लगवाना और भी किफायती हो गया है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी और आवेदन प्रक्रिया के लिए https://solarrooftop.gov.in/ पर विजिट करें।
डिजिटल माध्यम से भी लें मदद
यदि आप इस पूरे सिस्टम की गणना को और बेहतर तरीके से समझना चाहते हैं तो विभिन्न यूट्यूब वीडियो भी उपलब्ध हैं, जहां सोलर पैनल, बैटरी और इन्वर्टर की गणना को आसान उदाहरणों के साथ समझाया गया है।