
भारत के पहाड़ी इलाकों में जलविद्युत-Hydropower परियोजनाओं के माध्यम से ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में नई इबारत लिखी जा रही है। हिमालयी और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों के गांव अब स्थानीय जल संसाधनों का उपयोग कर खुद बिजली उत्पन्न कर रहे हैं। इस पहल ने न केवल उनकी घरेलू और व्यावसायिक ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया है, बल्कि रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy के क्षेत्र में भारत की हिस्सेदारी को भी बढ़ावा दिया है। पहाड़ी गांवों की इस क्रांति ने स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन, पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास को एक नई दिशा दी है।
जलविद्युत परियोजनाएं: स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन की कुंजी
जलविद्युत परियोजनाएं पानी के प्रवाह से टरबाइनों को घुमाकर विद्युत उत्पादन करती हैं। टरबाइन की घूर्णन से उत्पन्न यांत्रिक ऊर्जा को जनरेटर के जरिये विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। यह प्रक्रिया जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर नहीं होती, जिससे कार्बन उत्सर्जन बेहद कम होता है। इस तरह हाइड्रोपावर संयंत्र दीर्घकालिक टिकाऊ विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं। भारत के पहाड़ी गांवों में इन परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन ने दिखाया है कि स्वच्छ ऊर्जा के सपने को जमीनी स्तर पर भी साकार किया जा सकता है।
मसूरी के ग्लोगी गांव में जलविद्युत की ऐतिहासिक शुरुआत
भारत में जलविद्युत विकास का इतिहास 1907 में मसूरी के ग्लोगी गांव से शुरू हुआ था। ग्लोगी जलविद्युत परियोजना, जो मसूरी और देहरादून क्षेत्रों के लिए बिजली का पहला स्रोत बनी, आज भी अपनी विरासत को संजोए हुए है। इस परियोजना ने न केवल विद्युत आपूर्ति का मार्ग प्रशस्त किया, बल्कि देशभर में जलविद्युत के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की भावना को भी जन्म दिया। ग्लोगी स्टेशन आज भी स्थानीय निवासियों के लिए ऊर्जा का एक भरोसेमंद स्रोत बना हुआ है।
मध्य प्रदेश में टोंस विद्युत परियोजना ने पेश किया जल प्रबंधन का आदर्श मॉडल
मध्य प्रदेश के रीवा जिले में स्थित टोंस विद्युत परियोजना ने एक अनूठी मिसाल कायम की है। यहां बिजली उत्पादन के बाद शेष जल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है। हनुमना और मऊगंज तहसीलों के पहाड़ी इलाकों में इस जल का पुनः उपयोग कर कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया गया है। इस दोहरे उपयोग से न केवल किसानों को फायदा पहुंचा है, बल्कि जल संरक्षण के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान मिला है। टोंस परियोजना इस बात का प्रमाण है कि सही योजना और प्रबंधन से ऊर्जा उत्पादन और जल संरक्षण दोनों लक्ष्यों को एक साथ साधा जा सकता है।
‘हाइड्रो हीरो’ के रूप में उभरते पहाड़ी गांव
भारत के पहाड़ी गांव अब ‘हाइड्रो हीरो’ के रूप में सामने आ रहे हैं। स्थानीय नदियों और धाराओं के सतत और जिम्मेदार उपयोग से इन गांवों ने ऊर्जा आत्मनिर्भरता का सपना साकार किया है। इन परियोजनाओं ने न केवल बिजली की उपलब्धता बढ़ाई है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूत किया है। रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हुए हैं और पलायन की दर में कमी आई है। हाइड्रोपावर परियोजनाएं स्थानीय लोगों के लिए न केवल ऊर्जा का स्रोत बनी हैं, बल्कि उनकी आजीविका का भी मजबूत आधार बन गई हैं।
चीन सीमा के नजदीक भारत की मेगा हाइड्रोपावर परियोजना की शुरुआत
भारत सरकार ने हाल ही में चीन सीमा के समीप एक मेगा हाइड्रोपावर परियोजना का शुभारंभ किया है। इस परियोजना पर पिछले दो दशकों से कार्य चल रहा था और अब यह परियोजना पूर्ण होने की दिशा में आगे बढ़ रही है। इस परियोजना से सीमावर्ती इलाकों में ऊर्जा आपूर्ति को सुदृढ़ किया जाएगा, जिससे रणनीतिक दृष्टि से भी भारत को मजबूती मिलेगी। यह पहल भारत की ऊर्जा सुरक्षा नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy के क्षेत्र में उसकी वैश्विक प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है।
भारत में जलविद्युत परियोजनाओं का भविष्य
जलविद्युत-Hydropower भारत के रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy मिशन का एक अहम स्तंभ बनता जा रहा है। सरकार की योजना है कि आने वाले वर्षों में जलविद्युत परियोजनाओं की संख्या और उत्पादन क्षमता को कई गुना बढ़ाया जाए। पहाड़ी गांवों के ये प्रेरणादायक उदाहरण दिखाते हैं कि यदि स्थानीय संसाधनों का सही और सतत उपयोग किया जाए, तो भारत स्वच्छ और सतत ऊर्जा भविष्य की ओर तेज गति से बढ़ सकता है। जलविद्युत परियोजनाएं देश के पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक विकास की धुरी बनने की ओर अग्रसर हैं।