
अमेरिका के नए टैक्स बिल (Tax Bill) की वजह से वैश्विक Renewable Energy सेक्टर में जबरदस्त उथल-पुथल मच गई है। विशेष रूप से सोलर और विंड एनर्जी कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट देखने को मिली है। अमेरिकी शेयर बाजार में एक ही कारोबारी सत्र में कुछ सोलर और विंड एनर्जी कंपनियों के स्टॉक्स में 37% तक की गिरावट दर्ज की गई है। इसका सीधा असर भारतीय बाजार और घरेलू Renewable Energy कंपनियों पर भी पड़ा है। वारी एनर्जीज (Waaree Energies) और प्रीमियर एनर्जीज (Premier Energies) जैसी प्रमुख भारतीय सोलर कंपनियों के शेयर 11% तक टूट गए हैं।
अमेरिकी टैक्स बिल का असर ग्लोबल Renewable Energy सेक्टर पर
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रस्तावित नए टैक्स बिल ने सोलर और विंड एनर्जी उद्योग को तगड़ा झटका दिया है। यह बिल क्लीन एनर्जी प्रोडक्शन पर मिलने वाले टैक्स क्रेडिट को सीमित करता है, जिससे इन कंपनियों की फाइनेंशियल प्लानिंग और भविष्य की परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं। टैक्स क्रेडिट में कटौती का सीधा मतलब है कि कंपनियों को अब अपनी लागत खुद वहन करनी होगी, जिससे उनकी लाभप्रदता पर गंभीर असर पड़ सकता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, इस बिल से Renewable Energy सेक्टर में निवेश की रफ्तार धीमी हो सकती है, खासकर अमेरिका जैसे बड़े बाजार में जहां सोलर और विंड एनर्जी कंपनियों की निर्भरता सब्सिडी और टैक्स इंसेंटिव्स पर रही है।
एक ही सत्र में 37% तक गिरे अमेरिकी सोलर कंपनियों के शेयर
इस नकारात्मक खबर के बाद अमेरिकी बाजार में सूचीबद्ध कई बड़ी सोलर कंपनियों जैसे First Solar, SunPower और NextEra Energy के शेयरों में बड़ी गिरावट देखने को मिली। First Solar के शेयर 33% तक टूटे, वहीं SunPower में करीब 37% की गिरावट दर्ज की गई। यह गिरावट इस बात का संकेत है कि निवेशक नए टैक्स ढांचे से चिंतित हैं और उन्होंने इस सेक्टर से अपने निवेश को निकालना शुरू कर दिया है।
भारतीय सोलर कंपनियों पर भी दिखा असर
अमेरिका में सोलर सेक्टर की इस गिरावट का असर घरेलू बाजार में भी साफ देखा गया। भारत की प्रमुख सोलर कंपनियां वारी एनर्जीज और प्रीमियर एनर्जीज के शेयरों में 11% तक की गिरावट आई। ये कंपनियां या तो अमेरिकी मार्केट में सीधे तौर पर कारोबार करती हैं या वहां के निवेश रुझानों से प्रभावित होती हैं। विश्लेषकों का मानना है कि यदि टैक्स इंसेंटिव्स की यह कटौती लंबे समय तक रही, तो इसका असर भारत में चल रहे IPO प्लान्स और फंडिंग साइकिल पर भी पड़ सकता है।
Renewable Energy के भविष्य पर सवाल
हालांकि Renewable Energy को लेकर वैश्विक स्तर पर समर्थन लगातार बना हुआ है, लेकिन इस तरह की नीतिगत अस्थिरता से निवेशकों का भरोसा डगमगा सकता है। अमेरिका जैसे बड़े बाजार में जब सरकार ही क्लीन एनर्जी को लेकर अपने स्टैंड में बदलाव लाती है, तो यह पूरी दुनिया के लिए एक संकेत होता है। भारत, जो कि अपने Renewable Energy लक्ष्यों को 2030 तक 500 GW तक बढ़ाने का इरादा रखता है, उसे भी इन घटनाओं से सीख लेनी चाहिए।
निवेशकों के लिए क्या है अगला कदम?
विशेषज्ञ निवेशकों को सलाह दे रहे हैं कि वे फिलहाल सोलर और विंड सेक्टर में निवेश से पहले पूरी तरह सतर्क रहें। जब तक अमेरिका में टैक्स बिल पूरी तरह स्पष्ट नहीं होता और कंपनियों की प्रतिक्रिया सामने नहीं आती, तब तक बाजार में अस्थिरता बनी रह सकती है। दूसरी ओर, कुछ निवेशक इस गिरावट को एक अवसर के रूप में भी देख रहे हैं, क्योंकि लंबे समय में Renewable Energy सेक्टर की मांग और संभावनाएं कम नहीं हुई हैं।
भारतीय सरकार की नीति कितनी प्रभावी?
इस घटनाक्रम के बीच यह सवाल उठता है कि क्या भारत की Renewable Energy नीति पर्याप्त रूप से स्थिर और निवेशकों के लिए आकर्षक है? भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में सोलर और विंड प्रोजेक्ट्स के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन घरेलू कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय बाजार की परिस्थितियों के प्रति भी सजग रहना होगा। साथ ही, यह समय है जब नीति निर्धारकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत की टैक्स और इंसेंटिव नीति वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिक सके।
तकनीकी क्षेत्र पर भी पड़ सकता है असर
सोलर कंपनियों के शेयर गिरने से सिर्फ निवेश ही नहीं, बल्कि तकनीकी विकास की रफ्तार पर भी असर पड़ सकता है। कई कंपनियां जो रिसर्च और इनोवेशन में लगी हुई थीं, अब अपने बजट में कटौती कर सकती हैं, जिससे भविष्य की टेक्नोलॉजी स्लो हो सकती है। यह स्थिति विशेष रूप से उन स्टार्टअप्स के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है जो अमेरिकी बाजार से वित्तपोषण की उम्मीद लगाए बैठे थे।