
अब सोलर पैनल रात में भी बिजली बना सकते हैं – यह खबर रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव की ओर इशारा करती है। जहां अब तक सोलर एनर्जी केवल दिन के उजाले पर निर्भर थी, वहीं अब वैज्ञानिकों ने ऐसी उन्नत तकनीकों को विकसित किया है जो रात के अंधेरे में भी विद्युत उत्पादन संभव बनाती हैं। इस नई दिशा में तीन प्रमुख तकनीकें सामने आई हैं: थर्मोरैडिएटिव डायोड, एंटी-सोलर पैनल और थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर। ये तकनीकें न केवल ऊर्जा उत्पादन को सतत बनाएंगी, बल्कि बिजली की कमी से जूझते क्षेत्रों के लिए भी नई उम्मीद बन सकती हैं।
थर्मोरैडिएटिव डायोड: जब धरती खुद बनेगी ऊर्जा का स्रोत
ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स (UNSW) के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित ‘थर्मोरैडिएटिव डायोड’ एक अनूठी खोज है, जो रात में पृथ्वी की सतह से निकलने वाली इंफ्रारेड रेडिएशन को पकड़कर उसे बिजली में बदलता है। पारंपरिक सोलर पैनल जहां सूर्य की किरणों को अवशोषित कर ऊर्जा बनाते हैं, वहीं यह डायोड पृथ्वी द्वारा दिनभर की गर्मी को रात में छोड़ने की प्रक्रिया को ऊर्जा में बदलने का कार्य करता है।
यह भी पढें-सोलर पैनल के लिए कौन सी बैटरी है सबसे बेस्ट? जानिए टॉप परफॉर्मिंग सोलर बैटरियों की लिस्ट
इस प्रणाली में तापमान में अंतर का उपयोग किया जाता है। जैसे-जैसे पृथ्वी ठंडी होती है, वह इंफ्रारेड रेडिएशन उत्सर्जित करती है, जिसे यह डायोड ग्रहण करता है और इलेक्ट्रिक करंट के रूप में परिवर्तित करता है। हालांकि, वर्तमान में इस तकनीक की उत्पादन क्षमता सीमित है, लेकिन वैज्ञानिक इसे अधिक दक्ष और उपयोगी बनाने के लिए अनुसंधान में जुटे हुए हैं।
एंटी-सोलर पैनल: परंपरा के विपरीत एक नई सोच
एंटी-सोलर पैनल तकनीक पारंपरिक सोलर पैनल की कार्यप्रणाली के उलट है। जहां सामान्य सोलर पैनल दिन में सूर्य की रोशनी से ऊर्जा पैदा करते हैं, वहीं एंटी-सोलर पैनल रात में वातावरण और पैनल की सतह के बीच के तापमान के अंतर का उपयोग करते हुए बिजली का निर्माण करते हैं।
जब रात में पृथ्वी की सतह धीरे-धीरे ठंडी होती है, तो वह अपनी ऊष्मा को अंतरिक्ष में छोड़ती है। इस प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाली रेडिएशन को एंटी-सोलर पैनल कैप्चर करता है और उसे ऊर्जा में बदल देता है। वर्तमान में इन पैनलों की क्षमता पारंपरिक पैनलों से कम है, लेकिन तकनीकी प्रगति के साथ इनकी उत्पादन दर में वृद्धि की संभावना बनी हुई है। विशेषकर उन इलाकों में जहां दिन की रोशनी कम होती है या बिजली की निरंतर आपूर्ति चुनौतीपूर्ण है, वहां यह तकनीक बेहद लाभकारी साबित हो सकती है।
थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर: तापमान में फर्क से निकलेगी ऊर्जा
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के इंजीनियरों ने एक और अभिनव तकनीक विकसित की है जो थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर के माध्यम से रात के समय भी ऊर्जा उत्पादन को संभव बनाती है। इस प्रणाली में पैनल की सतह और आसपास के वातावरण के बीच के तापमान में अंतर का उपयोग कर विद्युत धारा उत्पन्न की जाती है।
यह भी देखें-क्या सोलर पैनल रात में बिजली बनाते हैं? जानिए इसका पूरा सच और पीछे की साइंस!
यह सिस्टम सोलर पैनल्स के साथ जोड़ा जा सकता है, जिससे दिन के साथ-साथ रात में भी बिजली उत्पन्न हो सकेगी। इस तकनीक की विशेषता यह है कि इसे मौजूदा सोलर इन्फ्रास्ट्रक्चर में भी शामिल किया जा सकता है, जिससे कोई अतिरिक्त लागत या स्थान की जरूरत नहीं पड़ती। यद्यपि इसकी वर्तमान बिजली उत्पादन क्षमता सीमित है, लेकिन वैज्ञानिक इसे अधिक प्रभावशाली और व्यावसायिक रूप से सक्षम बनाने के लिए निरंतर प्रयोग कर रहे हैं।
भारत के लिए संभावनाओं से भरा अवसर
भारत में जहां तेजी से बढ़ती जनसंख्या के साथ बिजली की मांग भी प्रतिदिन बढ़ रही है, वहां ये नई तकनीकें बड़ी राहत बनकर सामने आ सकती हैं। खासतौर पर ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में, जहां बिजली की उपलब्धता अभी भी एक चुनौती है, वहां रात में भी बिजली उत्पादन करने वाले सोलर पैनल्स एक स्थायी समाधान दे सकते हैं।
भारत सरकार पहले से ही ‘राष्ट्रीय सौर मिशन’ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy को बढ़ावा दे रही है। अगर थर्मोरैडिएटिव डायोड, एंटी-सोलर पैनल और थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर जैसी तकनीकों को नीति निर्माताओं और उद्योग जगत का समर्थन मिलता है, तो भारत इस क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व हासिल कर सकता है।
ऊर्जा क्षेत्र में एक नई सुबह
यह स्पष्ट होता जा रहा है कि सोलर एनर्जी अब केवल सूरज की किरणों तक सीमित नहीं रहेगी। थर्मोरैडिएटिव डायोड, एंटी-सोलर पैनल और थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर जैसी तकनीकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि रात में भी ऊर्जा उत्पादन संभव है।
हालांकि अभी इनकी उत्पादन क्षमता सीमित है, लेकिन इन तकनीकों में चल रहे अनुसंधान और नवाचार निकट भविष्य में इन्हें अधिक सक्षम और किफायती बना सकते हैं। यह सिर्फ ऊर्जा उत्पादन की एक नई दिशा नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ विकास की दिशा में भी एक ठोस कदम है।