
ब्लू एनर्जी (Blue Energy), जिसे ओशन एनर्जी या ओस्मोटिक पावर भी कहा जाता है, रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) के क्षेत्र में एक उभरती हुई क्रांति बनकर सामने आ रही है। यह तकनीक समुद्र की लहरों, ज्वार-भाटों और खारे तथा मीठे पानी के मिलन से उत्पन्न ऊर्जा को विद्युत में बदलने का कार्य करती है। भारत जैसे समुद्र से घिरे देश के लिए यह तकनीक न केवल ऊर्जा सुरक्षा का साधन बन सकती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की चुनौती से लड़ने का भी एक अहम उपाय है।
कैसे काम करती है ब्लू एनर्जी?
ब्लू एनर्जी विभिन्न तकनीकों के माध्यम से समुद्री जल की प्राकृतिक गतिशीलता से ऊर्जा प्राप्त करती है। इसके तीन प्रमुख स्तंभ हैं—ओस्मोटिक पावर (Osmotic Power), वेव एनर्जी (Wave Energy) और ज्वारीय ऊर्जा (Tidal Energy)। इन सभी तकनीकों का मूल उद्देश्य समुद्र की अंतर्निहित शक्ति को विद्युत में बदलना है, जो न केवल स्वच्छ होती है, बल्कि सतत भी होती है।
ओस्मोटिक पावर: लवणता के अंतर से ऊर्जा
ओस्मोटिक पावर उस सिद्धांत पर आधारित है जब नदी का मीठा पानी समुद्र के खारे पानी से मिलता है। इस बिंदु पर लवणता में जो अंतर होता है, वह ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए उपयोग किया जाता है।
प्रेशर रिटार्डेड ऑस्मोसिस (PRO) तकनीक में अर्ध-पारगम्य झिल्लियों के माध्यम से पानी का प्रवाह नियंत्रित किया जाता है, जिससे उत्पन्न दाब से टर्बाइनों को घुमाया जाता है और विद्युत उत्पन्न होती है। वहीं, रिवर्स इलेक्ट्रोडायलिसिस (RED) में कैटायन और एनायन चयनात्मक झिल्लियों के माध्यम से आयनों के प्रवाह से करंट उत्पन्न किया जाता है। ये दोनों तकनीकें अभी अनुसंधान और प्रायोगिक स्तर पर हैं, लेकिन इनकी क्षमता काफी अधिक है।
वेव एनर्जी: समुद्र की लहरों से शक्ति
वेव एनर्जी तकनीक समुद्र की सतह पर चलने वाली लहरों की गतिज ऊर्जा को विद्युत में परिवर्तित करती है। कई उपकरण और तकनीकें इस उद्देश्य से प्रयोग में लाई जा रही हैं।
WaveRoller तकनीक, जिसे फिनलैंड की कंपनी AW-Energy ने विकसित किया है, समुद्र तल पर लगाया जाता है और लहरों की गति से हिलता है। इस गति से हाइड्रोलिक सिस्टम में दबाव उत्पन्न होता है जो विद्युत उत्पादन में परिवर्तित होता है।
CETO प्रणाली, जिसे ऑस्ट्रेलिया की Carnegie Clean Energy ने विकसित किया है, समुद्री लहरों से न केवल बिजली उत्पन्न करती है, बल्कि समुद्र के पानी को पीने योग्य मीठे पानी में भी बदल सकती है। यह विशेष रूप से द्वीपों और पानी की कमी वाले तटीय क्षेत्रों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
ज्वारीय ऊर्जा: चंद्रमा की खींचतान से बिजली
ज्वारीय ऊर्जा समुद्र में आने वाले नियमित ज्वार-भाटों की ऊर्जा से उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा एक पूर्वानुमान योग्य और स्थायी स्रोत होती है, जिसे टर्बाइनों के माध्यम से विद्युत में बदला जा सकता है।
Tethered Undersea Kites (TUSKs) एक नवीनतम तकनीक है, जिसमें समुद्र की धाराओं में बंधे पंखुड़ियों जैसे उपकरण गति करते हैं और विद्युत उत्पन्न करते हैं। यह तकनीक ऊर्जा उत्पादन की गति और नियंत्रण दोनों में कारगर है।
ब्लू एनर्जी की विशेषताएं और लाभ
ब्लू एनर्जी का सबसे बड़ा लाभ इसकी पूर्वानुमान योग्य प्रकृति है। समुद्र की लहरें, ज्वार-भाटे और नदी-मुहाने पर होने वाला पानी का मिश्रण एक नियमित प्रक्रिया है, जिससे यह ऊर्जा स्रोत विश्वसनीय हो जाता है।
यह तकनीक पूर्ण रूप से पर्यावरण के अनुकूल है, क्योंकि इसमें किसी भी प्रकार का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन नहीं होता। इससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है।
इसके अलावा, तटीय क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर ऊर्जा उत्पादन संभव होने से ऊर्जा आयात पर निर्भरता कम होती है, और ग्रामीण तथा दूरदराज के इलाकों को भी स्वच्छ ऊर्जा मिल सकती है।
वैश्विक प्रयास: उदाहरण और परियोजनाएं
विश्व के कई देश ब्लू एनर्जी की संभावनाओं को भांपते हुए इस दिशा में सक्रिय हो चुके हैं।
स्पेन में स्थित Mutriku Wave Power Plant दुनिया का पहला ब्रेकवाटर वेव पावर स्टेशन है, जिसकी क्षमता 296 किलोवाट है। यह 100 से अधिक घरों को बिजली प्रदान कर रहा है और इसकी सफलता ने अन्य देशों को भी प्रेरित किया है।
ऑस्ट्रेलिया का CETO प्रोजेक्ट समुद्री लहरों से बिजली और शुद्ध जल दोनों उत्पन्न करने में सक्षम है, जिससे यह द्वीप राष्ट्रों के लिए एक आदर्श समाधान बन सकता है।
अमेरिका की रक्षा अनुसंधान एजेंसी DARPA का BLUE कार्यक्रम समुद्री जैविक स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन पर केंद्रित है, जो ब्लू एनर्जी की दिशा में एक नवीन पहल है।
भारत में ब्लू एनर्जी की संभावनाएं
भारत की 7,500 किलोमीटर से अधिक लंबी समुद्री तटरेखा ब्लू एनर्जी के लिए अत्यंत उपयुक्त है। विशेष रूप से गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल जैसे तटीय राज्यों में इस तकनीक का उपयोग करके स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं।
सरकार यदि इस दिशा में अनुसंधान और निवेश को प्रोत्साहित करे, तो भारत इस क्षेत्र में अग्रणी बन सकता है। इसके अलावा, निजी कंपनियों की भागीदारी और विदेशी तकनीकों के साथ सहयोग से भारत में ब्लू एनर्जी को तेजी से विकसित किया जा सकता है।
ऊर्जा क्रांति की ओर बढ़ता कदम
ब्लू एनर्जी न केवल एक तकनीकी नवाचार है, बल्कि यह पृथ्वी के ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण और जलवायु संकट से लड़ने की दिशा में एक ठोस प्रयास भी है। इसके लिए व्यापक स्तर पर निवेश, तकनीकी विकास और पर्यावरणीय अध्ययन की आवश्यकता है।
यदि इन पहलुओं को संतुलित किया जाए, तो आने वाले वर्षों में ब्लू एनर्जी न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रमुख रिन्यूएबल एनर्जी स्रोत बन सकती है।