
भारत सहित पूरी दुनिया में ऊर्जा संक्रमण के दौर में “ब्लू हाइड्रोजन-Blue Hydrogen” को एक ऐसे विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, जो पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों से स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने में सेतु का काम कर सकता है। हालांकि इसे भविष्य का सुपर फ्यूल कहा जा रहा है, लेकिन यह जानना बेहद जरूरी है कि ब्लू हाइड्रोजन वास्तव में कितना प्रभावी है, इसके फायदे और चुनौतियाँ क्या हैं, और भारत में इसका भविष्य कितना उज्जवल है।
ब्लू हाइड्रोजन-Blue Hydrogen क्या है और इसे कैसे बनाया जाता है?
ब्लू हाइड्रोजन का निर्माण मुख्य रूप से प्राकृतिक गैस के माध्यम से किया जाता है, जिसमें “स्टीम मीथेन रिफॉर्मिंग (Steam Methane Reforming – SMR)” या “ऑटोथर्मल रिफॉर्मिंग (Auto-Thermal Reforming – ATR)” प्रक्रिया शामिल होती है। इन तकनीकों से प्राप्त हाइड्रोजन को तब और अधिक स्वच्छ बनाने के लिए “कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS)” तकनीक का सहारा लिया जाता है। यह तकनीक वायुमंडल में उत्सर्जित होने वाले “कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)” को पकड़कर उसे भूमिगत भंडारों में संग्रहित करती है। इस प्रक्रिया से उत्पन्न हाइड्रोजन को ग्रे हाइड्रोजन से अधिक स्वच्छ और टिकाऊ माना जाता है, हालांकि यह “नेट जीरो-उत्सर्जन” विकल्प नहीं है।
ब्लू हाइड्रोजन ऊर्जा संक्रमण में क्यों बन सकता है गेम चेंजर?
ब्लू हाइड्रोजन को ऊर्जा क्षेत्र में एक अहम ट्रांजिशनल समाधान माना जा रहा है, खासकर तब तक जब तक ग्रीन हाइड्रोजन पूरी तरह से आर्थिक और तकनीकी रूप से व्यवहार्य नहीं बन जाता। मौजूदा गैस पाइपलाइन नेटवर्क और इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करके इसे बड़े पैमाने पर अपनाया जा सकता है। इससे भारी उद्योगों जैसे स्टील, सीमेंट और रसायन निर्माण के साथ-साथ लंबी दूरी के ट्रांसपोर्ट सेक्टर्स जैसे ट्रकिंग, रेल और समुद्री परिवहन में इसका प्रयोग संभव हो सकता है।
इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी उत्पादन लागत “ग्रीन हाइड्रोजन” की तुलना में अभी काफी कम है। यही वजह है कि ब्लू हाइड्रोजन निकट भविष्य में अधिक कमर्शियल तौर पर व्यवहार्य विकल्प बनकर उभर सकता है। खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ तत्काल Renewable Energy आधारित समाधान नहीं अपनाए जा सकते।
ब्लू हाइड्रोजन को लेकर क्या हैं प्रमुख चुनौतियाँ और आलोचनाएँ?
हालांकि ब्लू हाइड्रोजन को लेकर तमाम उम्मीदें जताई जा रही हैं, लेकिन इसके सामने कई पर्यावरणीय और तकनीकी बाधाएँ भी मौजूद हैं। सबसे पहले, जिस CCS तकनीक का उपयोग इसमें कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए किया जाता है, वह अभी तक पूर्ण रूप से परिपक्व नहीं मानी जाती। कई विशेषज्ञों का मानना है कि इसके दीर्घकालिक प्रभाव और विश्वसनीयता पर अभी और शोध की आवश्यकता है।
इसके अलावा, चूंकि ब्लू हाइड्रोजन प्राकृतिक गैस से बनता है, इस पूरी सप्लाई चेन में “मीथेन (Methane)” जैसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों के लीक होने की संभावना रहती है। मीथेन की ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (GWP) कार्बन डाइऑक्साइड से कई गुना अधिक होती है। यही कारण है कि कुछ वैज्ञानिक ब्लू हाइड्रोजन को “ग्रीन हाइड्रोजन” के स्थायी विकल्प के रूप में स्वीकार नहीं करते।
वहीं, जैसे-जैसे Renewable Energy की लागत में गिरावट आ रही है और इलेक्ट्रोलाइज़र तकनीक में प्रगति हो रही है, “ग्रीन हाइड्रोजन” सस्ता और अधिक सस्टेनेबल विकल्प बनता जा रहा है। ऐसे में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले वर्षों में ब्लू हाइड्रोजन की प्रतिस्पर्धात्मकता कमजोर पड़ सकती है।
भारत में ब्लू हाइड्रोजन का वर्तमान और भविष्य
भारत सरकार ने 2030 तक 5 मिलियन टन “ग्रीन हाइड्रोजन” उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है, जो कि “नेशनल हाइड्रोजन मिशन” के अंतर्गत आता है। इस दिशा में भारत तेजी से Renewable Energy आधारित उत्पादन को प्राथमिकता दे रहा है। हालांकि, “ब्लू हाइड्रोजन” को सरकार ने पूरी तरह से खारिज नहीं किया है, बल्कि इसे एक ट्रांजिशनल समाधान के तौर पर अपनाने का संकेत दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत जैसे विशाल और विविध ऊर्जा मांग वाले देश के लिए यह जरूरी है कि वह अल्पकालिक ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए ब्लू हाइड्रोजन जैसे मध्यवर्ती विकल्पों को अपनाए, साथ ही दीर्घकालिक रणनीति के तहत ग्रीन हाइड्रोजन की ओर आगे बढ़े। इससे भारत न केवल अपने कार्बन न्यूट्रल लक्ष्यों को समय पर प्राप्त कर सकता है, बल्कि ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में भी एक बड़ा कदम उठा सकता है।
ब्लू हाइड्रोजन है वर्तमान का समाधान, भविष्य की मंज़िल नहीं
ब्लू हाइड्रोजन निश्चित रूप से पारंपरिक ईंधनों की तुलना में एक अधिक स्वच्छ विकल्प है और निकट भविष्य में यह भारी उद्योगों व ट्रांसपोर्ट सेक्टर के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है। लेकिन इसके साथ जुड़ी पर्यावरणीय चिंताएँ, तकनीकी सीमाएँ और भविष्य में ग्रीन हाइड्रोजन की बढ़ती प्रतिस्पर्धा इसे एक स्थायी समाधान के बजाय एक ट्रांजिशनल फ्यूल बनाती हैं। इसलिए नीति निर्धारकों और उद्योगों को चाहिए कि वे ब्लू हाइड्रोजन का उपयोग करते हुए ग्रीन हाइड्रोजन के लिए आधार तैयार करें, ताकि एक स्थायी और कार्बन-न्यूट्रल भविष्य की ओर ठोस कदम बढ़ाए जा सकें।