
ग्रीन हाइड्रोजन (Green Hydrogen) ऊर्जा क्षेत्र में निवेश का एक नया और उभरता हुआ ट्रेंड बनता जा रहा है। यह तकनीक न केवल रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) के तहत आती है, बल्कि यह वैश्विक जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। दुनिया भर के विशेषज्ञ और निवेशक अब इस ओर आकर्षित हो रहे हैं, लेकिन साथ ही इसमें कुछ महत्वपूर्ण जोखिम और चुनौतियाँ भी हैं जिनका मूल्यांकन आवश्यक है। मौजूदा वैश्विक रुझानों, सरकारी नीतियों और तकनीकी प्रगति के आधार पर ग्रीन हाइड्रोजन में निवेश का भविष्य बेहद संभावनाशील नजर आता है।
वैश्विक बाजार में ग्रीन हाइड्रोजन की बढ़ती मांग
हाल के वर्षों में ग्रीन हाइड्रोजन का बाजार तेज़ी से बढ़ा है। Oilman Magazine के अनुसार, 2025 तक वैश्विक हाइड्रोजन मार्केट का आकार लगभग $500 बिलियन तक पहुँच सकता है। यह इस बात का संकेत है कि ग्रीन हाइड्रोजन आने वाले वर्षों में स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण (Clean Energy Transition) का एक केंद्रीय स्तंभ बन सकता है। कई देश और कंपनियाँ इसे भविष्य की ऊर्जा के रूप में देख रही हैं, खासकर जब पारंपरिक जीवाश्म ईंधन से दूरी बनानी आवश्यक हो गई है।
लागत में गिरावट से निवेश को मिलेगी रफ्तार
Oneindia Hindi की रिपोर्ट बताती है कि 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत में 50% तक की गिरावट आ सकती है। वर्तमान में इसकी लागत लगभग $3.50 से $6.00 प्रति किलोग्राम है, जो पारंपरिक हाइड्रोजन की तुलना में अधिक है। लेकिन जैसे-जैसे तकनीक का विकास होगा और उत्पादन बढ़ेगा, इसकी लागत में निरंतर गिरावट संभावित है। यह इसे अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएगा और निवेशकों के लिए आकर्षक अवसर उत्पन्न करेगा।
दीर्घकालिक निवेश अवसर के रूप में ग्रीन हाइड्रोजन
EquitiesFirst के अनुसार, ग्रीन हाइड्रोजन में 2030 तक लगभग $100 बिलियन और 2050 तक अतिरिक्त $500 बिलियन के निवेश की आवश्यकता होगी। यह दीर्घकालिक दृष्टिकोण से एक मजबूत निवेश अवसर प्रस्तुत करता है, विशेष रूप से उन निवेशकों के लिए जो टिकाऊ विकास (Sustainable Development) और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व (Environmental Responsibility) को प्राथमिकता देते हैं।
निवेश में बाधक चुनौतियाँ और जोखिम
हालाँकि ग्रीन हाइड्रोजन का भविष्य उज्ज्वल प्रतीत होता है, लेकिन इसके साथ कुछ महत्त्वपूर्ण जोखिम भी जुड़े हैं। सबसे पहले, वर्तमान में इसकी उत्पादन लागत पारंपरिक तरीकों की तुलना में काफी अधिक है। arXiv पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, हाइड्रोजन उत्पादन की वर्तमान लागत $3.50 से $6.00 प्रति किलोग्राम के बीच है, जो कि इसे मुख्यधारा में लाने में बाधा बन सकती है।
दूसरी चुनौती नीतिगत अस्थिरता है। कई देशों में हाइड्रोजन परियोजनाओं को आवश्यक सरकारी समर्थन और सब्सिडी नहीं मिल पा रही है। इसके कारण निवेशक संकोच करते हैं और दीर्घकालिक प्रतिबद्धता में झिझकते हैं।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है – बुनियादी ढांचे की कमी। ग्रीन हाइड्रोजन को सुरक्षित रूप से संग्रहित करने और परिवहन करने के लिए विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होती है, जो अभी विश्व के अधिकांश हिस्सों में उपलब्ध नहीं है।
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन के बढ़ते अवसर
भारत सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन को भविष्य की ऊर्जा के रूप में पहचानते हुए 2030 तक 5 मिलियन टन उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। इससे देश में न केवल ऊर्जा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि विदेशी निवेश के लिए भी एक नया मार्ग खुलेगा। Oneindia Hindi और Hindi Current Affairs की रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस इंडस्ट्रीज, अडानी समूह और NTPC जैसी दिग्गज कंपनियाँ पहले से ही इस क्षेत्र में निवेश कर रही हैं।
भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह अवसर न केवल आर्थिक बल्कि रणनीतिक रूप से भी अहम है। इससे भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सुदृढ़ कर सकता है और वैश्विक हाइड्रोजन बाजार में प्रतिस्पर्धा में आगे निकल सकता है।
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सोच-समझकर किया गया निवेश हो सकता है लाभदायक
ग्रीन हाइड्रोजन का भविष्य स्पष्ट रूप से उज्ज्वल नजर आता है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इसमें निवेश से पहले संपूर्ण शोध और जोखिम मूल्यांकन अत्यंत आवश्यक है। यह उन निवेशकों के लिए एक अनूठा अवसर हो सकता है जो दीर्घकालिक लाभ, पर्यावरणीय संरक्षण और तकनीकी नवाचार में विश्वास रखते हैं। नीति निर्माताओं, निवेशकों और टेक्नोलॉजिस्ट्स के संयुक्त प्रयास से ही यह तकनीक मुख्यधारा में स्थान बना सकती है।