
भारत लिथियम-आयन बैटरी निर्माण में एक वैश्विक केंद्र बनने की दिशा में निरंतर कदम बढ़ा रहा है। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के रियासी ज़िले में 5.9 मिलियन टन लिथियम भंडार की खोज ने इस दिशा में एक बड़ा मोड़ ला दिया है। यह खोज देश के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है, क्योंकि अब तक भारत अपनी लिथियम आवश्यकता के लिए आयात पर निर्भर था। इस नए लिथियम भंडार से घरेलू उत्पादन को नई गति मिलेगी और देश की ऊर्जा स्वतंत्रता की दिशा में यह एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
वैश्विक सहयोग से तकनीकी मजबूती
लिथियम प्रोसेसिंग और निष्कर्षण की जटिलता को देखते हुए भारत ने ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, बोलीविया, ब्रिटेन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे तकनीकी रूप से सक्षम देशों से सहयोग की दिशा में प्रयास तेज़ कर दिए हैं। रूस की सरकारी कंपनी रोसाटॉम ने भी भारत को तकनीकी सहायता देने का प्रस्ताव रखा है, जो इस क्षेत्र में भारत की क्षमता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुदृढ़ बना सकता है। ये रणनीतिक साझेदारियां भारत को आधुनिक लिथियम प्रोसेसिंग तकनीक तक पहुंच दिलाने में अहम भूमिका निभाएंगी।
नीतिगत समर्थन और आयात पर निर्भरता में कमी
सरकार की ओर से घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए एक निर्णायक कदम के रूप में 15 खनिजों, जिनमें लिथियम भी शामिल है, पर बेसिक कस्टम ड्यूटी में कटौती की गई है। यह नीति बदलाव लिथियम-आयन बैटरियों के घरेलू उत्पादन को आर्थिक रूप से अधिक व्यवहार्य बनाएगा, जिससे आयात पर निर्भरता में उल्लेखनीय कमी आएगी। इससे न केवल विदेशी मुद्रा की बचत होगी बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ पहल को भी सशक्त समर्थन मिलेगा।
2030 तक का रोडमैप और निवेश की आवश्यकता
नीति आयोग का अनुमान है कि 2030 तक भारत को अपनी घरेलू लिथियम-आयन बैटरी मांग को पूरा करने के लिए लगभग 10 अरब डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी। यह निवेश बैटरी निर्माण संयंत्रों, सप्लाई चेन, रिसर्च और स्किल डेवलपमेंट जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में किया जाएगा। इस निवेश से न केवल नई टेक्नोलॉजी का प्रवेश होगा, बल्कि इससे हजारों रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत हैं।
चुनौतियाँ और संभावनाएँ
हालांकि, भारत को लिथियम निष्कर्षण और प्रोसेसिंग में विशेषज्ञता की कमी, आवश्यक बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता और पर्यावरणीय प्रतिबंध जैसी जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन यदि इन चुनौतियों को रणनीतिक और टिकाऊ तरीके से हल किया गया, तो भारत न केवल आत्मनिर्भर बन सकता है, बल्कि लिथियम-आयन बैटरी उत्पादन में विश्व स्तर पर एक अग्रणी राष्ट्र बनकर उभर सकता है।