
भारत में तेजी से बढ़ती बिजली की मांग और बढ़ते बिजली बिलों के बीच, घर के लिए सोलर सिस्टम या सोलर पैनल एक स्मार्ट और लाभकारी विकल्प बनकर उभरे हैं। सौर ऊर्जा न केवल एक स्थायी समाधान है, बल्कि यह रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। सरकार की विभिन्न योजनाएं, जैसे कि प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना, आम नागरिकों को इसका लाभ उठाने का अवसर प्रदान करती हैं। आइए जानते हैं, सोलर पैनल किस तरह काम करते हैं, कौन-कौन से विकल्प मौजूद हैं, और इसे स्थापित करने से पहले किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
सोलर पैनल कैसे काम करता है?
सोलर पैनल सूर्य की रोशनी को विद्युत ऊर्जा में बदलते हैं। इसमें लगे फोटोवोल्टिक (PV) सेल्स सूर्य की किरणों से इलेक्ट्रॉनों को उत्तेजित करते हैं, जिससे डीसी करंट (DC Current) बनता है। यह करंट इन्वर्टर की मदद से एसी करंट (AC Current) में परिवर्तित होता है, जो कि घर के सामान्य उपकरणों को चलाने के लिए उपयोगी होता है। यह पूरी प्रक्रिया एक स्वच्छ और हरित ऊर्जा उत्पादन की ओर संकेत करती है।
क्या सोलर पैनल पूरे घर की बिजली जरूरत पूरी कर सकता है?
यदि सही योजना बनाई जाए, तो घर के लिए सोलर सिस्टम पूरी तरह से बिजली की जरूरत को पूरा कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी घर की मासिक बिजली खपत 300 यूनिट है, तो रोज़ाना की औसत खपत लगभग 10 यूनिट होती है। एक 1 किलोवाट (kW) का सोलर सिस्टम प्रतिदिन लगभग 4–5 यूनिट बिजली उत्पन्न कर सकता है। ऐसे में 2.5–3 kW का सोलर सिस्टम इस आवश्यकता को पूरा कर सकता है।
अगर आप पूरी तरह से ग्रिड से स्वतंत्र रहना चाहते हैं, तो आपको एक मजबूत बैटरी स्टोरेज सिस्टम की आवश्यकता होगी, जिससे रात में या बादल वाले दिनों में भी बिजली मिलती रहे।
सोलर सिस्टम के प्रकार
घरों के लिए सोलर सिस्टम तीन मुख्य प्रकार के होते हैं, जिन्हें उनकी कार्यप्रणाली के आधार पर वर्गीकृत किया गया है:
ऑन-ग्रिड सिस्टम: यह सिस्टम ग्रिड से जुड़ा होता है। दिन में अगर बिजली की अधिकता होती है, तो वह ग्रिड में भेजी जा सकती है। रात या आवश्यकता होने पर ग्रिड से बिजली ली जाती है। यह व्यवस्था शहरी क्षेत्रों में अधिक लोकप्रिय है।
ऑफ-ग्रिड सिस्टम: यह पूरी तरह से ग्रिड से स्वतंत्र होता है। इसमें बैटरी स्टोरेज का उपयोग किया जाता है, जिससे यह दूरदराज़ या बिजली आपूर्ति से वंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होता है।
हाइब्रिड सिस्टम: यह सिस्टम ऑन-ग्रिड और ऑफ-ग्रिड दोनों का संयोजन होता है। इसमें ग्रिड से भी कनेक्शन रहता है और बैटरी स्टोरेज की सुविधा भी होती है, जिससे यह अत्यधिक विश्वसनीयता और लचीलापन प्रदान करता है।
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लागत और सब्सिडी
घर के लिए सोलर पैनल की कीमत उसकी क्षमता और प्रयोग किए गए उपकरणों पर निर्भर करती है। सामान्यतः:
1 kW सिस्टम की कीमत ₹60,000 से ₹80,000 तक हो सकती है।
3 kW सिस्टम की लागत ₹1.5 लाख से ₹2 लाख तक जाती है।
5 kW सिस्टम के लिए ₹2.5 लाख से ₹3.5 लाख तक खर्च आ सकता है।
सरकार की ओर से प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना के तहत 3 kW तक के सिस्टम पर ₹78,000 तक की सब्सिडी दी जा रही है। इससे आम नागरिकों के लिए इस तकनीक को अपनाना अधिक सुलभ हो जाता है। यह योजना देश में Renewable Energy को प्रोत्साहित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
योजना बनाते समय किन बातों का ध्यान रखें?
- सोलर सिस्टम इंस्टॉलेशन से पहले कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:
- सबसे पहले, अपनी मासिक बिजली खपत को बिजली बिलों के आधार पर जानना जरूरी है। इससे यह तय करना आसान हो जाता है कि कितने kW के सोलर सिस्टम की आवश्यकता होगी।
- दूसरी बात, छत की दिशा और उस पर पड़ने वाली छाया की स्थिति पर गौर करें। दक्षिण दिशा की छतें सोलर पैनलों के लिए अधिक उपयुक्त मानी जाती हैं।
- स्थानीय मौसम और धूप की उपलब्धता भी सिस्टम की क्षमता निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उदाहरण के लिए, जिन क्षेत्रों में पूरे वर्ष भर अच्छी धूप मिलती है, वहां कम क्षमता का सिस्टम भी पर्याप्त हो सकता है।
- यदि आप रात में भी सोलर से बिजली उपयोग करना चाहते हैं, तो बैटरी स्टोरेज को भी शामिल करना जरूरी है।