इन्वर्टर और सोलर बैटरी के बीच अंतर, और कौन-सी बैटरी कहां लगती है?

बिजली कटौती से परेशान हैं या रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy की ओर बढ़ना चाहते हैं? इन्वर्टर और सोलर बैटरी के बीच उलझन में हैं? इस आर्टिकल में जानिए दोनों बैटरियों में क्या है फर्क, कौन-सी बैटरी कब और कहां लगती है, और कैसे करें सही चुनाव—पूरी जानकारी आसान भाषा में

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Written by Rohit Kumar

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इन्वर्टर और सोलर बैटरी के बीच अंतर, और कौन-सी बैटरी कहां लगती है?
इन्वर्टर और सोलर बैटरी के बीच अंतर, और कौन-सी बैटरी कहां लगती है?

घरों और व्यवसायिक स्थानों पर बिजली की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए इन्वर्टर और सोलर बैटरी का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। खासकर रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy के प्रति बढ़ती जागरूकता के चलते अब लोग परंपरागत इन्वर्टर बैटरी की जगह सोलर बैटरी को प्राथमिकता दे रहे हैं। लेकिन अक्सर लोग इन्वर्टर बैटरी और सोलर बैटरी के बीच के अंतर को लेकर भ्रमित रहते हैं। आइए जानते हैं कि इन दोनों में क्या फर्क है, इनकी कार्यप्रणाली कैसी होती है और किन परिस्थितियों में किस बैटरी का उपयोग करना चाहिए।

इन्वर्टर बैटरी और सोलर बैटरी दोनों की अपनी-अपनी उपयोगिता है। सही बैटरी का चयन आपकी जरूरतों, लोकेशन और इस्तेमाल के आधार पर करना चाहिए। अगर आप पारंपरिक इन्वर्टर सिस्टम चला रहे हैं और कभी-कभी पावर कट की स्थिति होती है, तो इन्वर्टर बैटरी एक उपयुक्त विकल्प है। लेकिन यदि आप सोलर एनर्जी का पूर्ण उपयोग करना चाहते हैं और ग्रिड पर निर्भरता कम करना चाहते हैं, तो सोलर बैटरी को प्राथमिकता दें।

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क्या है इन्वर्टर बैटरी?

इन्वर्टर बैटरी का उपयोग सामान्यतः घरेलू या व्यवसायिक इन्वर्टर के साथ किया जाता है, जहां यह बिजली कटौती के दौरान बैकअप देती है। इन बैटरियों को चार्ज करने के लिए ग्रिड से आने वाली एसी बिजली का उपयोग किया जाता है जिसे इन्वर्टर द्वारा डीसी में परिवर्तित किया जाता है। यह बैटरियां खासतौर पर डिस्चार्ज और रीचार्ज के चक्रों को बार-बार सहन करने के लिए तैयार की जाती हैं।

इन्वर्टर बैटरी की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • यह आमतौर पर लेड-एसिड तकनीक पर आधारित होती हैं
  • इनमें मेंटेनेंस की आवश्यकता होती है, खासकर वाटर टॉप-अप की
  • इनका उपयोग शॉर्ट टाइम बैकअप (2 से 6 घंटे) के लिए किया जाता है
  • इनकी कीमत सोलर बैटरियों की तुलना में कम होती है

क्या होती है सोलर बैटरी?

सोलर बैटरी खासतौर पर सोलर पैनल सिस्टम के साथ काम करने के लिए डिजाइन की जाती हैं। ये बैटरियां दिन में सोलर पैनल से उत्पन्न डीसी बिजली को संग्रहित करती हैं और जरूरत पड़ने पर इस संग्रहित ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। सोलर बैटरियों को डीप साइकल बैटरियां भी कहा जाता है, क्योंकि इन्हें बार-बार गहराई से चार्ज और डिस्चार्ज किया जा सकता है।

सोलर बैटरी की प्रमुख विशेषताएं हैं:

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  • यह अधिक डीप डिस्चार्ज क्षमता रखती हैं
  • लंबे समय तक चलने वाली होती हैं और इनकी लाइफ ज्यादा होती है
  • ये लेड-एसिड, लिथियम आयन और जेल बैटरी प्रकारों में उपलब्ध होती हैं
  • ये ऑफ-ग्रिड और हाइब्रिड सोलर सिस्टम दोनों के लिए उपयुक्त होती हैं

मुख्य अंतर: इन्वर्टर बैटरी बनाम सोलर बैटरी

चार्जिंग स्रोत:

  • इन्वर्टर बैटरी को मुख्य रूप से ग्रिड (एसी सप्लाई) से चार्ज किया जाता है जबकि सोलर बैटरी को सोलर पैनलों (डीसी सप्लाई) से।

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उपयोग की प्रकृति:

  • इन्वर्टर बैटरी सीमित समय के लिए बैकअप देने हेतु उपयोगी होती है, जबकि सोलर बैटरी पूरे दिन की एनर्जी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होती है।

डीप साइकल कैपेसिटी:

  • सोलर बैटरियों में डीप साइकल टेक्नोलॉजी होती है, जिससे इन्हें बार-बार पूरी तरह से चार्ज और डिस्चार्ज किया जा सकता है। इन्वर्टर बैटरियां इतनी गहराई से डिस्चार्ज नहीं की जा सकतीं।

लागत और रखरखाव:

  • इन्वर्टर बैटरियां सस्ती होती हैं लेकिन इन्हें अधिक मेंटेनेंस की आवश्यकता होती है। वहीं, सोलर बैटरियां महंगी होती हैं लेकिन मेंटेनेंस की जरूरत कम होती है।

कौन-सी बैटरी कहां लगती है?

यदि आप सिर्फ पावर कट के दौरान बैकअप चाहते हैं और आपके यहां बिजली कटौती की समस्या अधिक नहीं है, तो इन्वर्टर बैटरी पर्याप्त है। लेकिन यदि आप सोलर एनर्जी का उपयोग कर रहे हैं या ऑफ-ग्रिड लोकेशन में हैं जहां ग्रिड की सुविधा नहीं है, तो सोलर बैटरी ही उपयुक्त विकल्प है।

सोलर बैटरी का उपयोग विशेष रूप से निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है:

  • गांवों या दूरदराज के क्षेत्रों में, जहां बिजली आपूर्ति सीमित होती है
  • सोलर सिस्टम के साथ हाइब्रिड या ऑफ-ग्रिड सिस्टम में
  • रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy को प्राथमिकता देने वाले घरों और संस्थानों में

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बैटरी का चयन करते समय किन बातों का ध्यान रखें?

बैटरी का चुनाव करते समय कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं का ध्यान रखना जरूरी है:

  • आपकी एनर्जी जरूरत क्या है (कितनी लोड क्षमता चाहिए)
  • बैटरी का वोल्टेज और एएच रेटिंग
  • कितनी बार बैटरी को चार्ज/डिस्चार्ज किया जाएगा
  • आपके क्षेत्र की बिजली आपूर्ति की स्थिति कैसी है
  • मेंटेनेंस के लिए आपकी प्राथमिकता (लो या नो मेंटेनेंस)

सरकार और बाजार की दिशा

भारत सरकार द्वारा सोलर एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं और सब्सिडी चलाई जा रही हैं। आने वाले समय में, जैसे-जैसे रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy का उपयोग बढ़ेगा, सोलर बैटरियों की मांग में भी इजाफा होगा। इसके चलते कई कंपनियां अब उन्नत तकनीक की बैटरियां जैसे कि लिथियम आयन बैटरियां पेश कर रही हैं, जो कि हल्की, टिकाऊ और कम मेंटेनेंस वाली होती हैं।

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Rohit Kumar
रोहित कुमार सोलर एनर्जी और रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में अनुभवी कंटेंट राइटर हैं, जिन्हें इस क्षेत्र में 7 वर्षों का गहन अनुभव है। उन्होंने सोलर पैनल इंस्टॉलेशन, सौर ऊर्जा की अर्थव्यवस्था, सरकारी योजनाओं, और सौर ऊर्जा नवीनतम तकनीकी रुझानों पर शोधपूर्ण और सरल लेखन किया है। उनका उद्देश्य सोलर एनर्जी के प्रति जागरूकता बढ़ाना और पाठकों को ऊर्जा क्षेत्र के महत्वपूर्ण पहलुओं से परिचित कराना है। अपने लेखन कौशल और समर्पण के कारण, वे सोलर एनर्जी से जुड़े विषयों पर एक विश्वसनीय लेखक हैं।

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