
पीएम-कुसुम योजना (PM-KUSUM Yojana) ने किसानों को सिर्फ कृषि तक सीमित नहीं रखा, बल्कि अब वह रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बन रहे हैं। इस योजना की मदद से किसान अपनी कृषि भूमि (Agricultural Land) पर सोलर पैनल (Solar Panel) लगाकर न केवल अपनी जरूरत की बिजली पैदा कर रहे हैं, बल्कि ग्रिड में अतिरिक्त बिजली बेचकर हर महीने लाखों रुपये तक कमा रहे हैं। यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की समस्या को हल करने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभा रही है।
क्या है पीएम-कुसुम योजना और कैसे कर रही है किसानों की मदद
प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM Yojana) केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका उद्देश्य किसानों को पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से हटाकर स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर प्रेरित करना है। इसके तहत किसानों को अपनी भूमि पर सोलर पावर प्लांट (Solar Power Plant) स्थापित करने के लिए सब्सिडी (Subsidy) और बैंक लोन (Bank Loan) की सुविधा दी जाती है।
इस योजना की संरचना ऐसी है कि इसमें किसान को केवल 10% लागत ही स्वयं वहन करनी पड़ती है, जबकि 60% तक सब्सिडी सरकार देती है और 30% तक बैंक लोन की सुविधा दी जाती है। इस मॉडल के चलते लघु और सीमांत किसान (Small and Marginal Farmers) भी इस योजना से लाभ उठा सकते हैं।
खेत से बिजली बनाना और ग्रिड में बेचकर कमाई करना
PM-KUSUM योजना की सबसे बड़ी खासियत यह है कि किसान अपनी अतिरिक्त अथवा गैर-उपजाऊ भूमि पर सोलर पैनल लगाकर जो बिजली पैदा करते हैं, उसे बिजली ग्रिड (Electricity Grid) में बेच सकते हैं। इससे उन्हें नियमित मासिक आय (Monthly Income) का एक स्थायी स्रोत मिल जाता है। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई किसान 1 मेगावाट की क्षमता वाला सोलर पावर प्लांट लगाता है, तो वह अगले 20 से 30 वर्षों तक लगातार बिजली बेचकर लाखों रुपये की कमाई कर सकता है।
1 मेगावाट की क्षमता के लिए लगभग 1.5 से 2 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होती है। अच्छी बात यह है कि कई राज्य सरकारें किसानों से बिजली खरीदने की गारंटी (Power Purchase Agreement) भी देती हैं, जिससे निवेश का रिटर्न लगभग निश्चित हो जाता है।
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बिजली में आत्मनिर्भरता के साथ पर्यावरण संरक्षण
सोलर एनर्जी (Solar Energy) का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे किसान खुद अपनी जरूरत की बिजली पैदा कर सकते हैं, खासकर सिंचाई पंप (Solar Pump) चलाने के लिए। इससे किसानों के बिजली बिल में कमी आती है और डीजल पर निर्भरता भी घटती है।
इसके साथ ही सोलर एनर्जी जीवाश्म ईंधनों की तुलना में कहीं अधिक स्वच्छ होती है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता और यह ग्रीन एनर्जी ट्रांजिशन (Green Energy Transition) की दिशा में एक बड़ा कदम माना जाता है। ग्रामीण भारत में, जहां बिजली की पहुंच अब भी चुनौती है, वहां यह योजना एक नई क्रांति ला रही है।
भूमि और स्थानीय विवाद बने चुनौती
हालांकि योजना के लाभ अनेक हैं, लेकिन इसकी राह में कुछ चुनौतियाँ भी सामने आती हैं। सबसे पहली और आम समस्या है भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) की। कई क्षेत्रों में जब किसानों से जमीन सोलर प्लांट के लिए ली जाती है, तो स्थानीय विवाद उत्पन्न होते हैं।
कुछ किसान यह सोचकर पीछे हट जाते हैं कि कहीं उनकी कृषि भूमि पर सोलर पैनल लगाने से उनकी खेती प्रभावित न हो जाए। हालांकि कई राज्य सरकारें ऐसे ऊंचे फ्रेम वाले सोलर पैनल्स की अनुमति देती हैं, जिनके नीचे किसान खेती जारी रख सकते हैं।
तकनीकी जानकारी और वित्तीय बाधाएँ
दूसरी बड़ी चुनौती है कि सभी किसान तकनीकी रूप से प्रशिक्षित नहीं होते। सोलर पैनल की देखरेख और रखरखाव के लिए तकनीकी ज्ञान आवश्यक होता है, जो हर किसान के पास नहीं होता। इसके अलावा, प्रारंभिक निवेश और बैंक लोन की प्रक्रिया भी कई किसानों के लिए कठिन हो सकती है।
सरकार को चाहिए कि वह अधिक से अधिक प्रशिक्षण कार्यक्रम (Training Programs) और सुलभ बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराए ताकि अधिक किसान इस योजना से जुड़ सकें और इसका पूरा लाभ उठा सकें।
सौर ऊर्जा में है ग्रामीण भारत का भविष्य
जैसे-जैसे भारत नेट जीरो एमिशन (Net Zero Emission) की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे सोलर एनर्जी की मांग और महत्व भी बढ़ रहा है। ग्रामीण भारत में PM-KUSUM योजना किसानों के लिए आय का वैकल्पिक स्रोत (Alternative Income Source) बनकर उभर रही है। इससे किसानों को खेती पर निर्भरता कम करने का अवसर मिल रहा है और वे आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं।
यदि सरकार भूमि से जुड़े विवाद और तकनीकी बाधाओं को सुलझा लेती है, तो यह योजना आने वाले वर्षों में ग्रामीण ऊर्जा क्रांति का आधार बन सकती है।