
भारत की सोलर कंपनियों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (Foreign Institutional Investors – FII) की बढ़ती हिस्सेदारी देश की ऊर्जा नीति, आर्थिक स्थिरता और रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) के प्रति वैश्विक समुदाय के भरोसे को दर्शाती है। हाल के महीनों में अनेक अंतरराष्ट्रीय निवेशकों ने भारतीय सोलर कंपनियों में अपने निवेश को बढ़ाया है, जिससे इस क्षेत्र की मजबूती और संभावनाओं का प्रमाण मिलता है।
सोलर कंपनियों में FII की बढ़ती दिलचस्पी
वित्तीय तिमाही आंकड़ों के अनुसार, Premier Energies Ltd में FII की हिस्सेदारी दिसंबर 2024 में 2.31% थी, जो मार्च 2025 तक बढ़कर 2.96% हो गई। यह बदलाव विदेशी निवेशकों की रणनीतिक रुचि और भारत की सोलर इंडस्ट्री में दीर्घकालिक संभावना को उजागर करता है।
इसी प्रकार, Websol Energy Systems, Waaree Renewable Tech और Gensol Engineering जैसी कंपनियों में भी विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। इसके अलावा, ब्रिटिश इंटरनेशनल इन्वेस्टमेंट (British International Investment – BII) ने ReNew Energy Global की सोलर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में ₹870 करोड़ (लगभग $100 मिलियन) का बड़ा निवेश किया है। यह निवेश इस बात का प्रमाण है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भारतीय सोलर सेक्टर को एक विश्वसनीय और लाभदायक गंतव्य मान रही हैं।
नीतिगत समर्थन और सरकारी प्रोत्साहन
भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट (GW) की गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित क्षमता प्राप्त करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। इस दिशा में सोलर एनर्जी प्रमुख भूमिका निभा रही है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार ने प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजनाएं, 100% एफडीआई (FDI) की अनुमति, और वित्तीय सब्सिडी जैसे अनेक उपाय लागू किए हैं।
सरकार की यह नीतिगत प्रतिबद्धता और समर्थन विदेशी निवेशकों को यह भरोसा देता है कि भारत में सोलर सेक्टर न केवल संरचनात्मक रूप से मजबूत है, बल्कि इसमें दीर्घकालिक निवेश की दृष्टि से स्थायित्व भी है।
आर्थिक स्थिरता और ऊर्जा की बढ़ती मांग
भारत की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था और ऊर्जा की निरंतर बढ़ती मांग भी रिन्यूएबल एनर्जी में निवेश के लिए एक अनुकूल माहौल बनाती है। Morgan Stanley की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक भारत की बिजली मांग 370 GW तक पहुंचने की संभावना है, जिसमें सोलर और अन्य नवीकरणीय स्रोतों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो सोलर कंपनियों में FII का बढ़ता निवेश केवल मुनाफे की आशा पर आधारित नहीं है, बल्कि यह भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के दीर्घकालिक समाधान में भागीदार बनने की रणनीति का हिस्सा है।
ESG लक्ष्यों की ओर वैश्विक झुकाव
दुनियाभर में निवेशक अब अपने पूंजी निवेश के निर्णयों में पर्यावरणीय, सामाजिक और शासन (Environmental, Social and Governance – ESG) मानकों को भी शामिल कर रहे हैं। भारत की सोलर कंपनियां ESG फ्रेमवर्क में फिट बैठती हैं, जो इन कंपनियों को वैश्विक निवेशकों के लिए और अधिक आकर्षक बनाता है।
सोलर प्रोजेक्ट्स में कार्बन फुटप्रिंट कम होता है, सामाजिक लाभ अधिक होता है, और यह परियोजनाएं पारदर्शी ढंग से चलाई जाती हैं। यह सभी गुण ESG मानकों की दृष्टि से इन्वेस्टमेंट फ्रेंडली माने जाते हैं।
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निवेश की राह में मौजूद चुनौतियाँ
हालांकि सोलर क्षेत्र में विदेशी निवेश का ट्रेंड सकारात्मक है, लेकिन इसके सामने कुछ व्यावहारिक और नीतिगत चुनौतियाँ भी हैं। सबसे पहले, नीतिगत अस्थिरता और बिजली खरीद समझौतों (PPA) में बार-बार बदलाव से निवेशकों में अनिश्चितता की भावना पैदा होती है।
दूसरा बड़ा मुद्दा मुद्रा अस्थिरता है। रुपये की वैल्यू में उतार-चढ़ाव विदेशी निवेशकों के रिटर्न को प्रभावित कर सकता है। इसके अतिरिक्त, बुनियादी ढांचे की कमियाँ—जैसे भूमि अधिग्रहण में देरी, ग्रिड कनेक्टिविटी की समस्याएं और नियामक स्वीकृति में विलंब—परियोजनाओं की लागत और समयसीमा दोनों को प्रभावित करते हैं।
भविष्य की दिशा और निवेशकों के लिए संकेत
FII का लगातार बढ़ता निवेश भारत की सोलर कंपनियों में यह संकेत देता है कि अंतरराष्ट्रीय निवेशक भारत की ऊर्जा नीति, आर्थिक भविष्य और जलवायु प्रतिबद्धता में विश्वास कर रहे हैं। इसके अलावा, यह भी स्पष्ट हो रहा है कि भारत धीरे-धीरे ग्रीन इकोनॉमी की ओर बढ़ रहा है, जहां सोलर एनर्जी एक मुख्य स्तंभ बनेगी।
इस क्षेत्र में तकनीकी नवाचार, उत्पादन विस्तार और रणनीतिक साझेदारियाँ निवेश के नए अवसर उत्पन्न कर रही हैं। विशेष रूप से, वे कंपनियां जो टेक्नोलॉजी और अनुसंधान में अग्रसर हैं, उनमें निवेशकों की दिलचस्पी तेजी से बढ़ रही है।