
भारत ने वैश्विक सौर फोटोवोल्टिक (Solar Photovoltaic) बाजार में अपनी उपस्थिति को तेजी से मजबूत किया है। Renewable Energy पर बढ़ते वैश्विक फोकस और भारत की प्रचुर सौर ऊर्जा क्षमता ने देश को इस उभरते हुए सेक्टर में एक प्रमुख खिलाड़ी बना दिया है। भारत की सौर निर्यात श्रेणियाँ मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित हैं – असेंबल न किए गए फोटावोल्टिक सेल्स और पूरी तरह से तैयार किए गए सोलर पैनल्स। इन दोनों श्रेणियों में हाल के वर्षों में जबरदस्त वृद्धि देखने को मिली है। हालांकि, भारत ने सौर मॉड्यूल निर्माण में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन सोलर सेल्स के प्रतिस्पर्धी उत्पादन में अब भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिससे भारत को प्रमुख कंपोनेंट्स के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।
ALMM पॉलिसी से घरेलू उत्पादन को नई दिशा
इस अंतर को पाटने और घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने 1 अप्रैल 2024 से ALMM (Approved List of Models and Manufacturers) नीति लागू की। इस नीति के अंतर्गत अब सरकारी सहायता प्राप्त प्रोजेक्ट्स में केवल स्थानीय रूप से निर्मित सोलर पैनल्स का उपयोग अनिवार्य कर दिया गया है। सरकार का लक्ष्य है कि जून 2026 तक इस नीति का दायरा सोलर सेल्स तक भी बढ़ा दिया जाए। इस पहल से घरेलू कंपनियों को अपने उत्पादन को बढ़ाने की प्रेरणा मिली है, और वे बड़े स्तर पर विस्तार कर रही हैं।
जनवरी 2025 में भारत के सोलर मॉड्यूल्स का निर्यात ₹69,784.1 लाख रहा, जबकि पूरे कैलेंडर वर्ष 2024 में कुल सोलर पीवी निर्यात ₹12,94,072.2 लाख तक पहुंच गया। इसमें से ₹12,64,474.79 लाख सोलर मॉड्यूल्स और ₹29,597.41 लाख सोलर सेल्स के निर्यात से आए। सिर्फ जनवरी 2025 में भारत ने ₹1,149.43 लाख के सोलर सेल्स का निर्यात किया।
वैश्विक व्यापार परिदृश्य में बदलाव बना भारत के लिए अवसर
दुनिया भर में सौर ऊर्जा क्षेत्र में बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं, जिससे भारतीय उत्पादकों के लिए नए अवसर उत्पन्न हो रहे हैं। कई देशों ने चीन से आने वाले सौर उत्पादों पर आयात शुल्क (Tariffs) लगा दिए हैं, जिससे व्यापार मार्गों में बदलाव हुआ है और भारत के लिए नए बाजार खुल रहे हैं। अमेरिका ने हाल ही में सभी देशों के सोलर उत्पादों पर उच्च शुल्क लगा दिए हैं, जिसमें चीन को विशेष रूप से निशाना बनाया गया है। इसका उद्देश्य घरेलू उद्योग की सुरक्षा और विदेशी आपूर्ति पर निर्भरता को कम करना है।
इन नए शुल्कों से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं फिर से संरचित हो रही हैं और भारत जैसे देशों के पास अमेरिका और यूरोप जैसे बाजारों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का अवसर मिल रहा है।
चीन की धीमी गति और यूरोप की रफ्तार
चीन अब भी सौर निर्माण में वैश्विक नेता बना हुआ है, खासकर अपनी कम लागत और बड़े पैमाने के उत्पादन के कारण। लेकिन हाल ही में चीन सरकार ने घरेलू सौर सब्सिडी को घटाने का फैसला लिया है, जिससे वहां का उत्पादन धीमा हो सकता है। इसका सीधा लाभ भारत जैसे प्रतिस्पर्धी बाजारों को मिल सकता है।
वहीं यूरोप तेजी से अपने Renewable Energy लक्ष्यों की ओर बढ़ रहा है, जिससे वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं से सोलर पैनल्स की मांग में इजाफा हो रहा है। भारत की बढ़ती उत्पादन क्षमता और प्रतिस्पर्धी लागत इसे एक मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित कर रही है।
आयात शुल्क में बदलाव से घरेलू उद्योग को मिला समर्थन
बदलते वैश्विक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने अपने ताजा बजट में सौर उद्योग को मजबूती देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सोलर मॉड्यूल्स और सोलर सेल्स दोनों पर आयात शुल्क को 20% तक संशोधित किया गया है। इसका उद्देश्य स्थानीय निर्माण को बढ़ावा देना और आवश्यक कंपोनेंट्स की सुलभता को बनाए रखना है।
यह नीति परिवर्तन भारतीय सौर कंपनियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पकड़ को और मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
भारत की वैश्विक सौर बाजार में बढ़ती भूमिका
हालाँकि भारत को अब भी चीन से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन सरकार की नीति समर्थन, बढ़ती घरेलू क्षमताओं और अनुकूल वैश्विक व्यापार वातावरण के चलते भारत का सौर क्षेत्र नई ऊंचाइयों की ओर बढ़ रहा है। तकनीक में निवेश और एक मजबूत निर्यात रणनीति के साथ भारत Renewable Energy के वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है।
यह न केवल आर्थिक विकास को गति देगा बल्कि जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति में भी अहम भूमिका निभाएगा।