
ग्रीन एनर्जी-Green Energy का भविष्य न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव का संकेत दे रहा है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन की चुनौती गहराती जा रही है, वैसे-वैसे रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy स्रोतों की ओर झुकाव बढ़ रहा है। हाल के वर्षों में वैश्विक और भारतीय स्तर पर ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश, नीति निर्माण और तकनीकी नवाचार देखने को मिले हैं, जिससे यह क्षेत्र भविष्य में ऊर्जा उत्पादन, आर्थिक समृद्धि और पर्यावरणीय स्थिरता का मुख्य आधार बनने जा रहा है।
वैश्विक स्तर पर रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy की दिशा और रणनीति
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency – IEA) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि वर्ष 2050 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन (Net Zero Emission) के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रिन्यूएबल एनर्जी का व्यापक स्तर पर उपयोग अनिवार्य है। इसके अंतर्गत सौर, पवन, जल और बायोमास ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता दी जा रही है।
ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस (Bloomberg New Energy Finance – BNEF) की एक अन्य रिपोर्ट बताती है कि आने वाले वर्षों में वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति में रिन्यूएबल स्रोतों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ेगी। इससे न केवल कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आएगी, बल्कि वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा में भी मजबूती आएगी। इस रिपोर्ट के अनुसार, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करना अब सिर्फ पर्यावरण की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी एक लाभकारी विकल्प बन गया है।
भारत में ग्रीन एनर्जी-Green Energy की प्रगति और उपलब्धियां
भारत में ग्रीन एनर्जी का विस्तार पिछले कुछ वर्षों में अभूतपूर्व रहा है। अदानी ग्रीन एनर्जी ने गुजरात के खावड़ा में दुनिया का सबसे बड़ा रिन्यूएबल एनर्जी पार्क स्थापित कर एक ऐतिहासिक पहल की है। यह पार्क भारत की ऊर्जा जरूरतों को हरित स्रोतों से पूरा करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो रहा है।
इसके अलावा भारत सरकार ने 2025 के बजट में ग्रीन एनर्जी के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। केंद्र सरकार द्वारा ग्रीन एनर्जी के लिए 60,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जिससे इस क्षेत्र में निवेशकों का विश्वास बढ़ा है और बड़े पैमाने पर नई परियोजनाएं शुरू हो रही हैं। यह निवेश सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और ऊर्जा भंडारण तकनीकों को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध होगा।
विशेषज्ञों की दृष्टि में ग्रीन एनर्जी का महत्व
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मार्क ज़. जैकब्सन का मानना है कि 100% रिन्यूएबल एनर्जी पर आधारित प्रणाली तकनीकी और आर्थिक रूप से संभव है। उनका शोध यह दर्शाता है कि इस प्रणाली को अपनाने से न केवल ऊर्जा लागत में कमी आएगी बल्कि प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी भारी गिरावट आएगी। जैकब्सन के अनुसार, इस बदलाव से लाखों लोगों को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे और वैश्विक आर्थिक प्रणाली अधिक स्थायी बन सकेगी।
द नेचर कंज़र्वेंसी (The Nature Conservancy) की एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वैश्विक स्तर पर रिन्यूएबल एनर्जी उत्पादन में कम से कम नौ गुना वृद्धि की आवश्यकता है। रिपोर्ट के अनुसार, यदि यह वृद्धि समय पर नहीं होती, तो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोकना असंभव हो सकता है।
ग्रीन एनर्जी के सामने आने वाली चुनौतियाँ
हालांकि ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में कई उपलब्धियाँ हैं, लेकिन इसके समक्ष कुछ गंभीर चुनौतियाँ भी हैं। सबसे प्रमुख चुनौती ग्रिड इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थिरता है। सौर और पवन जैसे स्रोत स्वाभाविक रूप से अनियमित होते हैं, जिससे ऊर्जा आपूर्ति में उतार-चढ़ाव आ सकता है। इस चुनौती से निपटने के लिए ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (Energy Storage Systems) और स्मार्ट ग्रिड तकनीकों (Smart Grid Technologies) का तेजी से विकास आवश्यक है।
दूसरी महत्वपूर्ण चुनौती नीति समर्थन की है। ग्रीन एनर्जी में निवेश को बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट और अनुकूल सरकारी नीतियों की आवश्यकता है। सब्सिडी, कर में छूट और दीर्घकालिक निवेश नीति जैसे उपायों से निवेशकों और उद्योगों को इस क्षेत्र में आकर्षित किया जा सकता है।
भारत का ग्रीन एनर्जी भविष्य
भारत और दुनिया भर में ग्रीन एनर्जी का भविष्य अत्यंत उज्ज्वल प्रतीत होता है। यह क्षेत्र न केवल पर्यावरण की रक्षा करता है, बल्कि आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण बन चुका है। वैश्विक विशेषज्ञों और संगठनों की रिपोर्टें यह संकेत देती हैं कि यदि सरकारें, उद्योग और समाज मिलकर कार्य करें, तो ग्रीन एनर्जी पर आधारित एक टिकाऊ और समृद्ध भविष्य संभव है। इसके लिए जरूरी है कि नीति, तकनीक और पूंजी को समन्वित कर एक स्पष्ट दिशा में कार्य किया जाए।