
भारत में लिथियम-आयन बैटरी निर्माण (Lithium-ion Battery Manufacturing) एक तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र बन गया है, जो इलेक्ट्रिक वाहन-EV, सौर ऊर्जा भंडारण-Solar Energy Storage और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स की बढ़ती मांग के चलते निवेशकों और उद्यमियों के लिए लाभदायक साबित हो रहा है। सरकार की ओर से मिल रहे प्रोत्साहन, तकनीकी प्रगति और बाजार की स्थायी जरूरतों के बीच यह उद्योग देश की Renewable Energy क्रांति में एक अहम भूमिका निभा रहा है।
निर्माण में लगने वाली आधुनिक मशीनरी की भूमिका
लिथियम-आयन बैटरी निर्माण संयंत्र की स्थापना के लिए कई उन्नत मशीनों की आवश्यकता होती है, जो बैटरी की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं। इनमें बैटरी सेल असेंबली मशीन, स्पॉट वेल्डिंग मशीन, बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम (BMS) टेस्टर, चार्जिंग और डिस्चार्जिंग मशीन, एजिंग मशीन, और IR व OCV टेस्टर प्रमुख हैं। ये सभी मशीनें बैटरी निर्माण की प्रक्रिया को स्वचालित बनाती हैं, जिससे उत्पादन दक्षता बढ़ती है और उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार होता है।
भारत में Semco Infratech जैसी कंपनियाँ इन मशीनों की आपूर्ति कर रही हैं और निर्माण प्रक्रिया को डिजिटल और तकनीकी रूप से सशक्त बना रही हैं।
लागत और निवेश का खाका
इस व्यवसाय की शुरुआत के लिए प्रारंभिक पूंजी निवेश उच्च है, लेकिन संभावित लाभ को देखते हुए यह एक दीर्घकालिक निवेश के रूप में देखा जा सकता है। मशीनरी लागत ₹90 लाख से ₹3 करोड़ तक हो सकती है, जो संयंत्र की क्षमता और स्वचालन स्तर पर निर्भर करती है। यदि हम एक पूर्ण संयंत्र की बात करें, जिसमें भूमि, भवन, मशीनरी, स्टाफ और कार्यशील पूंजी शामिल हो, तो कुल परियोजना लागत (Total Capital Investment – TCI) ₹6.5 करोड़ से ₹10.76 करोड़ तक जा सकती है।
उदाहरण के तौर पर, 90 वोल्ट और 180 Ah क्षमता वाले लिथियम-आयन बैटरी पैक की 56 यूनिट प्रति दिन उत्पादन करने वाले संयंत्र की कुल लागत लगभग ₹10.76 करोड़ आंकी गई है। यह निवेश मुख्यतः मेट्रो शहरों, औद्योगिक क्षेत्रों या SEZ क्षेत्रों में किया जा रहा है, जहाँ आधारभूत ढांचा मौजूद है।
लाभ और संभावित रिटर्न
उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार, इस व्यवसाय से मिलने वाला रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट (ROI) 28% से 34% के बीच हो सकता है, जो इसे अन्य विनिर्माण उद्योगों की तुलना में कहीं अधिक आकर्षक बनाता है। व्यवसाय का ब्रेक-ईवन पॉइंट (BEP) संयंत्र की लगभग 62% उत्पादन क्षमता पर आता है, यानी यदि संयंत्र 62% तक अपनी उत्पादन क्षमता पर कार्य कर रहा है, तो उसकी लागत और राजस्व बराबर हो जाते हैं।
यह संतुलन बिंदु तेजी से प्राप्त किया जा सकता है, विशेषकर यदि बाज़ार में पहले से आपूर्ति की गई डील्स, OEM पार्टनरशिप या B2B अनुबंध मौजूद हों। अच्छी रणनीति और संचालन दक्षता के साथ, इस क्षेत्र में वर्षों के भीतर ही मजबूत लाभ कमाया जा सकता है।
लिथियम बैटरी के लिए बढ़ता हुआ भारतीय बाजार
भारत में लिथियम-आयन बैटरी का बाजार पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है और आने वाले समय में इसके और भी विस्तार की पूरी संभावना है। वर्ष 2023 में इसका बाजार आकार ₹2.8 बिलियन था और अनुमान है कि यह 2032 तक ₹8.7 बिलियन तक पहुंच जाएगा, जो कि 12.9% की वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से दर्शाता है कि यह क्षेत्र एक उच्च विकासशील उद्योग है।
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सरकार द्वारा 2030 तक 150 GWh की बैटरी सेल निर्माण क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है और इसके लिए ₹75,000 करोड़ से अधिक का निवेश प्रस्तावित है। यह पहल भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने का अवसर देती है।
निजी कंपनियों का रुझान और उद्योग में प्रवेश
टाटा केमिकल्स, रिलायंस इंडस्ट्रीज, महिंद्रा इलेक्ट्रिक जैसी बड़ी कंपनियाँ इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश कर रही हैं। इनके कदम से यह स्पष्ट होता है कि लिथियम बैटरी निर्माण केवल एक ट्रेंड नहीं, बल्कि भविष्य की जरूरत है। ये कंपनियाँ अपने तकनीकी ज्ञान, सप्लाई चेन नेटवर्क और पूंजी का उपयोग कर बाजार में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
सरकार की योजनाएँ और प्रोत्साहन
PLI स्कीम, FAME योजना, और Make in India मिशन के तहत सरकार बैटरी निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए उद्यमियों को विशेष टैक्स लाभ, सब्सिडी और इन्फ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट प्रदान कर रही है। ये योजनाएँ इस क्षेत्र में प्रवेश करने वाले नए उद्यमियों के लिए प्रेरणा का कार्य कर रही हैं।