
हरित हाइड्रोजन (Green Hydrogen) दुनिया की ऊर्जा क्रांति का नया चेहरा बन रहा है, जिसे “नया फ्यूल किंग” (New Fuel King) के नाम से जाना जा रहा है। भारत भी इस वैश्विक दौड़ में तेजी से कदम बढ़ा रहा है और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में हाइड्रोजन को एक प्रमुख साधन मान रहा है। जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा और सतत विकास की चुनौती को देखते हुए, हाइड्रोजन अब ऊर्जा नीति के केंद्र में है।
हाइड्रोजन ऊर्जा: स्वच्छ भविष्य की कुंजी
हाइड्रोजन ऊर्जा की सबसे बड़ी विशेषता इसका शून्य कार्बन उत्सर्जन (Zero Emission) है। खासतौर पर हरित हाइड्रोजन, जो रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) जैसे सौर और पवन ऊर्जा से पानी के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा उत्पादित किया जाता है, केवल जलवाष्प (Water Vapour) उत्सर्जित करता है। इससे यह पूरी तरह से प्रदूषण रहित और पर्यावरण के लिए अनुकूल ईंधन बनता है।
यह ऊर्जा भंडारण (Energy Storage) के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी भूमिका निभा सकता है। जब सौर और पवन ऊर्जा का उत्पादन आवश्यकता से अधिक होता है, तब उसे संरक्षित कर भविष्य की मांग को पूरा करने के लिए हाइड्रोजन में परिवर्तित किया जा सकता है। इसके उपयोग की विविधता इसे और भी आकर्षक बनाती है – भारी परिवहन (Heavy Transport), विमानन (Aviation), औद्योगिक प्रक्रियाएँ (Industrial Processes) और बिजली उत्पादन (Power Generation) जैसे क्षेत्रों में इसका प्रयोग संभव है, जहाँ पारंपरिक बैटरियाँ सीमित हो जाती हैं।
वैश्विक स्तर पर हाइड्रोजन की रफ्तार
पूरी दुनिया में हाइड्रोजन को लेकर तेज़ी से पहल हो रही है। चीन ने 2024 में हाइड्रोजन चालित बसों और ट्रकों की बिक्री में बाकी सभी देशों को पीछे छोड़ दिया है। इसके साथ ही, उसने एक मजबूत ईंधन स्टेशन नेटवर्क का निर्माण किया है, जिससे हाइड्रोजन आधारित वाहन परिवहन में व्यावसायिक रूप से सफल हो रहे हैं।
फ्रांस ने प्राकृतिक हाइड्रोजन के 46 मिलियन टन के भंडार की खोज की है, जिससे यह देश यूरोप में स्वच्छ ऊर्जा की दौड़ में अग्रणी बनता जा रहा है। वहीं, दक्षिण अमेरिकी देश चिली ने $16 बिलियन की ग्रीन हाइड्रोजन और अमोनिया परियोजना की घोषणा की है, जो 2030 तक वैश्विक आपूर्ति में अहम योगदान देगी।
भारत में हरित हाइड्रोजन के प्रयास
भारत ने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (National Green Hydrogen Mission) के तहत 2070 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन (Net-Zero Carbon Emission) के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए 2030 तक 5 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा है। यह मिशन देश को ऊर्जा आत्मनिर्भरता और स्वच्छ भविष्य की ओर ले जाने वाला एक ऐतिहासिक कदम है।
उत्तर प्रदेश इस दिशा में अग्रणी राज्य बनकर उभरा है, जहाँ 1 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके साथ ही राज्य सरकार ने 1.2 लाख रोजगार के अवसर सृजित करने की भी योजना बनाई है, जिससे प्रदेश भारत के हाइड्रोजन हब (Hydrogen Hub) के रूप में उभर सकता है।
निजी क्षेत्र की कंपनियाँ भी इसमें बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं। एनटीपीसी (NTPC), रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries), अडानी ग्रुप (Adani Group) और इंडियन ऑयल (Indian Oil) जैसी कंपनियाँ उत्पादन, वितरण और हाइड्रोजन अवसंरचना के निर्माण में करोड़ों रुपये का निवेश कर रही हैं। इससे भारत में एक परिपक्व हाइड्रोजन इकोसिस्टम (Hydrogen Ecosystem) का विकास हो रहा है।
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चुनौतियाँ जो समाधान की प्रतीक्षा कर रही हैं
हालाँकि हरित हाइड्रोजन की संभावनाएँ असीम हैं, लेकिन इसके सामने कुछ बड़ी चुनौतियाँ भी हैं। सबसे प्रमुख चुनौती है इसकी उत्पादन लागत। वर्तमान में ग्रीन हाइड्रोजन की लागत $2 प्रति किलोग्राम से अधिक है, जो परंपरागत ईंधनों की तुलना में अधिक है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि 2030 तक यह लागत घटकर $1.5 प्रति किलोग्राम तक आ सकती है, जिससे यह प्रतिस्पर्धात्मक बन सकेगा।
दूसरी बड़ी बाधा है उपयुक्त अवसंरचना की कमी। हाइड्रोजन के सुरक्षित भंडारण और वितरण के लिए एक सशक्त और विश्वसनीय नेटवर्क की आवश्यकता है, जिसमें सरकार और निजी क्षेत्र की साझेदारी अनिवार्य है।
साथ ही, हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था (Hydrogen Economy) के विकास के लिए स्पष्ट और दीर्घकालिक नीतियों की जरूरत है। सरकारी सब्सिडी, टैक्स छूट और निवेश प्रोत्साहन जैसी योजनाएँ इसे गति देने में सहायक सिद्ध हो सकती हैं।
भारत के लिए स्वर्णिम अवसर
हाइड्रोजन ऊर्जा भारत जैसे विकासशील देश के लिए सिर्फ एक ईंधन नहीं, बल्कि एक रणनीतिक अवसर है – ऊर्जा आत्मनिर्भरता, आर्थिक विकास और जलवायु संकट से लड़ाई का प्रभावी उपाय। अगर इसे सही नीतियों, निवेश और तकनीकी नवाचारों से समर्थन मिले, तो यह देश को वैश्विक ऊर्जा मानचित्र पर अग्रणी बना सकता है।
सरकार, उद्योग और समाज तीनों को मिलकर एक साझा विज़न पर कार्य करना होगा ताकि भारत न केवल हाइड्रोजन उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सके, बल्कि इसके निर्यातक देश के रूप में भी स्थापित हो सके।