
भारत में Renewable Energy के क्षेत्र में जबरदस्त परिवर्तन देखने को मिल रहा है, जहां सोलर एनर्जी (Solar Energy) और ग्रीन हाइड्रोजन (Green Hydrogen) दोनों ही निवेशकों को आकर्षित कर रहे हैं। यह दोनों विकल्प ना केवल पर्यावरण अनुकूल हैं बल्कि सरकार द्वारा प्रोत्साहित भी किए जा रहे हैं। हालांकि, इन दोनों के बीच तकनीकी परिपक्वता, जोखिम, रिटर्न और बाजार स्थिरता जैसे कई महत्वपूर्ण अंतर हैं, जिन्हें समझना निवेश से पहले जरूरी है।
सोलर एनर्जी: परिपक्व तकनीक और स्थिर रिटर्न का वादा
भारत में सोलर एनर्जी का विकास तीव्र गति से हो रहा है। अप्रैल 2025 तक देश की सोलर उत्पादन क्षमता 108 गीगावॉट (GW) तक पहुँच चुकी है, जो कुल Renewable Energy का लगभग 47% है। यह आंकड़ा अपने आप में यह दर्शाता है कि सोलर एनर्जी अब भारत के ऊर्जा ढांचे का मुख्य स्तंभ बन चुकी है।
सरकार भी इस दिशा में बड़े कदम उठा रही है। प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना (Pradhan Mantri Surya Ghar Muft Bijli Yojana) के अंतर्गत देश के 1 करोड़ घरों को 300 यूनिट मुफ्त बिजली और ₹78,000 तक की सब्सिडी दी जा रही है। इससे रूफटॉप सोलर इंस्टॉलेशन को व्यापक समर्थन मिल रहा है।
इसके अलावा, बाजार में लागत भी तेजी से कम हो रही है। पिछले एक साल में सोलर पैनलों की कीमतों में 30% की गिरावट आई है, जिससे परियोजनाओं की कुल लागत में भारी कमी देखी गई है। यह निवेशकों के लिए कम पूंजी में अधिक रिटर्न का संकेत है।
बड़ी कंपनियों ने भी इस अवसर को पहचाना है। रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) ने 2025 में 20 GW की सोलर मॉड्यूल फैक्ट्री शुरू करने की घोषणा की है, जिससे भारत में उत्पादन क्षमताएं और बढ़ेंगी।
ग्रीन हाइड्रोजन: भविष्य की ऊर्जा लेकिन जोखिम भी ज्यादा
ग्रीन हाइड्रोजन को भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता की अगली बड़ी क्रांति माना जा रहा है। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (National Green Hydrogen Mission) के तहत 2030 तक 5 मिलियन टन उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है।
इस दिशा में निवेश भी हो रहा है। आंध्र प्रदेश में ₹10,000 करोड़ की लागत से ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया की एक विशाल सुविधा विकसित की जा रही है, जो देश को वैश्विक हाइड्रोजन बाजार में स्थान दिलाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
हालांकि, अभी यह तकनीक अपने शुरुआती चरण में है और इसकी उत्पादन लागत काफी अधिक है। वर्तमान में ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत €4.84 से €6.11 प्रति किलोग्राम है, जिसे 2030 तक घटाकर €1.37 प्रति किलोग्राम करने का लक्ष्य है। यह लागत में कमी तब तक संभव नहीं जब तक उत्पादन स्केल और तकनीक में सुधार नहीं होता।
इस क्षेत्र में जोखिम भी काफी अधिक है। उपयोगकर्ताओं की संख्या सीमित है और मांग अभी स्थिर नहीं है। इसके अलावा, यह पूरा सेक्टर सरकार की नीतियों और सब्सिडी पर काफी हद तक निर्भर है। निवेशकों के लिए यह एक दीर्घकालिक दांव हो सकता है, जिसमें उच्च रिटर्न की उम्मीद के साथ उच्च जोखिम भी निहित है।
निवेशकों के लिए कौन-सा विकल्प बेहतर?
निवेश के दृष्टिकोण से अगर बात की जाए, तो सोलर एनर्जी अभी के लिए अधिक व्यावहारिक विकल्प बनकर उभरता है। यह तकनीकी रूप से परिपक्व है, बाजार में इसकी मांग स्थिर है और सरकारी योजनाओं से इसे व्यापक समर्थन मिल रहा है। साथ ही, यह घरेलू, वाणिज्यिक और औद्योगिक तीनों ही क्षेत्रों में उपयोग के लिए उपयुक्त है।
दूसरी ओर, ग्रीन हाइड्रोजन उन निवेशकों के लिए उपयुक्त है जो दीर्घकालिक नजरिया रखते हैं और उच्च जोखिम सहने की क्षमता रखते हैं। इसके लाभ भविष्य में ज्यादा स्पष्ट होंगे, खासकर तब जब तकनीक परिपक्व होगी और वैश्विक बाजारों में इसकी मांग बढ़ेगी।
आगरा जैसे क्षेत्रों में सोलर एनर्जी का व्यावहारिक लाभ
उत्तर प्रदेश के आगरा जैसे क्षेत्रों में सोलर एनर्जी निवेश का बड़ा अवसर है। यहां धूप भरपूर मात्रा में मिलती है, जिससे रूफटॉप सोलर इंस्टॉलेशन अत्यंत लाभकारी हो सकता है। सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी और मुफ्त बिजली योजनाओं के तहत यहां घरेलू उपभोक्ता और छोटे व्यवसायी सोलर सिस्टम लगाकर न केवल बिजली बिल बचा सकते हैं, बल्कि अतिरिक्त बिजली को ग्रिड में बेचकर कमाई भी कर सकते हैं।