
भारत में पनबिजली परियोजनाओं (Hydropower Projects in India) का विकास तेज़ी से हो रहा है और यह देश के रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) मिशन का एक अहम हिस्सा बन चुका है। हाल के आँकड़ों के अनुसार, भारत में 25 मेगावाट से अधिक क्षमता वाली 197 पनबिजली परियोजनाएं संचालित हो रही हैं। इन परियोजनाओं की कुल स्थापित क्षमता 46,928 मेगावाट है, जबकि छोटी पनबिजली परियोजनाओं (25 मेगावाट तक) की क्षमता 5,100.55 मेगावाट दर्ज की गई है। इस तरह भारत की कुल पनबिजली क्षमता लगभग 52,028 मेगावाट हो चुकी है, जो वैश्विक परिदृश्य में भारत को एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाती है।
निर्माणाधीन परियोजनाएं और 2032 तक के लक्ष्य
भारत सरकार ने पनबिजली क्षेत्र में निवेश को गति देने के लिए कई बड़ी परियोजनाएं शुरू की हैं। वर्तमान में 15 गीगावाट यानी 15,000 मेगावाट क्षमता की पनबिजली परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। साथ ही, 2031-32 तक देश की कुल पनबिजली क्षमता को 67 गीगावाट तक पहुँचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह मौजूदा क्षमता से लगभग 50% की वृद्धि होगी, जिससे भारत का ऊर्जा क्षेत्र और अधिक स्थिर और रिन्यूएबल एनर्जी पर आधारित बन सकेगा।
पंप्ड स्टोरेज परियोजनाओं (Pumped Storage Projects – PSPs) पर भी जोर दिया जा रहा है। फिलहाल 2.7 गीगावाट की PSPs निर्माणाधीन हैं, जबकि अतिरिक्त 50 गीगावाट की परियोजनाएं विभिन्न विकास चरणों में हैं। इससे भारत की ग्रिड स्थिरता और ऊर्जा भंडारण क्षमता में भारी सुधार होने की उम्मीद है।
पनबिजली उत्पादन में उतार-चढ़ाव
साल 2024-25 के दौरान, अप्रैल 2024 से फरवरी 2025 के बीच भारत ने पनबिजली से 1,39,780 मिलियन यूनिट्स बिजली का उत्पादन किया, जो पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 10% अधिक है। यह वृद्धि देश के बढ़ते ऊर्जा मांग को पूरा करने में सहायक रही है।
हालांकि, इससे पहले 2023-24 में कम वर्षा और प्राकृतिक आपदाओं के कारण पनबिजली उत्पादन में 16.3% की गिरावट आई थी। इस गिरावट के चलते कुल बिजली उत्पादन में पनबिजली की हिस्सेदारी घटकर केवल 8.3% रह गई थी। ऐसे उतार-चढ़ाव प्राकृतिक कारकों पर पनबिजली की निर्भरता को उजागर करते हैं, जिससे दीर्घकालिक ऊर्जा योजना में विविधीकरण की आवश्यकता और भी स्पष्ट हो जाती है।
देश की प्रमुख पनबिजली परियोजनाएं
भारत में कई प्रतिष्ठित पनबिजली परियोजनाएं हैं जो देश के ऊर्जा परिदृश्य को आकार देती हैं। टिहरी डैम (Tehri Dam) उत्तराखंड में स्थित है और 2,400 मेगावाट की स्थापित क्षमता के साथ भारत की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना है।
महाराष्ट्र में स्थित कोयना परियोजना (Koyna Project) 1,960 मेगावाट की क्षमता के साथ पश्चिमी भारत में ऊर्जा आपूर्ति की रीढ़ मानी जाती है। गुजरात के सरदार सरोवर डैम (Sardar Sarovar Dam) की क्षमता 1,450 मेगावाट है और यह नर्मदा नदी पर निर्मित है। वहीं हिमाचल प्रदेश का भाखड़ा नांगल डैम (Bhakra Nangal Dam) सतलुज नदी पर स्थित है और इसकी क्षमता 1,379 मेगावाट है।
ये सभी परियोजनाएं न केवल बिजली उत्पादन में बल्कि सिंचाई और पेयजल आपूर्ति जैसी बहुआयामी सेवाओं में भी अहम भूमिका निभाती हैं।
सार्वजनिक उपक्रमों की भूमिका
भारत में पनबिजली उत्पादन का लगभग 92.5% हिस्सा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के हाथों में है। इनमें प्रमुख रूप से नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन (NHPC), नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन (NEEPCO), सतलुज जल विद्युत निगम (SJVNL), टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (THDC) और एनटीपीसी-हाइड्रो (NTPC-Hydro) शामिल हैं।
इन उपक्रमों ने पनबिजली क्षेत्र में नवाचार, नई तकनीकों के प्रयोग और पर्यावरणीय मानकों का पालन करते हुए कई उपलब्धियाँ हासिल की हैं। इनके निरंतर प्रयासों से भारत पनबिजली उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ रहा है।
भविष्य की राह
भारत में पनबिजली क्षेत्र का भविष्य उज्ज्वल दिख रहा है, विशेषकर सरकार की प्रतिबद्धता और निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए। निर्माणाधीन परियोजनाएं और प्रस्तावित पंप्ड स्टोरेज योजनाएं न केवल भारत के ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेंगी बल्कि रिन्यूएबल एनर्जी के लक्ष्य को भी पूरा करने में सहायक होंगी। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच, पनबिजली एक स्थायी और पर्यावरण मित्र ऊर्जा स्रोत के रूप में भारत के ऊर्जा मिश्रण में अपनी भूमिका को और मजबूत करेगी।