2030 तक भारत की ग्रीन एनर्जी यात्रा – क्या निवेशकों के लिए शुरू हो चुका है ‘गोल्डन डिकेड’?

भारत की Renewable Energy यात्रा ने निवेश के नए द्वार खोल दिए हैं, 500 GW लक्ष्य, $500 बिलियन अवसर और अरबों के कॉर्पोरेट प्लान्स। जानिए कैसे सौर ऊर्जा, हाइड्रोजन और बैटरी स्टोरेज में बन सकते हैं आप अगले बड़े निवेशक!

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Written by Rohit Kumar

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2030 तक भारत की ग्रीन एनर्जी यात्रा – क्या निवेशकों के लिए शुरू हो चुका है ‘गोल्डन डिकेड’?
2030 तक भारत की ग्रीन एनर्जी यात्रा – क्या निवेशकों के लिए शुरू हो चुका है ‘गोल्डन डिकेड’?

भारत की ग्रीन एनर्जी यात्रा 2030 तक एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। तेजी से बढ़ती नीति पहल, सरकार की आक्रामक योजना, और निजी कंपनियों की सक्रिय भागीदारी ने इसे निवेशकों के लिए एक अद्वितीय अवसर में बदल दिया है। देश का उद्देश्य है कि 2030 तक 500 GW की Renewable Energy क्षमता हासिल की जाए, जो इसे दुनिया के सबसे बड़े स्वच्छ ऊर्जा बाजारों में से एक बना सकता है।

2030 तक 500 गीगावाट Renewable Energy लक्ष्य: भारत की नीति दृष्टि

भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, जिसमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत और जैव ऊर्जा को शामिल किया गया है। यह लक्ष्य पेरिस समझौते के तहत भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इस दिशा में ‘प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना’ जैसी योजनाओं के तहत 1 करोड़ घरों को सौर रूफटॉप सिस्टम के माध्यम से 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की योजना बनाई गई है। नीति आयोग और ऊर्जा मंत्रालय द्वारा तैयार रोडमैप इस लक्ष्य को हासिल करने में सहायक बन रहे हैं।

हरित निवेश में रिकॉर्ड वृद्धि: ₹31 लाख करोड़ तक पहुंचेगा निवेश

CRISIL की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2025 से 2030 के बीच भारत में हरित निवेश में पांच गुना वृद्धि देखी जाएगी, जो ₹31 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है। यह न केवल निवेशकों के लिए बड़े पैमाने पर पूंजीगत लाभ का अवसर है, बल्कि भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम भी है। Economic Times की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने कुल $500 बिलियन के Clean Energy से जुड़े निवेश अवसरों की पेशकश की है, जिसमें हरित हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक वाहन-ईवी (EV) और अक्षय ऊर्जा परियोजनाएं शामिल हैं।

कॉर्पोरेट क्षेत्र की बड़ी हिस्सेदारी: अरबों डॉलर की योजनाएं

भारत की Renewable Energy यात्रा में निजी कंपनियां भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। गुजरात हाइब्रिड रिन्यूएबल एनर्जी पार्क, जो 30 GW की क्षमता के साथ दुनिया का सबसे बड़ा हाइब्रिड ऊर्जा पार्क है, इस परिवर्तन की मिसाल है। यह पार्क 18 मिलियन घरों को बिजली उपलब्ध कराएगा।

वहीं JSW Energy ने 2030 तक अपनी Renewable Energy क्षमता को 30 GW तक बढ़ाने और 40 GWh की ऊर्जा भंडारण क्षमता प्राप्त करने के लिए ₹1.3 लाख करोड़ के निवेश की योजना बनाई है। ONGC ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए 2030 तक Renewable Energy परियोजनाओं में $11.5 बिलियन के निवेश की घोषणा की है। यह पारंपरिक तेल और गैस कंपनियों के हरित ऊर्जा की ओर झुकाव को दर्शाता है।

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उभरती तकनीकों में भारत का फोकस: हरित हाइड्रोजन और BESS

भारत का अगला बड़ा दांव Green Hydrogen Mission पर है, जिसका उद्देश्य 2030 तक 5 मिलियन टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करना है। यह न केवल देश की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा बल्कि वैश्विक बाजार में भारत को एक बड़ा निर्यातक भी बना सकता है। Ernst & Young (EY) की रिपोर्ट के अनुसार, यह मिशन उद्योगों को डीकार्बनाइज करने और नई नौकरियों के सृजन में भी सहायक होगा।

वहीं, Battery Energy Storage Systems (BESS) का भी तेजी से विस्तार हो रहा है। 2023 में $481.5 मिलियन का यह बाजार 2030 तक $5.3 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। ग्रिड स्थिरता और सौर-पवन ऊर्जा के बेहतर एकीकरण में BESS की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

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निवेशकों के लिए प्रमुख अवसर: राज्यवार रुझान

भारत के विभिन्न राज्य Renewable Energy में निवेश के लिए तेजी से उभर रहे हैं। राजस्थान, गुजरात, और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य बड़े पैमाने की सौर और पवन परियोजनाओं में अग्रणी हैं। वहीं, स्मार्ट ग्रिड और ऊर्जा प्रबंधन प्रणालियों में भी निवेश का आकर्षक अवसर मौजूद है।

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Green Hydrogen और EV इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में कंपनियां तेजी से कदम बढ़ा रही हैं, जिससे इन क्षेत्रों में निवेशकों को शुरुआती लाभ का मौका मिल सकता है। Battery Storage, EV चार्जिंग स्टेशन और स्मार्ट डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क पर काम करने वाली कंपनियों में भागीदारी से उच्च रिटर्न की संभावना है।

चुनौतियों का सामना: ग्राउंड रियलिटी और जोखिम

हालांकि यह क्षेत्र अत्यधिक संभावनाओं से भरा है, लेकिन कुछ प्रमुख चुनौतियां भी हैं जिन पर निवेशकों को नजर रखनी चाहिए। भूमि अधिग्रहण और Grid Integration सबसे बड़ी बाधाएं बनी हुई हैं। बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण में देरी और स्थानीय विरोध परियोजनाओं की गति को प्रभावित कर सकते हैं।

इसके अलावा, सौर पैनलों और बैटरी सेल्स के आयात में चीन पर अत्यधिक निर्भरता भी एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। इससे आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है और लागत बढ़ सकती है। निवेशकों के लिए यह जरूरी है कि वे नीति स्थिरता, वित्तीय स्पष्टता और तकनीकी नवाचारों पर लगातार निगरानी रखें।

ग्रीन एनर्जी में भारत का भविष्य सुनहरा लेकिन विवेकपूर्ण निवेश जरूरी

2030 तक भारत की ग्रीन एनर्जी यात्रा न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से, बल्कि आर्थिक और भू-राजनीतिक नजरिए से भी एक ‘गोल्डन डिकेड’ के रूप में उभर रही है। सरकार की प्रतिबद्धता, नीति समर्थन, कॉर्पोरेट भागीदारी और तकनीकी नवाचार इस क्षेत्र को एक स्थायी और उच्च रिटर्न वाला निवेश क्षेत्र बना रहे हैं। हालांकि, निवेशकों को विवेकपूर्ण रणनीति अपनाते हुए जोखिम प्रबंधन और लॉन्ग टर्म पर्सपेक्टिव को प्राथमिकता देनी चाहिए।

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Rohit Kumar
रोहित कुमार सोलर एनर्जी और रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में अनुभवी कंटेंट राइटर हैं, जिन्हें इस क्षेत्र में 7 वर्षों का गहन अनुभव है। उन्होंने सोलर पैनल इंस्टॉलेशन, सौर ऊर्जा की अर्थव्यवस्था, सरकारी योजनाओं, और सौर ऊर्जा नवीनतम तकनीकी रुझानों पर शोधपूर्ण और सरल लेखन किया है। उनका उद्देश्य सोलर एनर्जी के प्रति जागरूकता बढ़ाना और पाठकों को ऊर्जा क्षेत्र के महत्वपूर्ण पहलुओं से परिचित कराना है। अपने लेखन कौशल और समर्पण के कारण, वे सोलर एनर्जी से जुड़े विषयों पर एक विश्वसनीय लेखक हैं।

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