
भारत अब 50% गैर-फॉसिल ऊर्जा (Non-Fossil Energy) की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है और यह ग्रीन एनर्जी-Green Energy के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, देश की कुल स्थापित विद्युत क्षमता का लगभग 48% अब गैर-फॉसिल स्रोतों से आता है। इसमें सौर ऊर्जा (Solar Energy), पवन ऊर्जा (Wind Energy), जलविद्युत (Hydropower), जैव ऊर्जा (Bio Energy) और परमाणु ऊर्जा (Nuclear Energy) शामिल हैं।
स्थापित क्षमता में गैर-फॉसिल ऊर्जा का योगदान
सरकारी आंकड़ों की मानें तो मार्च 2025 तक भारत की कुल स्थापित विद्युत क्षमता 475.21 गीगावाट (GW) तक पहुंच गई है, जिसमें से 228.28 GW गैर-फॉसिल स्रोतों से उत्पादित होती है। इसका अर्थ है कि भारत अपने ‘पंचामृत’ संकल्पों के तहत तय किए गए 2030 तक 500 GW लक्ष्य की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ रहा है।
FY 2024-25 में रिन्यूएबल एनर्जी में रिकॉर्ड वृद्धि
भारत ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में 29.52 GW की रिन्यूएबल एनर्जी क्षमता जोड़ी, जो देश के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी वार्षिक वृद्धि है। इसमें सोलर पावर की भूमिका सबसे अहम रही है। पिछले साल 23.83 GW सोलर ऊर्जा जोड़ी गई, जिससे कुल सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता 105.65 GW हो गई है।
पवन और अन्य स्रोतों की भी अहम भूमिका
वहीं, पवन ऊर्जा क्षेत्र में भी मजबूती देखी गई है। FY25 में 3.4 GW नई विंड पावर स्थापित की गई, जिससे कुल पवन ऊर्जा क्षमता 50.04 GW पर पहुंच गई है। इसके अलावा 47.73 GW जलविद्युत, 10.74 GW जैव ऊर्जा और 8.18 GW परमाणु ऊर्जा का योगदान भी इस हरित यात्रा को मजबूत बना रहा है।
सरकारी योजनाएं और निवेश की दिशा
सरकार की प्रमुख योजनाएं जैसे ‘पीएम-सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना’ और रिन्यूएबल एनर्जी के लिए बोली-प्रक्रिया में तेजी से भारत में हरित ऊर्जा निवेश को प्रोत्साहन मिल रहा है। अकेले FY25 में सरकार ने 44 GW रिन्यूएबल प्रोजेक्ट्स के लिए निविदाएं जारी की हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सराहना
भारत की यह प्रगति केवल ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव नहीं ला रही, बल्कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक संघर्ष में देश को अग्रणी बना रही है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) और संयुक्त राष्ट्र ने भी भारत की इस उपलब्धि की सराहना की है।
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हरित ऊर्जा के रास्ते की चुनौतियां
हालांकि, यह रास्ता पूरी तरह आसान नहीं है। भारत को 2030 के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हर साल करीब 68 अरब डॉलर के निवेश की जरूरत होगी, जबकि अभी यह निवेश अपेक्षाकृत कम है। इसके अलावा भूमि अधिग्रहण, ग्रिड इन्फ्रास्ट्रक्चर और नीतिगत बाधाएं भी इस मार्ग में चुनौती बन सकती हैं।
एक्सपर्ट्स की राय
भारत के 50% गैर-फॉसिल ऊर्जा लक्ष्य के बेहद करीब पहुंचने पर ऊर्जा और पर्यावरण विशेषज्ञों ने इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया है, जो न केवल ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम है बल्कि वैश्विक जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में भी निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
- IEA (International Energy Agency) के अनुसार, “भारत की Renewable Energy ग्रोथ दर विश्व में सबसे तेज़ है। सौर और पवन ऊर्जा की तेजी से बढ़ती हिस्सेदारी दर्शाती है कि देश ने सही दिशा में नीति निर्धारण किया है। 2030 का लक्ष्य संभव है अगर यह रफ्तार बनी रही।”
- नीति आयोग के ऊर्जा सलाहकार डॉ. अरविंद कुमार कहते हैं, “भारत का 48% से ज्यादा स्थापित क्षमता का गैर-फॉसिल स्रोतों से होना दिखाता है कि हम कोयले पर निर्भरता से धीरे-धीरे बाहर निकल रहे हैं। यह ‘Net Zero by 2070’ लक्ष्य की आधारशिला है।”
- टेरी (TERI – The Energy and Resources Institute) की डायरेक्टर जनरल डॉ. लीना श्रीनिवासन का मानना है, “ग्रीन एनर्जी में भारत की प्रगति अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को आकर्षित कर रही है। अब जरूरत है स्मार्ट ग्रिड, स्टोरेज और स्थायी नीतियों की।”
- CSE (Centre for Science and Environment) के निदेशक सुनील दहिया ने कहा, “यह सिर्फ ऊर्जा परिवर्तन नहीं, बल्कि एक सामाजिक और आर्थिक क्रांति है। इससे ग्रामीण रोजगार, प्रदूषण में कमी और ऊर्जा सुरक्षा जैसे कई लाभ सामने आएंगे।”
- IEEFA (Institute for Energy Economics and Financial Analysis) के विशेषज्ञ विनय रस्तोगी ने वित्तीय पहलू पर कहा, “हालांकि भारत को 2030 तक हर साल 68 बिलियन डॉलर निवेश की जरूरत है, लेकिन सरकार की नीतियां और निजी भागीदारी इस अंतर को धीरे-धीरे पाट सकती हैं।”
2030 से पहले वैश्विक नेतृत्व का मौका
फिर भी, अगर सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर सहयोग जारी रखते हैं, तो भारत न सिर्फ 2030 का लक्ष्य हासिल कर सकता है, बल्कि रिन्यूएबल एनर्जी के वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में भी उभरेगा।
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