
आज के समय में जब रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy की ओर झुकाव लगातार बढ़ रहा है, सोलर एनर्जी सिस्टम (Solar Energy System) एक महत्वपूर्ण विकल्प बनकर सामने आया है। लेकिन जब कोई उपभोक्ता अपने घर या व्यवसाय के लिए सौर ऊर्जा प्रणाली लगाने की सोचता है, तो सबसे पहले जो सवाल उठता है, वह है कि ऑन-ग्रिड (On-Grid) और ऑफ-ग्रिड (Off-Grid) सिस्टम में क्या फर्क है और किस स्थिति में बैटरी की आवश्यकता होती है। यह समझना बेहद जरूरी हो जाता है क्योंकि यही फैसला आपके खर्च, सुविधा और ऊर्जा आत्मनिर्भरता को तय करता है।
ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम: कम खर्च में नेट मीटरिंग का फायदा
ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम एक ऐसा सिस्टम होता है जो सीधे बिजली ग्रिड से जुड़ा होता है। इस प्रणाली में जब दिन के समय सौर पैनल बिजली उत्पन्न करते हैं, तो सबसे पहले वही बिजली आपके घर के उपकरणों को चलाने में इस्तेमाल होती है। अगर बिजली की खपत उस समय कम होती है, तो अतिरिक्त बिजली को ग्रिड में भेज दिया जाता है। यही वजह है कि इसे ग्रिड-इंटरैक्टिव सिस्टम भी कहा जाता है।
इस प्रकार के सिस्टम में बैटरी की कोई आवश्यकता नहीं होती। यदि मौसम खराब है या रात का समय है जब सौर पैनल बिजली उत्पन्न नहीं कर रहे, तो आप सीधे ग्रिड से बिजली ले सकते हैं। इसका एक और बड़ा लाभ है नेट मीटरिंग। इसके तहत यदि आपने ग्रिड में अतिरिक्त बिजली भेजी है, तो वह आपके बिजली बिल से समायोजित हो जाती है।
ऑन-ग्रिड प्रणाली की सबसे खास बात यह है कि इसकी लागत ऑफ-ग्रिड सिस्टम की तुलना में काफी कम होती है क्योंकि इसमें बैटरी या चार्जिंग सिस्टम की जरूरत नहीं होती। साथ ही, इसका रखरखाव भी अपेक्षाकृत आसान होता है। हालांकि, इसमें एक कमी भी है—यदि ग्रिड में बिजली चली जाती है, तो यह सिस्टम भी काम करना बंद कर देता है। ऐसा सुरक्षा कारणों से होता है ताकि आपकी प्रणाली ग्रिड में काम कर रहे इंजीनियरों को नुकसान न पहुंचाए।
ऑफ-ग्रिड सोलर सिस्टम: बिजली कटौती में भी पूरी आत्मनिर्भरता
ऑफ-ग्रिड सोलर सिस्टम एक पूरी तरह से स्वायत्त प्रणाली है जो किसी भी प्रकार से ग्रिड से जुड़ी नहीं होती। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में उपयोगी होती है जहां ग्रिड की बिजली या तो उपलब्ध नहीं है या बार-बार कटती रहती है, जैसे कि दूर-दराज के ग्रामीण इलाके या पहाड़ी क्षेत्र।
इस प्रणाली की सबसे जरूरी विशेषता है बैटरी की उपस्थिति। दिन में जब सौर पैनल बिजली उत्पन्न करते हैं, तो वह बैटरी में संग्रहित हो जाती है और फिर रात या बादलों के मौसम में काम आती है। इस कारण से, इस सिस्टम में बैटरी, इन्वर्टर और चार्ज कंट्रोलर जैसे कई अतिरिक्त उपकरणों की जरूरत होती है, जिससे इसकी शुरुआती लागत ऑन-ग्रिड सिस्टम की तुलना में अधिक हो जाती है।
हालांकि इसकी लागत अधिक होती है, लेकिन इसके फायदे भी उतने ही बड़े हैं। सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह आपको पूरी तरह से ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बना देता है। बिजली कटने पर भी आपकी पावर सप्लाई चालू रहती है। लेकिन इसके साथ ही, बैटरी की देखभाल, समय-समय पर उसका रिप्लेसमेंट और अन्य तकनीकी मेंटेनेंस की जरूरत होती है, जिससे रखरखाव की लागत बढ़ जाती है।
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आपकी जरूरत और स्थान के अनुसार कौन-सा सिस्टम सही?
ऑन-ग्रिड और ऑफ-ग्रिड सिस्टम में से कौन-सा आपके लिए सही रहेगा, यह पूरी तरह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कहां रहते हैं और आपकी बिजली की आवश्यकता कितनी है। यदि आप शहर में रहते हैं जहां बिजली की आपूर्ति स्थिर है और पावर कट की समस्या बहुत कम होती है, तो ऑन-ग्रिड सिस्टम एक बेहतर और सस्ता विकल्प हो सकता है। इसमें नेट मीटरिंग की सुविधा के कारण आपके बिजली बिल में भी काफी कमी आती है।
दूसरी ओर, यदि आप ऐसे इलाके में रहते हैं जहां बिजली कटौती आम है या आप खुद को पूरी तरह ऊर्जा के मामले में स्वतंत्र बनाना चाहते हैं, तो ऑफ-ग्रिड सिस्टम आपके लिए उपयुक्त रहेगा। हालांकि इसमें शुरुआती लागत अधिक होगी, लेकिन यह बिजली की उपलब्धता के लिए किसी बाहरी स्रोत पर निर्भर नहीं रहता।
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सरकार की योजनाएं और सब्सिडी: सोलर अपनाना हुआ और आसान
भारत सरकार ने रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। प्रधानमंत्री कुसुम योजना (PM-KUSUM) और रूफटॉप सोलर स्कीम के तहत ऑन-ग्रिड सिस्टम को सब्सिडी और नेट मीटरिंग जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं। वहीं, जो उपभोक्ता ऑफ-ग्रिड सिस्टम लगाना चाहते हैं, उनके लिए भी विशेष सब्सिडी योजनाएं चलाई जा रही हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां बिजली की सुविधा सीमित है।
इन योजनाओं का मकसद है कि अधिक से अधिक लोग सोलर एनर्जी की ओर आकर्षित हों और भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में योगदान दें। सरकारी सहायता से अब सोलर सिस्टम की लागत पहले की तुलना में काफी कम हो गई है, जिससे आम उपभोक्ता भी इसे लगाने के बारे में गंभीरता से सोचने लगे हैं।