
बिजली की बढ़ती कीमतों और रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy की ओर बढ़ते रुझान के बीच एक अहम सवाल अक्सर सामने आता है—क्या बिना सब्सिडी सोलर सिस्टम लगाना वाकई फायदेमंद है या यह निवेश घाटे का सौदा बन सकता है? केंद्र सरकार और राज्य सरकारें कई योजनाओं के तहत घरेलू और व्यावसायिक उपयोग के लिए सोलर सिस्टम पर सब्सिडी देती हैं, लेकिन कई बार यह सब्सिडी तुरंत उपलब्ध नहीं होती या प्रक्रिया जटिल होती है। ऐसे में क्या बिना सरकारी सहायता के सोलर पैनल लगाना समझदारी है? आइए इस सवाल की तह तक चलते हैं।
सोलर सिस्टम की लागत और लाभ
आज के समय में एक सामान्य 3kW सोलर सिस्टम की लागत लगभग ₹1.5 लाख से ₹2 लाख तक होती है। अगर इसे बिना सब्सिडी के लगवाया जाए, तो यह लागत थोड़ी ज्यादा महसूस हो सकती है। वहीं 5kW सिस्टम ₹3 लाख तक का पड़ सकता है। लेकिन इसे सिर्फ खर्च के रूप में नहीं, एक निवेश के रूप में देखना ज्यादा सही होगा।
एक औसत सोलर पैनल की उम्र 25 साल होती है और यह सालाना औसतन 1,200 यूनिट प्रति kW बिजली उत्पन्न कर सकता है। ऐसे में 3kW सिस्टम सालाना लगभग 3,600 यूनिट बिजली पैदा करेगा। अगर आप प्रति यूनिट बिजली का औसतन ₹8 का खर्च मानें, तो एक साल में ₹28,800 तक की बचत हो सकती है। यानी 5 से 6 साल में आपका निवेश वसूल हो जाता है, और इसके बाद लगभग 20 साल तक मुफ्त बिजली मिलती है।
सब्सिडी क्यों जरूरी मानी जाती है?
सरकारी सब्सिडी का मकसद ज्यादा से ज्यादा लोगों को रिन्यूएबल एनर्जी की तरफ आकर्षित करना है। अभी देश में कई राज्यों में 40% तक की सब्सिडी घरेलू उपयोग के लिए उपलब्ध है। यह सीधे उपभोक्ता के बैंक खाते में ट्रांसफर की जाती है या इंस्टॉलेशन के समय लागत से घटा दी जाती है।
लेकिन इसकी प्रक्रिया काफी जटिल है—अलग-अलग पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन, आवेदन की स्वीकृति, डिस्कॉम से निरीक्षण और फिर सब्सिडी जारी होने में 3 से 6 महीने तक का समय लग सकता है। यही वजह है कि बहुत से लोग बिना सब्सिडी सिस्टम लगवाने का विकल्प चुनते हैं।
क्या बिना सब्सिडी सोलर सिस्टम लगवाना समझदारी है?
बिना सब्सिडी सोलर सिस्टम लगवाना कई मामलों में फायदेमंद साबित हो सकता है:
- तेजी से इंस्टॉलेशन: सब्सिडी की प्रक्रिया में समय लगता है, लेकिन बिना सब्सिडी के आप निजी कंपनियों से तुरंत इंस्टॉलेशन करवा सकते हैं।
- कम कागजी झंझट: सब्सिडी लेने के लिए कई तरह की मंजूरी और दस्तावेज़ों की जरूरत होती है, जबकि बिना सब्सिडी इंस्टॉलेशन में यह सब नहीं होता।
- ब्रांड और गुणवत्ता की आज़ादी: सब्सिडी आधारित सिस्टम में कुछ खास ब्रांड और एजेंसियों की बाध्यता होती है, जबकि निजी इंस्टॉलेशन में आप बेहतर क्वालिटी और पसंद के अनुसार ब्रांड चुन सकते हैं।
हालांकि, इसमें लागत थोड़ी ज्यादा होती है, लेकिन लॉन्ग टर्म में यह फर्क कम हो जाता है।
शहरों बनाम ग्रामीण इलाकों में क्या फर्क है?
ग्रामीण इलाकों में बिजली की समस्या और कटौती ज्यादा होती है, वहां सोलर सिस्टम ज्यादा प्रभावी हो सकते हैं। लेकिन वहां सब्सिडी प्रक्रिया और इंस्टॉलेशन सपोर्ट कमज़ोर हो सकता है। वहीं शहरी क्षेत्रों में जहां बिजली नियमित रूप से मिलती है, वहां सोलर सिस्टम का उपयोग बिल घटाने में सहायक होता है।
फाइनेंसिंग विकल्प: बिना सब्सिडी के भी आसान
बिना सब्सिडी सोलर सिस्टम की लागत को कम करने के लिए कई बैंकों और एनबीएफसी द्वारा लोन विकल्प उपलब्ध हैं। कुछ कंपनियां EMI पर सोलर पैनल इंस्टॉलेशन का विकल्प भी देती हैं, जिससे एक साथ बड़ी राशि खर्च किए बिना भी सिस्टम लगवाना संभव है।
पर्यावरणीय दृष्टिकोण से बड़ा लाभ
बिना सब्सिडी लगवाए भी अगर एक परिवार सोलर एनर्जी को अपनाता है, तो वह सालाना लगभग 2 से 3 टन CO2 उत्सर्जन को कम कर सकता है। यह न सिर्फ पर्यावरण के लिए बल्कि देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी अहम कदम है।
नतीजा: फैसला सोच-समझकर लें
अगर आप एक स्थायी और लॉन्ग टर्म निवेश की सोच रहे हैं, तो बिना सब्सिडी सोलर सिस्टम लगवाना घाटे का सौदा नहीं है। यह बिजली खर्चों में कटौती, पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर एक मजबूत कदम है। हालांकि, अगर आपके राज्य में सब्सिडी आसानी से उपलब्ध है और आप प्रक्रिया का इंतज़ार कर सकते हैं, तो सब्सिडी का लाभ लेना भी एक अच्छा विकल्प है।