
प्रदेश में सोलर पम्प वितरण योजना के तहत सरकार ने अब किसानों के सोलर प्लांट की जियो टैगिंग अनिवार्य कर दी है। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि सब्सिडी के नाम पर हो रहे फर्जीवाड़े पर रोक लगाई जा सके। मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व वाली सरकार ने Renewable Energy सेक्टर में पारदर्शिता लाने के लिए यह महत्त्वपूर्ण फैसला लिया है। अब किसानों को मिलने वाले सोलर पम्प (Solar Pump) के साथ ही उनकी लोकेशन का डिजिटल रिकार्ड भी दर्ज किया जाएगा।
नियमों का हुआ निर्धारण, जियो टैगिंग से रोकी जाएगी डुप्लीकेसी
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, जिन किसानों को सोलर पम्प दिए जाएंगे उनके सोलर प्लांट की जियो टैगिंग की जाएगी। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि कोई भी किसान एक से अधिक बार अनुदान (Subsidy) का लाभ न उठा सके। साथ ही बिजली कनेक्शन और पम्प की डुप्लीकेट प्रविष्टियों से राहत मिलेगी।
मार्जिन मनी को लेकर हुए स्पष्ट प्रावधान
योजना में यह भी तय किया गया है कि यदि किसान 3 हार्स पावर (HP) तक का सोलर पम्प लगाते हैं तो उन्हें कुल लागत का 5 प्रतिशत बतौर मार्जिन मनी जमा करना होगा। वहीं 3 एचपी से अधिक क्षमता वाले पम्प के लिए किसानों को 10 प्रतिशत मार्जिन मनी जमा करनी होगी। योजना मार्च 2028 तक लागू रहेगी और इसी अवधि तक प्रधानमंत्री कृषक मित्र सूर्य योजना के अंतर्गत कार्य किया जाएगा।
जनवरी में मिली थी कैबिनेट से मंजूरी
24 जनवरी 2025 को हुई कैबिनेट बैठक में इस योजना को मंजूरी दी गई थी। इस योजना को भारत सरकार की कुसुम योजना के घटक के रूप में लागू किया गया है। इसके तहत सोलर एनर्जी (Solar Energy) को बढ़ावा देने के साथ किसानों को सिंचाई में आत्मनिर्भर बनाना उद्देश्य है। 5 और 7 हार्स पावर के पम्प उन्हीं किसानों को दिए जाएंगे जिनके पास पहले से स्थायी विद्युत कनेक्शन नहीं है।
क्यूआर कोड और बोर्ड से होगी जानकारी सार्वजनिक
प्रत्येक सोलर पम्प पर योजना का नाम और दिए गए अनुदान का स्पष्ट उल्लेख किया जाएगा। साथ ही उस पर एक QR कोड भी लगाया जाएगा जिससे योजना की पूरी जानकारी मोबाइल स्कैन से मिल सकेगी। इससे पारदर्शिता और निगरानी की व्यवस्था और मजबूत होगी।
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दो चरणों में दिया जाएगा लाभ
योजना दो चरणों में क्रियान्वित होगी। पहले चरण में सिर्फ उन किसानों को लाभ दिया जाएगा जिनके पास कोई विद्युत कनेक्शन नहीं है। दूसरे चरण में उन किसानों को शामिल किया जाएगा जो पहले से स्थायी विद्युत कनेक्शन का उपयोग कर रहे हैं। विद्युत वितरण कंपनियों द्वारा 2023-24 और 2024-25 के दौरान लिए गए कनेक्शनों की आधार और समग्र ई-केवाईसी से जमीन की जानकारी निकाली जाएगी और उसी आधार पर सब्सिडी लाभार्थी तय किए जाएंगे।
सौर ऊर्जा का खेती के अलावा अन्य उपयोग भी संभव
विभागीय आंकड़ों के अनुसार एक सोलर पैनल साल में औसतन 330 दिन और 8 घंटे प्रतिदिन ऊर्जा उत्पन्न करता है, जबकि खेती के लिए मात्र 150 दिन ही पम्पिंग की जरूरत होती है। ऐसे में बची हुई सौर ऊर्जा का उपयोग चाफ कटर, आटा चक्की, ड्रायर, कोल्ड स्टोरेज और बैटरी चार्जिंग जैसे अन्य कार्यों में किया जा सकेगा। यह न केवल किसानों की उत्पादकता बढ़ाएगा बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति को भी सशक्त बनाएगा।
ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम को मिलेगा बढ़ावा
सोलर पम्प के साथ-साथ ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर सिस्टम के उपयोग को भी प्राथमिकता दी जाएगी। इसके लिए कृषक कल्याण विभाग, उद्यानिकी विभाग और खाद्य प्रसंस्करण विभाग मिलकर काम करेंगे। इससे जल की बचत के साथ-साथ सिंचाई का क्षेत्रफल बढ़ाया जा सकेगा।
राज्य और जिला स्तर पर बनेगी निगरानी कमेटी
योजना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राज्य और जिला स्तर पर कमेटियाँ गठित की जाएंगी। राज्य स्तरीय कमेटी की अध्यक्षता मुख्य सचिव करेंगे जबकि सदस्य सचिव के रूप में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा विभाग के सचिव कार्य करेंगे। इसके अलावा ऊर्जा, वित्त, नगरीय विकास, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समेत अन्य विभागों के सचिव भी इसमें शामिल होंगे। जिला स्तर पर कलेक्टर कमेटी के अध्यक्ष होंगे और पंचायत, सहकारी बैंक, कृषि व विद्युत विभाग के अधिकारी सदस्य के रूप में कार्य करेंगे।
अनुदान की संरचना
कुसुम योजना के तहत 3 हार्स पावर तक के पम्प पर 30 प्रतिशत केंद्र सरकार का अनुदान मिलेगा। किसान को 5 प्रतिशत मार्जिन मनी देनी होगी और शेष 65 प्रतिशत राशि कृषक ऋण (Farmer Loan) के रूप में प्राप्त होगी। वहीं 3 एचपी से अधिक क्षमता के पम्पों के लिए भी केंद्र से 30 प्रतिशत अनुदान मिलेगा, परंतु किसान को 10 प्रतिशत मार्जिन मनी जमा करनी होगी। शेष 60 प्रतिशत से अधिक राशि ऋण के रूप में दी जाएगी। 7.5 एचपी से अधिक के पम्पों के लिए केंद्र सरकार की सब्सिडी 7.5 एचपी तक की सीमा में ही लागू रहेगी।