
सोलर इन्वर्टर (Solar Inverter) के बढ़ते उपयोग के साथ, इसकी मरम्मत और रखरखाव से जुड़ी समस्याएँ भी सामने आने लगी हैं। खासकर रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) आधारित इस तकनीक में सबसे अधिक खराबी दो प्रमुख हिस्सों में देखी जाती है — बैटरी और इन्वर्टर के इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स। इन समस्याओं के पीछे समय के साथ घटकों की कार्यक्षमता में गिरावट और पर्यावरणीय प्रभाव अहम कारण हैं।
बैटरी की खराबी या क्षमता में गिरावट: सबसे आम समस्या
किसी भी सोलर इन्वर्टर सिस्टम की बैटरी सबसे महत्वपूर्ण और सबसे ज्यादा उपभोग होने वाला हिस्सा होती है। यह न केवल ऊर्जा संग्रह करती है बल्कि बिजली की अनुपलब्धता के समय उसका बैकअप भी देती है। हालांकि, अधिकतर बैटरियाँ 3 से 5 वर्षों के भीतर अपनी पूर्ण क्षमता खो देती हैं। समय के साथ इनमें sulphation, deep discharge और चार्जिंग-साइकिल की अधिकता जैसे कारणों से क्षमता में गिरावट आती है।
जब बैटरी बार-बार जल्दी डिस्चार्ज होने लगे या इन्वर्टर में Under Voltage की त्रुटि दिखने लगे, तो यह इस बात का संकेत होता है कि बैटरी को जल्द ही बदला जाना चाहिए।
ओवरहीटिंग: इन्वर्टर के प्रदर्शन को कमजोर करने वाला खतरा
ओवरहीटिंग (Overheating) सोलर इन्वर्टर के इलेक्ट्रॉनिक हिस्सों की दूसरी सबसे आम समस्या है। जब इन्वर्टर को ऐसी जगह स्थापित कर दिया जाता है जहाँ पर्याप्त वेंटिलेशन नहीं है या वह सीधी धूप में है, तो उसका तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है। इससे इन्वर्टर के अंदर लगे सेंसर, स्विच और अन्य इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स समय से पहले खराब हो सकते हैं।
इसके अलावा यदि इन्वर्टर में लगा कूलिंग सिस्टम या फैन ठीक से काम नहीं कर रहा हो, तो इन्वर्टर बार-बार Shut Down भी कर सकता है।
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रिले की खराबी से बिजली आपूर्ति बाधित होती है
इन्वर्टर के अंदर लगा रिले (Relay) एक महत्वपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक स्विच की भूमिका निभाता है, जो इनपुट और आउटपुट के बीच कनेक्शन को नियंत्रित करता है। यदि यह रिले खराब हो जाता है, तो इन्वर्टर या तो चालू ही नहीं होता या बीच में बिजली आपूर्ति को काट देता है। इससे लोड पर अचानक प्रभाव पड़ता है और सिस्टम की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है।
EEPROM की विफलता: इन्वर्टर की ‘मेमोरी’ का नुकसान
EEPROM (Electrically Erasable Programmable Read-Only Memory) इन्वर्टर का वह चिप होता है जिसमें इसकी सेटिंग्स और फर्मवेयर स्टोर किए जाते हैं। बिजली की अनियमित आपूर्ति, वोल्टेज स्पाइक्स या सर्ज के चलते EEPROM खराब हो सकता है। इसका सीधा असर इन्वर्टर की कार्यक्षमता पर पड़ता है क्योंकि वह अपनी प्रोग्राम सेटिंग्स भूल जाता है या बार-बार रीसेट होने लगता है।
यह समस्या अक्सर सस्ते या uncertified इन्वर्टर में ज्यादा देखने को मिलती है जहाँ सुरक्षा सर्किट पर्याप्त नहीं होते।
GFCI की खराबी से सुरक्षा जोखिम बढ़ता है
GFCI (Ground Fault Circuit Interrupter) इन्वर्टर का एक अहम सुरक्षा यंत्र है जो बिजली के अनचाहे प्रवाह को रोकने का काम करता है। यह विशेष रूप से उन परिस्थितियों में काम आता है जब करंट जमीन के संपर्क में आता है। यदि यह डिवाइस सही तरीके से काम न करे या खराब हो जाए, तो यह न केवल इन्वर्टर को बंद कर देता है बल्कि संभावित रूप से पूरे सिस्टम को खतरे में डाल सकता है।
GFCI की खराबी का मुख्य कारण अत्यधिक नमी, जलवायु में बदलाव या इंटरनल सर्किट में दोष होता है।
सबसे पहले कौन सा पार्ट बदलना पड़ता है?
अधिकांश मामलों में देखा गया है कि बैटरी वह हिस्सा है जिसे सबसे पहले बदलने की आवश्यकता होती है। यह इन्वर्टर सिस्टम का सबसे जल्दी उपभोग होने वाला भाग है। यदि इसकी नियमित देखरेख न की जाए, जैसे वाटर लेवल चेक करना, सही तरीके से चार्जिंग देना, तो इसकी लाइफ और भी कम हो सकती है।
बैटरी बदलने का औसत समय 3 से 5 वर्ष है, लेकिन यह ब्रांड, उपयोग के तरीके और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है।
इन्वर्टर सिस्टम का दीर्घकालीन उपयोग कैसे सुनिश्चित करें?
यदि आप चाहते हैं कि आपका सोलर इन्वर्टर लंबे समय तक बिना रुकावट काम करे, तो इसके लिए कुछ बुनियादी रखरखाव उपायों का पालन आवश्यक है।
इन्वर्टर और बैटरी की समय-समय पर वोल्टेज जांच, धूल-मिट्टी से सुरक्षा, वेंटिलेशन की व्यवस्था और हर 6 से 12 महीने पर प्रोफेशनल सर्विसिंग जैसी प्रक्रियाएँ बेहद जरूरी हैं।
इसके अलावा, इन्वर्टर को किसी प्रमाणित तकनीशियन से ही इंस्टॉल और मेंटेन कराना हमेशा बेहतर होता है ताकि भविष्य में किसी भी तकनीकी खराबी से बचा जा सके।
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