
भारत में Renewable Energy को लेकर जागरूकता तेजी से बढ़ रही है, और इसी कड़ी में सोलर पैनल एक प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। चाहे वह घरेलू उपयोग हो या औद्योगिक, सोलर एनर्जी सिस्टम अब एक स्थायी और लागत-कटौती वाला विकल्प बन चुका है। लेकिन एक अहम सवाल अकसर सामने आता है, सोलर पैनल की वास्तविक उम्र कितनी होती है और इसे अधिक समय तक कैसे चलाया जा सकता है? आइए, इस महत्वपूर्ण विषय पर विस्तार से बात करते हैं।
सोलर पैनल की औसत उम्र होती है 25 से 30 साल
सोलर पैनल की औसत आयु आमतौर पर 25 से 30 वर्षों के बीच होती है। अधिकांश सोलर पैनल निर्माता कम से कम 25 वर्षों की Performance Warranty देते हैं, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि इस अवधि के अंत तक पैनल की कार्यक्षमता कम से कम 80% बनी रहेगी। उच्च गुणवत्ता वाले टियर-1 (Tier-1) सोलर पैनल की डिग्रेडेशन दर लगभग 0.3% प्रति वर्ष होती है। इसका अर्थ है कि ये पैनल 30 वर्षों के बाद भी करीब 90% क्षमता से कार्य करने में सक्षम रहते हैं। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए राहत की खबर है जो अपने Long-Term Investment की वैल्यू सुनिश्चित करना चाहते हैं।
सोलर पैनल की क्षमता में गिरावट के पीछे छिपे वैज्ञानिक कारण
सोलर पैनल की परफॉर्मेंस समय के साथ धीरे-धीरे घटती है, जिसे तकनीकी भाषा में “डिग्रेडेशन-Degradation” कहा जाता है। यह प्रक्रिया प्राकृतिक और पर्यावरणीय कारणों से होती है, जो नीचे वर्णित हैं।
थर्मल साइकलिंग यानि तापमान में बार-बार उतार-चढ़ाव सोलर पैनल की सामग्री में माइक्रोक्रैक्स पैदा कर देता है। इससे उनकी विद्युत उत्पादन क्षमता पर असर पड़ता है। इसी प्रकार, सूर्य की पराबैंगनी किरणें यानी UV Radiation सोलर पैनल की कोशिकाओं को धीरे-धीरे कमजोर करती हैं।
इसके अलावा, पैनल की सतह पर जमा होने वाली धूल, मिट्टी और पक्षियों की बीटें सूर्य की किरणों को अवरुद्ध करती हैं, जिससे बिजली उत्पादन में गिरावट आती है। साथ ही, क्षेत्रीय जलवायु जैसे अधिक गर्मी, अधिक ठंड, आर्द्रता और बर्फबारी सोलर पैनल की संरचना और प्रदर्शन दोनों पर प्रतिकूल असर डाल सकते हैं।
देखभाल और रखरखाव से बढ़ सकती है सोलर पैनल की उम्र
सोलर पैनल को लंबे समय तक बेहतर स्थिति में बनाए रखने के लिए नियमित देखभाल और विशेषज्ञ सलाह आवश्यक है। सबसे पहले, पैनल की नियमित सफाई अत्यंत जरूरी है। यदि सतह पर धूल, पत्तियां या पक्षियों की गंदगी जमा हो जाए, तो यह सूर्य के प्रकाश को पैनल तक पहुंचने से रोकती है, जिससे आउटपुट घटता है।
इसके अलावा, हर 5 से 10 साल में किसी प्रमाणित तकनीशियन से पैनल की पूरी तरह से जांच कराना चाहिए। यह जांच संभावित तकनीकी गड़बड़ियों को समय रहते पहचानने में सहायक होती है। छाया भी सोलर पैनल की बड़ी दुश्मन है। पेड़-पौधों की शाखाएं या पास की इमारतों की परछाइयां अगर पैनल पर पड़ती हैं, तो यह विद्युत उत्पादन में भारी गिरावट ला सकती हैं। ऐसे में, पैनल की स्थापना एक खुले और छायारहित स्थान पर करना चाहिए।
इसके साथ ही, पक्षियों और चूहों से सुरक्षा भी जरूरी है। ये जानवर पैनल की वायरिंग को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे शॉर्ट सर्किट जैसी समस्याएं हो सकती हैं। पैनल के चारों ओर जाली लगवाना एक व्यावहारिक उपाय हो सकता है। वहीं, पैनल का सही झुकाव और पर्याप्त वेंटिलेशन भी जरूरी है, ताकि बारिश का पानी जमा न हो और पैनल का तापमान नियंत्रित बना रहे।
सोलर पैनल एक स्मार्ट निवेश, लेकिन देखभाल है अनिवार्य
आज के दौर में जब बिजली की लागत लगातार बढ़ रही है, सोलर पैनल न केवल पर्यावरण के लिए हितकारी हैं बल्कि यह एक लाभदायक वित्तीय निर्णय भी साबित हो सकता है। हालांकि, यह तभी संभव है जब आप अपने सोलर सिस्टम की नियमित निगरानी और देखभाल करते हैं। कई बार लोग स्थापना के बाद पैनल को भूल जाते हैं, जिससे धीरे-धीरे उसकी दक्षता में गिरावट आने लगती है।
यदि आपको अपने पैनल की परफॉर्मेंस को लेकर संदेह है, तो समय रहते किसी प्रमाणित और अनुभवी टेक्नीशियन से सलाह लें। सही सलाह, समय पर सफाई और नियमित निरीक्षण से आपका सोलर सिस्टम 30 वर्षों तक भी अच्छी कार्यक्षमता दे सकता है।
भारत में सोलर एनर्जी का भविष्य
भारत सरकार ने 2030 तक 500 गीगावाट Renewable Energy उत्पादन का लक्ष्य रखा है, जिसमें सोलर एनर्जी की भागीदारी सबसे अधिक है। ऐसे में, यह जरूरी है कि व्यक्तिगत स्तर पर भी सोलर सिस्टम की गुणवत्ता और उसकी कार्यक्षमता को बनाए रखने के उपाय अपनाए जाएं। इससे न केवल आपकी बिजली की बचत होगी, बल्कि देश की ऊर्जा आत्मनिर्भरता में भी योगदान मिलेगा।