
सोलर टेक्नोलॉजी (Solar Technology) की दुनिया में एक अहम सफलता दर्ज की गई है। शोधकर्ताओं ने नई पीढ़ी की परोव्स्काइट (Perovskite) आधारित सोलर सेल्स विकसित की हैं जो इनडोर लाइट से बिजली उत्पन्न कर सकती हैं। ये सेल्स इतनी कुशल हैं कि भविष्य में आपके कीबोर्ड, अलार्म और सेंसर जैसे डिवाइस बिना बैटरी के सिर्फ कमरे की रोशनी से ही चल सकेंगे।
इनडोर एनर्जी हार्वेस्टिंग का नया अध्याय
अप्रैल 30 को Advanced Functional Materials जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, इन नई परोव्स्काइट सेल्स ने इनडोर लाइट को बिजली में बदलने में 37.6% दक्षता हासिल की। शोधकर्ताओं ने पाया कि 1000 लक्स (Lux) की रोशनी – जो किसी अच्छी तरह से रोशन ऑफिस जैसी होती है – पर ये सेल्स अभूतपूर्व प्रदर्शन करती हैं।
पिछले कुछ वर्षों में परोव्स्काइट सोलर सेल्स को पारंपरिक सिलिकॉन आधारित पैनलों से अधिक प्रभावी माना गया है, खासकर कम रोशनी वाले माहौल में। अध्ययन के मुताबिक, ये सेल्स सिलिकॉन आधारित सेल्स की तुलना में छह गुना अधिक ऊर्जा उत्पन्न करती हैं।
बैटरी की जगह टिकाऊ विकल्प
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) के Institute for Materials Discovery से जुड़े एसोसिएट प्रोफेसर मोहतबा अब्दी जलेबी (Mojtaba Abdi Jalebi) ने कहा,
“आज अरबों छोटे डिवाइस बैटरी पर चलते हैं और लगातार बैटरी बदलने की प्रक्रिया पर्यावरण के लिए अस्थिर है। जैसे-जैसे Internet of Things (IoT) का विस्तार होगा, यह समस्या और बढ़ेगी। परोव्स्काइट सेल्स इस चुनौती का सस्टेनेबल और किफायती विकल्प पेश करती हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, फिलहाल जो इनडोर सोलर सेल्स उपलब्ध हैं वे महंगे और अक्षम हैं। लेकिन इस नई तकनीक से बने परोव्स्काइट सेल्स ज्यादा ऊर्जा पैदा करते हैं और लंबे समय तक टिकाऊ रहते हैं।
रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) के लिए बड़ी संभावनाएँ
नई तकनीक के जरिए घरों में मौजूद छोटे-बड़े उपकरणों को बैटरी-फ्री बनाया जा सकता है। स्मार्ट-होम डिवाइस जैसे कि सिक्योरिटी अलार्म, वायरलेस कीबोर्ड और छोटे सेंसर अब बैटरी पर निर्भर नहीं रहेंगे। इस खोज से रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) सेक्टर में भी बड़े बदलाव की संभावना है।
जलेबी ने बताया, “इन सेल्स को बेहद आसान तकनीक से बनाया जा सकता है, यहाँ तक कि इन्हें अखबार की तरह प्रिंट किया जा सकता है। यह लागत को कम करता है और बड़े पैमाने पर उत्पादन की संभावना को मजबूत बनाता है।”
परोव्स्काइट की चुनौतियाँ और समाधान
हालांकि परोव्स्काइट की सबसे बड़ी चुनौती रही है उसकी स्थिरता और दीर्घायु। इस सामग्री की क्रिस्टल संरचना में सूक्ष्म खामियाँ (Traps) पाई जाती हैं, जिनमें इलेक्ट्रॉन फंस जाते हैं। ये खामियाँ बिजली के प्रवाह को बाधित करती हैं और लंबे समय में सामग्री को तेजी से खराब करती हैं।
इसे हल करने के लिए वैज्ञानिकों ने तीन प्रमुख रसायनों का प्रयोग किया:
- Rubidium Chloride: क्रिस्टल को समान रूप से बढ़ाने में मदद की और खामियों की संख्या घटाई।
- DMOAI और PEACl (दोनों अमोनियम आधारित सॉल्ट): आयनों को स्थिर किया और उनके अलगाव को रोका।
इस संयोजन से परोव्स्काइट का प्रदर्शन और टिकाऊपन दोनों बेहतर हुए। लीड लेखक सिमिंग हुआंग (Siming Huang) ने कहा,
“इन छोटे-छोटे दोषों से सोलर सेल ऐसी हो जाती थी जैसे कोई केक टुकड़ों में बंट गया हो। हमने इन रणनीतियों से उस केक को फिर से जोड़ दिया है, जिससे ऊर्जा का प्रवाह सहज हो गया है।
प्रदर्शन और टिकाऊपन में सुधार
शोधकर्ताओं ने पाया कि नई सेल्स ने 100 दिनों तक अपनी 92% कार्यक्षमता बनाए रखी। तुलना में, वे सेल्स जिनमें दोषों को नहीं सुधारा गया था, उन्होंने सिर्फ 76% प्रदर्शन ही बरकरार रखा। इससे साबित होता है कि नई तकनीक न केवल ऊर्जा दक्षता बढ़ाती है बल्कि दीर्घकालीन टिकाऊपन भी सुनिश्चित करती है।
आगे की राह और इंडस्ट्री की दिलचस्पी
शोधकर्ता अब इंडस्ट्री पार्टनर्स के साथ मिलकर इस तकनीक को बड़े पैमाने पर लाने की संभावनाओं पर चर्चा कर रहे हैं। अगर यह तकनीक व्यावसायिक रूप से अपनाई जाती है तो यह न केवल छोटे गैजेट्स बल्कि भविष्य में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स और स्मार्ट-होम उपकरणों को भी प्रभावित कर सकती है।