
राजस्थान में Renewable Energy के क्षेत्र में एक नया अध्याय शुरू हो गया है। सौर ऊर्जा (Solar Energy) में अग्रणी भूमिका निभा चुका यह राज्य अब ग्रीन हाइड्रोजन (Green Hydrogen) पर फोकस कर रहा है। हाल ही में राज्य सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन नीति को अंतिम रूप दिया है, जिससे साफ संकेत मिलता है कि राजस्थान रिन्यूएबल एनर्जी में भविष्य की संभावनाओं को पहचान कर रणनीतिक कदम उठा रहा है।
सौर ऊर्जा: किफायती और परिपक्व समाधान
सौर ऊर्जा आज भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में सबसे सुलभ और किफायती रिन्यूएबल एनर्जी स्रोत बन चुकी है। फोटोवोल्टिक (PV) तकनीक के माध्यम से सूर्य की रोशनी को सीधे बिजली में बदलने की प्रक्रिया बेहद प्रभावी और दक्ष मानी जाती है।
भारत में सौर ऊर्जा की लागत विश्व स्तर पर सबसे कम मानी जाती है। घरेलू उपयोग हो या औद्योगिक ज़रूरतें, सौर ऊर्जा सभी स्तरों पर एक व्यवहारिक विकल्प बनकर उभरी है। राजस्थान, जो देश के सबसे अधिक धूप पाने वाले क्षेत्रों में शामिल है, सौर ऊर्जा उत्पादन के लिहाज से अग्रणी रहा है। यहां सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी, नेट मीटरिंग पॉलिसी और भूमि के व्यापक उपलब्धता ने इसे और अधिक व्यवहारिक बना दिया है।
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हालांकि, सौर ऊर्जा की एक बड़ी सीमा इसका समय-निर्भर होना है। यह ऊर्जा केवल दिन में ही उपलब्ध रहती है और रात या बादल वाले मौसम में उत्पादन में गिरावट आ जाती है। इसके लिए बैटरी स्टोरेज सिस्टम की आवश्यकता होती है, जिससे परियोजना की कुल लागत और जटिलता बढ़ जाती है।
हाइड्रोजन ऊर्जा: भविष्य की तकनीक लेकिन महंगी
ग्रीन हाइड्रोजन को भविष्य की ऊर्जा कहा जा रहा है, खासकर तब जब दुनिया कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने के लक्ष्यों की ओर बढ़ रही है। हाइड्रोजन का ऊर्जा घनत्व लगभग 120 मेगाजूल प्रति किलोग्राम होता है, जो इसे भारी उद्योगों, दीर्घकालिक ऊर्जा भंडारण और परिवहन जैसे क्षेत्रों के लिए बेहद उपयुक्त बनाता है।
इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि हाइड्रोजन को जलाने या उपयोग करने पर केवल जल वाष्प उत्सर्जित होता है, जिससे यह पूरी तरह से साफ ऊर्जा का स्रोत बनता है। इसके अलावा, इसे महीनों तक संग्रहित किया जा सकता है, जिससे ग्रिड स्थिरता और बैकअप पावर के लिए यह एक आदर्श विकल्प बनता है।
लेकिन इस तकनीक की सबसे बड़ी चुनौती है इसकी वर्तमान लागत। ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की कीमत फिलहाल 3.50 से 6.00 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम है, जो कि पारंपरिक ईंधन या सौर ऊर्जा की तुलना में काफी अधिक है। इसके अलावा, इलेक्ट्रोलिसिस और फ्यूल सेल जैसे प्रक्रियाओं में ऊर्जा हानि होती है, जिससे इसकी कुल दक्षता पर असर पड़ता है।
वर्तमान में हाइड्रोजन की उत्पादन, स्टोरेज और ट्रांसपोर्ट के लिए जो आवश्यक अवसंरचना चाहिए, वह भारत में अभी सीमित है। हालांकि, सरकार द्वारा नीति और निवेश के माध्यम से इसे गति दी जा रही है, और राजस्थान इस दिशा में एक बड़ा कदम उठा चुका है।
दोनों तकनीकों का विश्लेषण: उपयोगिता पर निर्भर है चयन
जहां सौर ऊर्जा एक सुलभ और सस्ती तकनीक है, वहीं हाइड्रोजन ऊर्जा भविष्य के लिए एक रणनीतिक निवेश है। सौर ऊर्जा घरेलू, कृषि और वाणिज्यिक स्तर पर त्वरित समाधान प्रदान करती है, जबकि ग्रीन हाइड्रोजन दीर्घकालिक भंडारण, ग्रिड स्थिरता और औद्योगिक उपयोग के लिए उपयुक्त है।
राजस्थान जैसे राज्य, जो पहले ही सौर ऊर्जा में अग्रणी भूमिका निभा चुके हैं, अब ग्रीन हाइड्रोजन की ओर बढ़ते हुए यह संकेत दे रहे हैं कि भारत रिन्यूएबल एनर्जी के अगले चरण की ओर बढ़ रहा है। यदि निकट भविष्य में हाइड्रोजन उत्पादन की लागत में गिरावट आती है और आवश्यक अवसंरचना विकसित हो जाती है, तो यह तकनीक भारत के ऊर्जा भविष्य को बदल सकती है।
नीति, निवेश और नवाचार की त्रिवेणी
आज की आवश्यकता यह है कि हम विविध ऊर्जा स्रोतों में संतुलन बनाकर चलें। सौर ऊर्जा का उपयोग तत्काल और स्थानीय स्तर पर किया जा सकता है, जबकि ग्रीन हाइड्रोजन को दीर्घकालिक और औद्योगिक ऊर्जा समाधान के रूप में देखा जाना चाहिए।
राजस्थान सरकार द्वारा ग्रीन हाइड्रोजन नीति की शुरुआत इस दिशा में एक ठोस पहल है। इससे राज्य को निवेश, रोजगार और तकनीकी विकास के नए अवसर मिल सकते हैं। वहीं भारत की ऊर्जा सुरक्षा को भी दीर्घकालिक रूप से मजबूती मिलेगी।