सौर ऊर्जा क्षेत्र में भारत ने हाल के वर्षों में अभूतपूर्व विकास किया है। यह स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, साथ ही साथ बढ़ती सौर पैनल इंस्टालेशन के कारण पुराने और खराब हो चुके पैनलों का कचरा भी तेजी से बढ़ रहा है, जो एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती बन गया है।

सोलर पैनल कचरे का खतरा
सोलर पैनलों का औसत जीवनकाल लगभग 25 वर्ष होता है। इसके पश्चात जो पैनल काम बंद कर देते हैं, उनमें भारी धातु और विषैले रसायन होते हैं, जैसे कि सीसा, कैडमियम और अन्य तत्व जो पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हैं। यदि इन कचरों का सही प्रबंधन नहीं किया गया, तो यह भूमि, जल और वायु प्रदूषण का कारण बन सकते हैं।
भारत सरकार की नई नीतियां
2025 में भारत सरकार ने सोलर पैनल वेस्ट की समुचित देखरेख के लिए नए नियम बनाए हैं। इन नियमों के अनुसार:
- निर्माता और विक्रेता सोलर पैनलों के अंत जीवन प्रबंधन के लिए उत्तरदायी होंगे।
- पैनलों के कचरे का संग्रहण और रीसाइक्लिंग पंजीकृत एवं प्रमाणित केंद्रों तक सीमित होगा।
- एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (EPR) लागू कर उत्पादकों को कचरा प्रबंधन प्रक्रिया में लागू किया जाएगा।
- पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए कड़ी निगरानी और रिपोर्टिंग की व्यवस्था होगी।
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रीसाइक्लिंग के अवसर
सोलर पैनल के हिस्सों से निकाले गए रिसोर्स जैसे सिलिकॉन, तांबा, चांदी और ग्लास उद्योगों के लिए मूल्यवान हैं। इन संसाधनों को पुन: उपयोग में लाकर कच्चे माल पर निर्भरता कम की जा सकती है और आर्थिक विकास को भी बल मिलेगा। इसके अलावा, रीसाइक्लिंग से पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों में भी कमी आती है।
चुनौतियां और समाधान
हालांकि, भारत में इस क्षेत्र का विकास अभी प्रारंभिक चरण में है और कई चुनौतियां हैं जैसे तकनीकी संसाधनों की कमी, विशेषज्ञता का अभाव और आम जनता एवं उद्योग में जागरूकता की कमी। इन समस्याओं से निपटने के लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ निजी क्षेत्र की भागीदारी भी आवश्यक होगी।







