
भारत में बढ़ती रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy की मांग के बीच सोलर पैनल सिस्टम अब एक लोकप्रिय विकल्प बन गया है। लेकिन कई लोगों को यह नहीं पता होता कि बिजली कटौती के समय उनका सोलर सिस्टम कैसे काम करेगा। इसकी कार्यक्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि आपने कौन-सा सिस्टम लगाया है—ऑन-ग्रिड, ऑफ-ग्रिड या हाइब्रिड। इस लेख में हम बताएंगे कि इन तीनों सोलर सिस्टम की बिजली कटौती के दौरान कैसी परफॉर्मेंस होती है, ताकि आप सही विकल्प का चुनाव कर सकें।
ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम: ग्रिड से जुड़ी सीमाएं
ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम सीधे विद्युत ग्रिड से जुड़ा होता है। इसका उपयोग शहरी क्षेत्रों में अधिकतर किया जाता है जहां बिजली की उपलब्धता अपेक्षाकृत स्थिर रहती है। इस सिस्टम में आमतौर पर बैटरी स्टोरेज नहीं होती। दिन के समय, सोलर पैनल सूरज की रोशनी से बिजली उत्पन्न करते हैं, जिससे घर या ऑफिस के उपकरण चलाए जाते हैं। यदि जरूरत से ज्यादा बिजली बनती है, तो वह अतिरिक्त ऊर्जा ग्रिड में वापस भेज दी जाती है, जिससे आपकी बिजली बिल में क्रेडिट मिल सकता है।
हालांकि, बिजली कटौती के दौरान यह सिस्टम स्वतः बंद हो जाता है। ऐसा सुरक्षा कारणों से होता है ताकि बिजली लाइन पर काम कर रहे तकनीशियनों को कोई खतरा न हो। यानी, अगर आप सोचते हैं कि ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम बिजली जाने पर भी काम करता रहेगा, तो यह एक गलतफहमी है। बिना बैटरी बैकअप के यह सिस्टम बिजली कटौती के समय बिल्कुल काम नहीं करता।
ऑफ-ग्रिड सोलर सिस्टम: पूरी तरह आत्मनिर्भर विकल्प
ऑफ-ग्रिड सोलर सिस्टम उन इलाकों के लिए उपयुक्त है जहां बिजली की आपूर्ति अक्सर बाधित रहती है या बिल्कुल भी नहीं है। यह सिस्टम पूरी तरह से सोलर पैनल और बैटरी स्टोरेज पर निर्भर होता है। दिन के समय सोलर पैनल बिजली उत्पन्न करते हैं और अतिरिक्त बिजली को बैटरियों में संग्रहित कर लेते हैं। यह संग्रहित ऊर्जा रात में, या बादल और बारिश वाले दिनों में उपयोग की जाती है।
बिजली कटौती का इस सिस्टम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि यह पब्लिक ग्रिड से पूरी तरह से कटा हुआ होता है। यही कारण है कि यह सिस्टम गाँवों, पहाड़ी क्षेत्रों और उन जगहों पर ज्यादा देखा जाता है जहां ग्रिड की बिजली आसानी से उपलब्ध नहीं होती। हालांकि, इस सिस्टम की प्रारंभिक लागत अन्य विकल्पों की तुलना में अधिक हो सकती है, क्योंकि इसमें उच्च क्षमता वाली बैटरियों की आवश्यकता होती है।
हाइब्रिड सोलर सिस्टम: दोनों दुनिया का संतुलन
हाइब्रिड सोलर सिस्टम में ऑन-ग्रिड और ऑफ-ग्रिड सिस्टम की विशेषताएं मिलती हैं। यह सिस्टम ग्रिड से जुड़ा होता है लेकिन इसमें बैटरी स्टोरेज की सुविधा भी होती है। इसका मतलब है कि दिन के समय सोलर पैनल बिजली उत्पन्न करते हैं, जिससे उपकरण चलते हैं। अतिरिक्त बिजली या तो बैटरियों में संग्रहित होती है या ग्रिड को भेज दी जाती है।
जब बिजली कटती है, तब यह सिस्टम बैटरियों में संग्रहित बिजली का उपयोग करता है और निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करता है। यही कारण है कि हाइब्रिड सिस्टम अब तेजी से लोकप्रिय हो रहा है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां बिजली की कटौती अक्सर होती रहती है लेकिन ग्रिड की सुविधा भी मौजूद है।
हाइब्रिड सिस्टम के जरिए आप बिजली बिलों में बचत कर सकते हैं और साथ ही पावर कट के दौरान भी निर्बाध बिजली पा सकते हैं। हालांकि, इसकी लागत भी थोड़ी ज्यादा होती है क्योंकि इसमें बैटरी के साथ-साथ ग्रिड इंटरफेसिंग टेक्नोलॉजी की भी जरूरत होती है।
यह भी पढें- यूपी के 75 जिलों में सरकारी भवनों पर सोलर रूफटॉप का काम शुरू – UPNEDA की टीम कर रही निगरानी
बैकअप सिस्टम क्यों है जरूरी?
अगर आप ऑन-ग्रिड सिस्टम का उपयोग कर रहे हैं और पावर कट के दौरान भी जरूरी उपकरण जैसे वाई-फाई, सीसीटीवी, या मेडिकल उपकरणों को चलाना चाहते हैं, तो आपके लिए बैकअप सिस्टम अनिवार्य हो जाता है। ऑन-ग्रिड सिस्टम के साथ अतिरिक्त बैटरी या इन्वर्टर बैकअप जोड़ा जा सकता है।
इसके अलावा, कुछ लोग ड्यूल पावर सप्लाई का विकल्प चुनते हैं जिसमें सोलर और डीजल जनरेटर दोनों को एक साथ जोड़ा जाता है। यह तरीका थोड़ा खर्चीला जरूर होता है, लेकिन आवश्यकतानुसार बिजली आपूर्ति को पूरी तरह से सुनिश्चित करता है।
कौन-सा सोलर सिस्टम है आपके लिए सही विकल्प?
यह निर्भर करता है कि आप किस क्षेत्र में रहते हैं और आपकी बिजली की जरूरतें कितनी हैं। यदि आप शहर में हैं और बिजली कटौती बहुत कम होती है, तो ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम आपके लिए सस्ता और प्रभावी विकल्प हो सकता है।
यदि आप ग्रामीण क्षेत्र में हैं या आपके यहां पावर कट आम है, तो ऑफ-ग्रिड सिस्टम एकमात्र भरोसेमंद विकल्प है। वहीं, अगर आप एक संतुलित समाधान चाहते हैं जिसमें बिजली की लागत भी घटे और बिजली कटौती के समय परेशानी भी न हो, तो हाइब्रिड सोलर सिस्टम आपके लिए सबसे उपयुक्त साबित हो सकता है।