
आज के समय में रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) की बढ़ती मांग के साथ सोलर पैनल और बैटरियों का उपयोग ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में तेजी से हो रहा है। लेकिन जहां सोलर एनर्जी (Solar Energy) लाभकारी है, वहीं इसके कुछ तकनीकी पहलू यदि नजरअंदाज किए जाएं, तो यह खतरनाक भी हो सकते हैं। इन्हीं में से एक है सोलर बैटरी ओवरचार्जिंग (Solar Battery Overcharging) । यह स्थिति न केवल बैटरी की कार्यक्षमता को कम करती है, बल्कि आग या विस्फोट जैसी दुर्घटनाओं का कारण भी बन सकती है।
ओवरचार्जिंग क्या होती है और यह क्यों होती है?
सोलर बैटरी ओवरचार्जिंग तब होती है जब बैटरी को उसकी अधिकतम क्षमता से अधिक चार्ज कर दिया जाता है। आमतौर पर यह तब होता है जब चार्ज कंट्रोलर या इन्वर्टर ठीक से कार्य नहीं कर रहा होता। चार्ज कंट्रोलर का मुख्य काम सोलर पैनल से आने वाली ऊर्जा को बैटरी में नियंत्रित मात्रा में भेजना होता है। लेकिन यदि उसकी सेटिंग गलत हो या वह तकनीकी रूप से खराब हो जाए, तो वह बैटरी में अनियंत्रित ऊर्जा भेजता रहता है, जिससे बैटरी के अंदरूनी तापमान में वृद्धि होती है और ओवरचार्जिंग की स्थिति उत्पन्न होती है।
बैटरी ओवरचार्जिंग के लक्षण क्या हैं?
सोलर बैटरी ओवरचार्जिंग के कई स्पष्ट संकेत होते हैं जिन्हें पहचानना आवश्यक है। बैटरी के बाहरी हिस्से में सूजन आना एक प्रमुख संकेत है, जो आमतौर पर गैस बनने के कारण होता है। इसके अलावा बैटरी का जरूरत से ज्यादा गर्म हो जाना, चार्जिंग की क्षमता में गिरावट, वोल्टेज में उतार-चढ़ाव और बैटरी से किसी रसायन या सल्फर जैसी गंध आना भी ओवरचार्जिंग के संकेत हैं। यदि इन लक्षणों को नजरअंदाज किया गया, तो इससे गंभीर तकनीकी और सुरक्षा संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
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ओवरचार्जिंग से क्या खतरे हो सकते हैं?
ओवरचार्जिंग का सबसे बड़ा खतरा बैटरी की संरचना और सुरक्षा को होता है। लीड-एसिड बैटरियों में ओवरचार्जिंग से इलेक्ट्रोलाइट सूख सकता है, जिससे बैटरी के प्लेट्स को नुकसान होता है और उनकी कार्यक्षमता घट जाती है। वहीं लिथियम-आयन बैटरियों के मामले में स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। अत्यधिक चार्जिंग के कारण लिथियम बैटरी में थर्मल रनअवे (Thermal Runaway) हो सकता है, जिससे बैटरी में विस्फोट या आग लग सकती है। यह ना सिर्फ आर्थिक नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि जान-माल की हानि भी हो सकती है।
बैटरी की क्षमता और पर ओवरचार्जिंग का असर
ओवरचार्जिंग का सीधा प्रभाव बैटरी की क्षमता पड़ता है। लगातार ओवरचार्जिंग से लीड-एसिड बैटरियों में इलेक्ट्रोलाइट का स्तर कम होता है और बार-बार पानी डालने की जरूरत पड़ती है। वहीं लिथियम-आयन बैटरियों में ओवरचार्जिंग से सेल्स के बीच असंतुलन उत्पन्न होता है जिससे बैटरी की मूल चार्ज रखने की क्षमता कम हो जाती है। इससे सोलर सिस्टम की ऊर्जा आपूर्ति बाधित होती है और पूरे सिस्टम की दक्षता घट जाती है।
ओवरचार्जिंग से कैसे बचा जाए?
ओवरचार्जिंग से बचाव के लिए सबसे पहला कदम है एक उच्च गुणवत्ता वाले चार्ज कंट्रोलर का उपयोग करना। आज बाजार में MPPT (Maximum Power Point Tracking) और PWM (Pulse Width Modulation) टेक्नोलॉजी पर आधारित कंट्रोलर्स उपलब्ध हैं जो बैटरी को आवश्यकता अनुसार ऊर्जा भेजते हैं और ओवरचार्जिंग से बचाते हैं।
दूसरा उपाय है चार्ज कंट्रोलर की सही सेटिंग्स करना। हर बैटरी का एक विशेष चार्जिंग वोल्टेज और करंट होता है जो उसकी बनावट और क्षमता पर निर्भर करता है। यदि चार्ज कंट्रोलर की सेटिंग्स गलत हों तो बैटरी को आवश्यकता से अधिक या कम चार्ज मिल सकता है। इसलिए मैनुअल गाइड के अनुसार सेटिंग्स को जांचना अत्यंत आवश्यक है।
लिथियम-आयन बैटरियों के लिए बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम (Battery Management System – BMS) का उपयोग करना एक जरूरी सुरक्षा उपाय है। BMS प्रत्येक सेल की निगरानी करता है और चार्जिंग को नियंत्रित करता है। यदि बैटरी ओवरचार्ज होने लगती है, तो BMS स्वत: चार्जिंग बंद कर देता है जिससे दुर्घटना की संभावना न्यूनतम हो जाती है।
नियमित निरीक्षण और रखरखाव का महत्त्व
ओवरचार्जिंग से पूरी तरह बचने के लिए नियमित निरीक्षण और रखरखाव अत्यंत आवश्यक है। समय-समय पर बैटरी, चार्ज कंट्रोलर और इन्वर्टर की जांच करें। यदि बैटरी असामान्य रूप से गर्म हो रही हो, उससे गंध आ रही हो या वोल्टेज में अचानक उतार-चढ़ाव हो रहा हो, तो तुरंत किसी विशेषज्ञ की मदद लें। इसके अलावा, बैटरी को सीधे धूप या अत्यधिक गर्म वातावरण में न रखें और उचित वेंटिलेशन सुनिश्चित करें। इससे न सिर्फ बैटरी की寿命 बढ़ेगी बल्कि सोलर सिस्टम की पूरी क्षमता भी बनी रहेगी।