
हाइड्रोजन सोलर एक अत्याधुनिक हाइब्रिड ऊर्जा तकनीक के रूप में तेजी से उभर रही है, जो सौर ऊर्जा और हाइड्रोजन उत्पादन को एकीकृत कर 24×7 बिजली आपूर्ति का समाधान प्रदान करती है। यह तकनीक पारंपरिक सोलर पैनलों की सीमाओं को पार करते हुए ऊर्जा भंडारण और सतत आपूर्ति का एक अभिनव विकल्प बन रही है। भारत समेत दुनिया भर में Renewable Energy की ओर बढ़ते झुकाव के बीच हाइड्रोजन सोलर एक क्रांतिकारी कदम के रूप में देखा जा रहा है।
हाइड्रोजन सोलर कैसे करता है काम?
हाइड्रोजन सोलर सिस्टम मुख्यतः तीन प्रमुख घटकों पर आधारित होता है: सौर पैनल, इलेक्ट्रोलाइज़र और फ्यूल सेल। दिन के समय सौर पैनल सूर्य की रोशनी को पकड़कर विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। यह ऊर्जा इलेक्ट्रोलाइज़र को संचालित करती है, जो पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करता है। इसके पश्चात संग्रहित हाइड्रोजन को विशेष टैंकों में रखा जाता है और जब सूर्य उपलब्ध नहीं होता, तब फ्यूल सेल की सहायता से इस संग्रहित हाइड्रोजन को पुनः विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है।
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इस प्रक्रिया में किसी बैटरी की आवश्यकता नहीं होती, जिससे ना केवल लागत में कमी आती है, बल्कि रखरखाव भी सरल हो जाता है। यह तकनीक पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है क्योंकि इसमें केवल जलवाष्प का उत्सर्जन होता है, जो शून्य कार्बन उत्सर्जन की श्रेणी में आता है।
हाइड्रोजन सोलर के प्रमुख लाभ
हाइड्रोजन सोलर तकनीक का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह दिन और रात दोनों समय बिजली प्रदान कर सकती है। सौर ऊर्जा केवल धूप में ही काम करती है, जबकि हाइड्रोजन सोलर प्रणाली रात के समय भी बिजली की आपूर्ति जारी रखती है। इस सिस्टम में बैटरी की जगह हाइड्रोजन गैस का उपयोग होता है, जिससे न केवल पारंपरिक बैटरियों की मरम्मत और प्रतिस्थापन की लागत से छुटकारा मिलता है, बल्कि पूरे सिस्टम का जीवनकाल भी बढ़ जाता है।
इसके अतिरिक्त, यह तकनीक विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों के लिए आदर्श है, जहाँ पारंपरिक बिजली की आपूर्ति या तो अस्थिर होती है या पूरी तरह अनुपलब्ध। हाइड्रोजन सोलर के माध्यम से इन क्षेत्रों में भी सतत और स्वच्छ ऊर्जा सुनिश्चित की जा सकती है।
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शुरुआती लागत और तकनीकी चुनौतियाँ
हालांकि हाइड्रोजन सोलर सिस्टम भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए एक बेहतर समाधान प्रस्तुत करता है, लेकिन वर्तमान में इसकी स्थापना लागत बहुत अधिक है। एक पूर्ण हाइड्रोजन सोलर सिस्टम की लागत ₹10 लाख से ₹20 लाख के बीच आ सकती है, जो आम उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ी बाधा बन सकती है।
तकनीकी दृष्टि से भी यह प्रणाली जटिल मानी जाती है। इसमें इलेक्ट्रोलाइज़र, हाइड्रोजन स्टोरेज टैंक और फ्यूल सेल जैसी उच्च तकनीक उपकरणों की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, हाइड्रोजन एक अत्यंत ज्वलनशील गैस होती है, जिससे सुरक्षा मानकों का सख्ती से पालन आवश्यक हो जाता है। इन कारणों से इस तकनीक को व्यावसायिक स्तर पर अपनाने में समय और पूंजी दोनों की आवश्यकता है।
भारत में हाइड्रोजन सोलर का भविष्य
भारत सरकार ने “नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन” के तहत 2030 तक 5 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ₹17,000 करोड़ का निवेश प्रस्तावित किया गया है। इस मिशन से उम्मीद की जा रही है कि इससे हाइड्रोजन सोलर तकनीक की लागत में कमी आएगी और यह आम लोगों के लिए भी सुलभ हो सकेगी।
सरकार द्वारा प्रोत्साहन, शोध एवं विकास में निवेश और निजी कंपनियों की भागीदारी के चलते भारत में हाइड्रोजन सोलर एक स्थायी और लोकप्रिय ऊर्जा विकल्प बन सकता है। साथ ही, यह भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी प्रदान करेगा।
हाइड्रोजन सोलर: आम लोगों के लिए कितना संभव?
यदि आप अपने घर या व्यापार के लिए हाइड्रोजन सोलर सिस्टम की स्थापना पर विचार कर रहे हैं, तो आपको इसकी उच्च लागत, तकनीकी आवश्यकताओं और स्थान की उपलब्धता जैसे कारकों को ध्यान में रखना होगा। हालांकि तकनीक अभी आरंभिक चरण में है, लेकिन आने वाले वर्षों में जैसे-जैसे इसका उत्पादन बढ़ेगा और सरकार की ओर से अधिक सब्सिडी और प्रोत्साहन उपलब्ध होंगे, इसकी सुलभता भी बढ़ेगी।
फिलहाल, यह तकनीक उन लोगों के लिए ज्यादा उपयुक्त है जो पर्यावरण के प्रति सजग हैं, आत्मनिर्भर ऊर्जा प्रणाली चाहते हैं और निवेश करने की क्षमता रखते हैं। साथ ही, बड़े कॉर्पोरेट, औद्योगिक इकाइयाँ और ग्रामीण विकास परियोजनाएँ भी इसे अपनाने की दिशा में पहल कर सकती हैं।