
MNRE यानी Ministry of New and Renewable Energy ने ऑफ-ग्रिड सोलर प्रोजेक्ट्स से जुड़े दिशा-निर्देशों में बड़ा बदलाव किया है। मंत्रालय ने सोलर मॉड्यूल्स की न्यूनतम एफिशिएंसी लिमिट को घटाकर अब 18% कर दिया है, जो पहले 19% थी। यह निर्णय मुख्य रूप से क्रिस्टलाइन सिलिकॉन (c-Si) तकनीक आधारित सोलर मॉड्यूल्स पर लागू होगा, जबकि कैडमियम टेल्यूराइड (CdTe) थिन फिल्म मॉड्यूल्स के लिए एफिशिएंसी पहले से ही 18% निर्धारित है।
इस बदलाव का सबसे बड़ा उद्देश्य ऑफ-ग्रिड सोलर एप्लिकेशन जैसे सोलर लाइट्स, स्ट्रीट लाइट्स, सोलर पंखे आदि के निर्माण और उपलब्धता को बढ़ाना है। सरकार का मानना है कि कम एफिशिएंसी की सीमा तय करने से अधिक निर्माता Approved List of Models and Manufacturers (ALMM) में शामिल हो सकेंगे, जिससे सोलर उपकरणों की कीमत घटेगी और उपभोक्ता लाभान्वित होंगे।
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किन प्रोजेक्ट्स पर लागू होता है यह बदलाव
नई एफिशिएंसी सीमा मुख्यतः उन ऑफ-ग्रिड सोलर उपकरणों पर लागू होगी जिनकी प्रति मॉड्यूल क्षमता 200 वॉट पीक (Wp) से कम है। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले सोलर लाइट्स, स्ट्रीट लाइट्स और व्यक्तिगत उपयोग के सोलर उपकरण शामिल हैं। हालांकि, यह नियम न तो सोलर पंप्स पर लागू होगा और न ही रूफटॉप सोलर इंस्टॉलेशंस पर।
यह स्पष्ट है कि सरकार ऑफ-ग्रिड सोलर सेक्टर को और अधिक सुलभ और किफायती बनाने की दिशा में काम कर रही है, ताकि भारत में रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy के उपयोग को गांव-गांव तक पहुँचाया जा सके।
लागत घटेगी या गुणवत्ता से समझौता होगा?
सरकार के इस कदम से सोलर मॉड्यूल की उपलब्धता बढ़ने की उम्मीद है, जिससे छोटे और मध्यम स्तर के उत्पादक भी ALMM सूची में शामिल हो सकेंगे। इससे प्रोजेक्ट डेवलपर्स को अधिक विकल्प मिलेंगे और कॉम्पिटिशन बढ़ेगा, जिससे लागत में कमी आने की संभावना है। साथ ही, ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में ऑफ-ग्रिड सोलर सॉल्यूशन की पहुँच आसान हो सकती है।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस निर्णय का एक दूसरा पहलू भी है। कम एफिशिएंसी वाले मॉड्यूल्स के प्रवेश से सोलर प्रोजेक्ट्स की दीर्घकालिक गुणवत्ता और प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है। यदि मॉड्यूल की क्षमता और विश्वसनीयता में गिरावट आती है, तो इससे उपभोक्ता अनुभव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
इसीलिए यह बेहद आवश्यक है कि मॉड्यूल्स की एफिशिएंसी सीमा में ढील देने के साथ-साथ उनकी गुणवत्ता और प्रदर्शन मानकों की कड़ी निगरानी भी की जाए।
घरेलू उद्योग को बढ़ावा मिलेगा
MNRE के इस निर्णय का लाभ उन घरेलू कंपनियों को भी मिलेगा जो अब तक 19% एफिशिएंसी की बाध्यता के कारण ALMM में शामिल नहीं हो पा रही थीं। इससे भारत के सौर ऊर्जा उपकरण निर्माण क्षेत्र को बल मिलेगा और ‘मेक इन इंडिया’ पहल को भी समर्थन मिलेगा। इससे देश की आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और विदेशी आयात पर निर्भरता कम होगी।
अलग ALMM सूची बनाने की योजना
मंत्रालय ने संकेत दिए हैं कि ऑफ-ग्रिड सोलर समाधानों के लिए अलग ALMM सूची बनाने पर भी विचार किया जा रहा है। इससे ऑफ-ग्रिड उपकरणों और बड़े ग्रिड-कनेक्टेड सिस्टम्स के लिए नियमों में स्पष्ट अंतर स्थापित किया जा सकेगा। यह कदम नीति-निर्माण को और अधिक व्यावहारिक बना सकता है और अलग-अलग उपयोगों के लिए उपयुक्त तकनीकों को बढ़ावा मिल सकता है।
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