
जब बात Solar Panel की होती है, तो आमतौर पर लोगों के मन में सूरज की रोशनी और दिन के समय बिजली उत्पादन की छवि उभरती है। पारंपरिक सोलर पैनल केवल सूर्य की रोशनी में ही बिजली बना सकते हैं, जिससे रात के समय इनका उपयोग सीमित हो जाता है। लेकिन अब विज्ञान की दुनिया में ऐसा परिवर्तन हो रहा है, जो इस धारणा को पूरी तरह बदल सकता है। वैज्ञानिक ऐसी नई तकनीकों पर काम कर रहे हैं जिनसे सोलर पैनल रात में भी बिजली बना सकें। यह खोज रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है।
क्यों नहीं बना सकते मौजूदा Solar Panel रात में बिजली?
फिलहाल बाजार में उपलब्ध अधिकतर Solar Panel फोटोवोल्टिक तकनीक (Photovoltaic Technology) पर काम करते हैं। ये पैनल सूर्य की किरणों को सीधे विद्युत ऊर्जा में बदलते हैं। इस प्रक्रिया में सूर्य की रोशनी मुख्य भूमिका निभाती है, इसलिए जैसे ही सूर्यास्त होता है, ये पैनल काम करना बंद कर देते हैं। यही वजह है कि पारंपरिक सोलर सिस्टम से रात में बिजली बनाना संभव नहीं होता।
रात में बिजली की आपूर्ति के लिए वर्तमान उपाय
रात में बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए आज दो मुख्य उपाय उपयोग में लाए जा रहे हैं: बैटरी स्टोरेज सिस्टम और नेट मीटरिंग तकनीक (Net Metering Technology) ।
बैटरी स्टोरेज सिस्टम में दिन में बनी अतिरिक्त बिजली को विशेष बैटरियों में स्टोर कर लिया जाता है। यह सिस्टम उन क्षेत्रों के लिए अत्यंत उपयोगी है जहाँ बिजली ग्रिड की सुविधा नहीं है। दूसरी ओर, नेट मीटरिंग सिस्टम शहरी क्षेत्रों में ज्यादा प्रचलित है। इसमें दिन के समय अतिरिक्त बिजली को ग्रिड में भेज दिया जाता है और उपभोक्ता को इसका क्रेडिट दिया जाता है, जिसे रात के समय उपयोग में लाया जा सकता है।
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अब विज्ञान की नजरें रात में बिजली बनाने की संभावनाओं पर
रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy के क्षेत्र में नई संभावनाओं की खोज जारी है। वैज्ञानिक अब ऐसी तकनीकों को विकसित कर रहे हैं जो रात के समय भी बिजली उत्पादन कर सकें। इन तकनीकों में सबसे महत्वपूर्ण नाम हैं एंटी-सोलर पैनल (Anti-Solar Panel) और थर्मोरैडिएटिव सेल्स (Thermoradiative Cells) ।
क्या होते हैं Anti-Solar Panel?
Anti-Solar Panel एक नवीनतम तकनीक है जो पारंपरिक सोलर पैनलों के बिल्कुल विपरीत सिद्धांत पर काम करता है। जब सूर्य अस्त हो जाता है, तब पृथ्वी की सतह से इंफ्रारेड रेडिएशन (Infrared Radiation) अंतरिक्ष में फैलता है। एंटी-सोलर पैनल इस ऊर्जा को कैप्चर कर विद्युत ऊर्जा में बदलते हैं। हालांकि इनकी दक्षता फिलहाल पारंपरिक पैनलों के मुकाबले कम है, लेकिन तकनीकी सुधार के साथ आने वाले वर्षों में यह तकनीक पूरी तरह व्यावसायिक रूप से उपयोगी बन सकती है।
थर्मोरैडिएटिव सेल्स कैसे करते हैं काम?
थर्मोरैडिएटिव सेल्स भी एक अनोखी तकनीक है जो ऊर्जा के एक विशेष सिद्धांत पर आधारित है। जब कोई गर्म वस्तु ठंडी जगह की ओर ऊष्मा छोड़ती है, तब इस ऊर्जा को इलेक्ट्रिसिटी में बदला जा सकता है। रात के समय पृथ्वी की सतह अंतरिक्ष में ताप ऊर्जा छोड़ती है और यही ऊर्जा थर्मोरैडिएटिव सेल्स के लिए कच्चे माल की तरह काम करती है। इस तकनीक को अभी और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में रिसर्च तेजी से चल रही है।
भारत में इस तकनीक की प्रासंगिकता और भविष्य
भारत एक ऐसा देश है जहाँ वर्ष भर धूप की भरपूर उपलब्धता है, लेकिन फिर भी कई ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में बिजली की अनुपलब्धता एक बड़ी समस्या है। ऐसे में अगर एंटी-सोलर पैनल और थर्मोरैडिएटिव सेल्स जैसी तकनीकों को सस्ता और टिकाऊ बनाया जा सके, तो यह ग्रामीण भारत के लिए Gamechanger साबित हो सकता है।
भारत सरकार पहले से ही नेशनल सोलर मिशन के तहत करोड़ों घरों को सोलर पावर से जोड़ने की दिशा में काम कर रही है। अगर इस मिशन के अंतर्गत इन नई तकनीकों को भी शामिल किया जाए, तो देश में रिन्यूएबल एनर्जी का परिदृश्य पूरी तरह बदल सकता है। इससे न सिर्फ 24×7 बिजली की उपलब्धता संभव होगी, बल्कि भारत ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर भी एक बड़ा कदम बढ़ा सकेगा।
अंधेरे में रोशनी की नई उम्मीद
पारंपरिक सोलर पैनल रात में सीधे बिजली नहीं बना सकते, लेकिन बैटरी स्टोरेज और नेट मीटरिंग जैसी तकनीकों से रात की बिजली जरूरतों को अब तक पूरा किया जा रहा है। अब विज्ञान एक कदम और आगे बढ़ चुका है, जहाँ एंटी-सोलर पैनल और थर्मोरैडिएटिव सेल्स जैसी उन्नत तकनीकों के जरिए रात के समय भी बिजली बनाई जा सकती है। यह सिर्फ एक तकनीकी उन्नति नहीं, बल्कि रिन्यूएबल एनर्जी की दिशा में उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है जो ऊर्जा संकट, जलवायु परिवर्तन और टिकाऊ विकास की चुनौती को एक साथ हल कर सकता है।