
चीन में Renewable Energy के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव आया है। देश के ऊर्जा नियामक (Energy Regulator) ने शुक्रवार को घोषणा की कि मार्च 2025 के अंत तक चीन की विंड और सोलर पावर जनरेशन क्षमता (Wind and Solar Power Generation Capacity) 1,482 गीगावाट तक पहुँच गई है, जो पहली बार थर्मल पावर क्षमता (Thermal Power Capacity) से अधिक हो गई है। यह उपलब्धि चीन के तेजी से बढ़ते Renewable Energy विस्तार कार्यक्रम का परिणाम है, जिसने हाल के वर्षों में रिकॉर्ड स्तर पर नई इंस्टॉलेशंस दर्ज की हैं।
चीन ने 2030 तक विंड और सोलर कैपेसिटी को 1,200 गीगावाट तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा था, जिसे उसने छह साल पहले ही 2024 में हासिल कर लिया। अब पर्यावरण कार्यकर्ता बीजिंग से इस लक्ष्य को दोगुना करने की अपील कर रहे हैं ताकि देश तेजी से कार्बन न्यूट्रैलिटी की दिशा में बढ़ सके।
ग्रिड एक्सेस बनी बड़ी चुनौती
हालांकि चीन ने Renewable Energy के उत्पादन में बड़ी छलांग लगाई है, लेकिन ग्रिड एक्सेस (Grid Access) अभी भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। राष्ट्रीय ऊर्जा प्रशासन (National Energy Administration) के अनुसार, विंड और सोलर एनर्जी ने इस वर्ष की पहली तिमाही में कुल विद्युत आपूर्ति का केवल 22.5% हिस्सा प्रदान किया, जबकि कुल इंस्टॉल्ड कैपेसिटी में इनका योगदान आधे से अधिक है।
ग्रिड कंपनियाँ अब भी पारंपरिक थर्मल पावर प्लांट्स द्वारा आपूर्ति की जाने वाली बिजली को प्राथमिकता देती हैं। इस असंतुलन के कारण, नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) से उत्पादित बड़ी मात्रा में बिजली व्यर्थ जा रही है।
घरेलू मांग में तेजी, निर्यात में गिरावट
फ्रांसीसी निवेश समूह नैटिक्सिस (Natixis) के शोधकर्ताओं का कहना है कि वैश्विक स्तर पर चीन के टर्बाइनों और सोलर पैनलों की मांग में गिरावट और बढ़ती संरक्षणवादी नीतियों के चलते चीन ने घरेलू स्तर पर Renewable Energy कैपेसिटी को तेजी से बढ़ाया है।
हालांकि ग्रिड संरचनाएँ अभी इस बढ़ी हुई उत्पादन क्षमता को पूरी तरह से समाहित करने के लिए तैयार नहीं हैं, जिसके चलते बड़ी मात्रा में विंड और सोलर एनर्जी को वेस्टेज का सामना करना पड़ रहा है।
कोयला आधारित ऊर्जा परियोजनाओं का निर्माण जारी
चीन ने कोयला आधारित ऊर्जा (Coal-based Power) पर अपनी निर्भरता कम करने का वादा किया है, लेकिन इसके बावजूद 2024 में उसने 99.5 गीगावाट नई कोयला-आधारित पावर कैपेसिटी के निर्माण की शुरुआत की।
चीन का तर्क है कि नई कोयला परियोजनाएँ बेसलोड (Baseload) सपोर्ट प्रदान करेंगी, ताकि Renewable Energy के इंटरमिटेंट नेचर को बैलेंस किया जा सके। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इन नई कोयला परियोजनाओं के कारण स्वच्छ ऊर्जा के प्रसार में बाधा आ सकती है।
जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों पर खतरा
चीन दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जक है और इसके पास सबसे बड़ा कोयला आधारित पावर प्लांट्स का बेड़ा है। हालांकि चीन ने संयुक्त राष्ट्र के पेरिस समझौते (Paris Agreement) के तहत 2005 के मुकाबले 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन तीव्रता (Carbon Intensity) को 65% तक कम करने का वादा किया है, लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि देश अपने लक्ष्यों से “काफी दूर” है।
एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (Asia Society Policy Institute) के वरिष्ठ फेलो लाउरी मायलिविर्टा (Lauri Myllyvirta) ने संवाददाता डेविड स्टेनवे को बताया कि हाल के वर्षों में धीमी प्रगति के चलते चीन के लिए अपने प्रमुख वादों को पूरा करना चुनौतीपूर्ण होगा।
Dialogue Earth द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नए कोयला प्लांट्स के निर्माण से Renewable Energy को अपनाने में और देरी हो सकती है और यह स्वच्छ ऊर्जा के लिए उपलब्ध अवसरों को “भीड़” सकता है।
चीन ने 2026-2030 के बीच कोयला खपत को कम करने का वादा किया है और 2030 से पहले कार्बन उत्सर्जन को चरम पर पहुँचाने का लक्ष्य रखा है। लेकिन मौजूदा नीतियाँ और परियोजनाएँ इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य की राह में बड़ी चुनौती साबित हो रही हैं।