
सौर ऊर्जा और हाइड्रोजन (Hydrogen) ऊर्जा का संयोजन वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र में एक नया युग शुरू कर सकता है। Renewable Energy के इन दो प्रमुख स्तंभों का मेल न केवल स्वच्छ ऊर्जा समाधान प्रदान करता है, बल्कि यह औद्योगिक, परिवहन और ऊर्जा भंडारण जैसे जटिल क्षेत्रों में भी अहम भूमिका निभा सकता है। मौजूदा ऊर्जा संकट और पर्यावरणीय चुनौतियों को देखते हुए यह संयोजन ऊर्जा आत्मनिर्भरता और सतत विकास की दिशा में एक ठोस कदम साबित हो रहा है।
कैसे सौर ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन मिलकर बना रहे हैं एक स्मार्ट एनर्जी मॉडल
सौर ऊर्जा की सबसे बड़ी चुनौती इसकी अनियमितता है, जो दिन के उजाले और मौसम पर निर्भर करती है। वहीं, हाइड्रोजन ऊर्जा इस समस्या का प्रभावी समाधान प्रस्तुत करती है। सोलर पैनल (Solar Panel) से प्राप्त बिजली का प्रयोग करके जल का इलेक्ट्रोलिसिस किया जाता है, जिससे ग्रीन हाइड्रोजन उत्पन्न होता है। यह हाइड्रोजन एक तरह की ऊर्जा बैटरी के रूप में कार्य करता है, जिसे संग्रहित करके आवश्यकता अनुसार उपयोग किया जा सकता है। यह मॉडल न केवल ऊर्जा की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करता है, बल्कि ऊर्जा को अधिक स्मार्ट और लचीला भी बनाता है।
ऊर्जा भंडारण और ग्रिड की स्थिरता के लिए ग्रीन हाइड्रोजन
ग्रीन हाइड्रोजन का एक प्रमुख उपयोग ऊर्जा भंडारण (Energy Storage) में हो रहा है। जब सौर या पवन ऊर्जा अधिक मात्रा में उत्पन्न होती है और मांग कम होती है, तब उस अतिरिक्त ऊर्जा का उपयोग हाइड्रोजन उत्पादन के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया से उत्पादित हाइड्रोजन को संग्रहित किया जाता है, जिससे ग्रिड की स्थिरता बनी रहती है। अमेरिका के उटाह (Utah) राज्य में बड़े पैमाने पर नमक की गुफाओं में हाइड्रोजन स्टोरेज परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जो इस तकनीक की व्यवहारिकता को दर्शाती हैं।
डिकार्बोनाइजेशन की चुनौती और हाइड्रोजन का हल
औद्योगिक क्षेत्रों में जैसे इस्पात, सीमेंट और रसायन उद्योग, उच्च तापमान और भारी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इन्हें पारंपरिक बिजली से संचालित करना न केवल महंगा बल्कि तकनीकी रूप से कठिन होता है। ग्रीन हाइड्रोजन यहां एक समाधान प्रस्तुत करता है। यह स्वच्छ ईंधन (Clean Fuel) के रूप में कार्य करता है, जिससे इन क्षेत्रों को कार्बन-मुक्त (Decarbonized) किया जा सकता है। इस तरह, हाइड्रोजन न केवल बिजली उत्पादन बल्कि औद्योगिक प्रक्रियाओं में भी परिवर्तन ला रहा है।
भारत की रणनीति और वैश्विक निवेश की लहर
भारत ने 2030 तक 5 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है। यह कदम वैश्विक ऊर्जा बाजार में भारत की मजबूत उपस्थिति को दर्शाता है। हाल ही में आंध्र प्रदेश में ₹10,000 करोड़ की लागत से एक ग्रीन हाइड्रोजन और अमोनिया संयंत्र की स्थापना की जा रही है, जो सौर, पवन और जलविद्युत (Hydropower) का सम्मिलित उपयोग करेगा। यह परियोजना केवल ऊर्जा उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह रोजगार सृजन, तकनीकी नवाचार और स्थानीय आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करेगी।
लागत में गिरावट से सुलभ हो रहा है ग्रीन हाइड्रोजन
सौर पैनल और इलेक्ट्रोलाइज़र (Electrolyzer) की कीमतों में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। इससे ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन पहले की तुलना में काफी सस्ता हो गया है। International Energy Agency की रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले वर्षों में यह प्रवृत्ति और भी तीव्र हो सकती है, जिससे ग्रीन हाइड्रोजन पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों (Fossil Fuels) के साथ प्रतिस्पर्धा करने योग्य बन जाएगा। इससे न केवल ऊर्जा की लागत कम होगी, बल्कि प्रदूषण भी घटेगा।
भविष्य की संभावनाएं और नीति निर्माण
जैसे-जैसे दुनिया Net Zero के लक्ष्य की ओर बढ़ रही है, सौर और हाइड्रोजन ऊर्जा की प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है। भारत जैसे देश, जहाँ सूर्य की रोशनी की प्रचुरता है, वहाँ Renewable Energy आधारित हाइड्रोजन उत्पादन का व्यापक स्कोप है। नीति-निर्माताओं को चाहिए कि वे वित्तीय प्रोत्साहन, अनुसंधान एवं विकास और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा दें ताकि यह तकनीक जमीनी स्तर तक पहुंच सके।