
Perovskites, एक ऐसा खनिज जिसमें ABX3 संरचना होती है और जो CaTiO3 जैसी दिखती है, हाल के वर्षों में रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy के क्षेत्र में खासा आकर्षण का केंद्र बना है। खासकर Mixed Halide Perovskites (MHPs), जिनमें आयोडीन या ब्रोमीन जैसे हैलाइड अणु होते हैं, ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए अत्यधिक उपयोगी माने जा रहे हैं। इनकी खासियत है कि इनमें अलग-अलग हैलोजन तत्वों को मिलाकर प्रकाश के अवशोषण और उत्सर्जन की रंग सीमा को बारीकी से नियंत्रित किया जा सकता है। इसीलिए ये हाई एफिशिएंसी टैंडम सोलर सेल्स और जीवंत LED डिवाइसों के लिए आदर्श माने जाते हैं।
समस्या: लगातार रोशनी पड़ने पर टूटती है रचना
हालांकि, MHPs की यह खासियत उनके सबसे बड़े दोष के साथ आती है। जब इन सामग्रियों को लगातार प्रकाश या विद्युत धारा के संपर्क में रखा जाता है, तो उनके भीतर मौजूद विभिन्न हैलोजन तत्व अलग होने लगते हैं — ठीक वैसे ही जैसे तेल और पानी। इस प्रक्रिया को फेज सेग्रेगेशन कहते हैं, जो आयोडीन-समृद्ध और ब्रोमीन-समृद्ध क्षेत्रों का निर्माण करती है। इससे परवस्काइट की स्थिरता और प्रदर्शन में गिरावट आती है, जो इसकी उपयोगिता को सीमित करता है।
समाधान: IIT खड़गपुर की नई खोज
अब, IIT Kharagpur, Polish Center for Technology Development और North Carolina State University के शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने इस चुनौती का एक प्रभावशाली समाधान खोजा है। उन्होंने एक विशिष्ट MHP कंपाउंड — Cesium Lead Iodide Bromide (CsPbI₁․₅Br₁․₅) — पर काम किया, जो रोशनी पड़ने पर अत्यधिक अस्थिर हो जाता है।
टीम ने इस कंपाउंड की फेज सेग्रेगेशन को Photoluminescence (PL) Spectroscopy तकनीक से लाइव ट्रैक किया। जब इस पर 325 नैनोमीटर की UV लेजर डाली गई, तो इसका तेज, एकल उत्सर्जन संकेत तुरंत चौड़ा हो गया और दो अलग-अलग पीक में विभाजित हो गया। यह दर्शाता है कि क्रिस्टल संरचना में आयोडीन और ब्रोमीन अलग-अलग क्षेत्रों में बंट रहे थे — जिनमें एक क्षेत्र से हरा और दूसरे से लाल प्रकाश निकल रहा था।
Molecular Shield: DSH के चमत्कारी प्रभाव
शोधकर्ताओं ने इसके समाधान के रूप में 1-dodecanethiol (DSH) नामक एक केमिकल का उपयोग किया, जो एक प्रकार का ligand होता है। DSH में मौजूद सल्फर परमाणु, परवस्काइट के लीड परमाणुओं से मजबूती से जुड़ जाते हैं, जिससे यह एक नैनोस्केल की सुरक्षा परत की तरह काम करता है।
जब DSH से उपचारित फिल्म पर वही तेज UV लेजर डाली गई, तो PL स्पेक्ट्रम में लगभग कोई बदलाव नहीं हुआ — यह लगभग चार मिनट तक स्थिर रहा। जबकि बिना उपचार वाली फिल्म तुरंत अस्थिर हो गई थी। वीडियो रिकॉर्डिंग में स्पष्ट रूप से देखा गया कि DSH-ट्रीटेड सैंपल में कोई रंग विभाजन नहीं हुआ और यह लगातार नारंगी प्रकाश उत्सर्जित करता रहा।
क्रिस्टल डिफेक्ट्स और DSH का समाधान
Perovskites में अक्सर halide vacancies होते हैं — यानी आयोडीन या ब्रोमीन अणुओं की अनुपस्थिति। ये रिक्त स्थान आयनों को इधर-उधर घूमने के लिए रास्ता देते हैं, जो कि फेज सेग्रेगेशन की मुख्य वजह बनते हैं। DSH इन रिक्त स्थानों को “पैच” की तरह भर देता है, जिससे आयन प्रवाह की संभावना बहुत कम हो जाती है।
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शोधकर्ताओं ने Density Functional Theory (DFT) पर आधारित कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग का प्रयोग कर यह भी दिखाया कि DSH इन रिक्त स्थानों से जुड़ने के लिए ऊर्जा की दृष्टि से लाभकारी है। यह बाइंडिंग इलेक्ट्रॉनिक संरचना को इस तरह बदलती है कि आयन के हिलने-डुलने के लिए आवश्यक ऊर्जा बाधा बढ़ जाती है — नतीजतन, संरचना अधिक स्थिर हो जाती है।
आगे की राह: स्थायित्व की ओर एक बड़ा कदम
जहां पहले के शोध परवस्काइट की संरचना में परिवर्तन जैसे जटिल समाधान खोज रहे थे, वहीं यह स्टडी एक सरल और सस्ता पोस्ट-ट्रीटमेंट उपाय प्रदान करती है। DSH के जरिए MHPs की स्थिरता को तेज़ प्रकाश में भी काफी समय तक बरकरार रखा जा सकता है। हालांकि, चार मिनट के बाद थोड़ी बहुत सेग्रेगेशन दोबारा शुरू हुई, यह संकेत देता है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है — लेकिन निश्चित रूप से काफी हद तक नियंत्रित हो गई है।
अगला कदम यह होगा कि DSH ट्रीटमेंट को वास्तविक सोलर पैनल या LED जैसे व्यावहारिक परिस्थितियों में आजमाया जाए। यदि इसमें सफलता मिलती है, तो यह तकनीक MHPs को बाजार में उपयोग के लिए तैयार करने में क्रांतिकारी साबित हो सकती है।