
सूरत स्थित सरदार वल्लभभाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (SVNIT) की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जिग्नासा गोहेल को हाल ही में एक कम लागत वाली हाइब्रिड सोलर सेल तकनीक के लिए पेटेंट प्राप्त हुआ है। यह पेटेंट ‘स्टेबल हाइब्रिड पैसिवेटेड पेरोव्स्काइट सोलर सेल्स (PSC) एंड अ प्रोसेस टू फेब्रिकेट देम’ के नाम से जारी किया गया है। यह खोज रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है, जो आने वाले वर्षों में सोलर टेक्नोलॉजी की लागत में क्रांतिकारी गिरावट ला सकती है।
सोलर पैनल में अब नहीं लगेगा महंगा सिलिकॉन और सिल्वर
वर्तमान में अधिकतर सोलर पैनल्स में सिलिकॉन और सिल्वर जैसे महंगे मैटेरियल का उपयोग किया जाता है, जिससे उनकी लागत काफी अधिक होती है। लेकिन SVNIT द्वारा विकसित इस तीसरी पीढ़ी की सोलर सेल टेक्नोलॉजी में ऐसे पदार्थों का इस्तेमाल किया गया है जो कम लागत वाले, आसानी से उपलब्ध और अधिकांशतः कचरे से प्राप्त किए गए हैं।
डॉ. गोहेल और एमटेक स्टूडेंट निशांत राणा ने एक साल तक इस तकनीक पर काम किया। इस रिसर्च का उद्देश्य एक ऐसी सोलर सेल बनाना था जो पारंपरिक तकनीकों की तुलना में अधिक सस्ती, टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल हो।
75% तक सस्ती हो सकती है सोलर एनर्जी
टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में डॉ. गोहेल ने बताया, “यह सोलर सेल टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में एक बड़ा ब्रेकथ्रू है। हमने जो अगली पीढ़ी की सोलर सेल विकसित की है, वह पारंपरिक तकनीकों की तुलना में लगभग 75% कम लागत में बनाई जा सकती है। इसका कारण है इसमें उपयोग किए गए ऑर्गेनिक और आसानी से उपलब्ध पदार्थ।”
इस नई तकनीक को लेकर कई प्राइवेट कंपनियों ने भी संपर्क किया है, जो अपने सोलर प्रोडक्शन की लागत को कम करने के इच्छुक हैं। ऐसे में इस पेटेंटेड तकनीक का इंडस्ट्री लेवल पर उपयोग जल्द शुरू हो सकता है।
रिसर्च का फोकस रहा ऑर्गेनिक सोलर सेल्स पर
डॉ. जिग्नासा गोहेल पिछले 12 वर्षों से ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज़ और सोलर सेल टेक्नोलॉजी पर काम कर रही हैं। उनके नेतृत्व में हुए इस शोध में विशेष रूप से हाइब्रिड पेरोव्स्काइट्स का उपयोग किया गया, जो एक खास क्रिस्टल संरचना वाले पदार्थ हैं। ये न केवल प्राकृतिक रूप से प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, बल्कि इन्हें रिसाइकल्ड मटीरियल से भी तैयार किया जा सकता है।
डॉ. गोहेल की टीम ने प्रिंटर कार्ट्रिज से निकलने वाले कार्बन वेस्ट का उपयोग कर सोलर सेल तैयार किए, जिससे न केवल लागत घटी बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल साबित हुआ। इस रिसर्च के माध्यम से यह साबित हुआ कि सोलर एनर्जी उत्पादन की प्रक्रिया को अधिक सस्टेनेबल और अफोर्डेबल बनाया जा सकता है।
रिन्यूएबल एनर्जी में आत्मनिर्भरता की ओर कदम
भारत में बढ़ती ऊर्जा मांग के मद्देनज़र, इस तरह की इनोवेटिव खोजें देश को रिन्यूएबल एनर्जी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं। प्रधानमंत्री की ‘आत्मनिर्भर भारत’ योजना के तहत देश भर में सोलर एनर्जी को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं, और SVNIT की यह उपलब्धि इसी दिशा में एक सार्थक पहल है।
कम लागत, हाई एफिशिएंसी और पर्यावरण अनुकूलता की इस त्रिवेणी के साथ, यह तकनीक ग्रामीण इलाकों और रिमोट क्षेत्रों में भी बिजली पहुंचाने का जरिया बन सकती है, जहां आज भी ग्रिड कनेक्टिविटी एक बड़ी चुनौती है।
आगे क्या?
इस पेटेंट के बाद अब अगला कदम इसके व्यावसायीकरण की दिशा में होगा। डॉ. गोहेल ने बताया कि उनकी टीम पहले से ही कुछ स्टार्टअप्स और इंडस्ट्री प्लेयर्स के साथ बातचीत कर रही है ताकि इस तकनीक को बड़े पैमाने पर लागू किया जा सके। यदि सब कुछ योजना के अनुसार होता है, तो आने वाले वर्षों में भारत में सोलर पैनल की कीमतों में भारी गिरावट देखी जा सकती है, जिससे आम नागरिक भी आसानी से इसका लाभ उठा सकेंगे।