
सोलर पैनल निर्माण के क्षेत्र में अमेरिका और चीन दो सबसे बड़े और प्रभावशाली देश हैं। आज जब Renewable Energy की ओर दुनिया तेजी से बढ़ रही है, तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि अमेरिका बनाम चीन: कौन बनाता है बेहतर सोलर पैनल? यह प्रश्न न केवल वैश्विक स्तर पर बल्कि भारत जैसे विकासशील देशों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो अब सोलर एनर्जी पर अपनी निर्भरता बढ़ा रहे हैं। इस लेख में हम इन दोनों देशों के सोलर पैनलों की गुणवत्ता, लागत और भारत के सोलर बाजार पर उनके प्रभाव का विश्लेषण करेंगे।
गुणवत्ता और प्रदर्शन: अमेरिकी पैनल क्यों माने जाते हैं बेहतर
अमेरिका में निर्मित सोलर पैनल अपनी उच्च गुणवत्ता और बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रसिद्ध हैं। अमेरिकी कंपनियों का फोकस लंबे समय तक चलने वाले, उच्च दक्षता वाले मॉड्यूल्स पर होता है। ये पैनल समान धूप में चीनी पैनलों की तुलना में अधिक बिजली उत्पन्न करते हैं। साथ ही, अमेरिका में गुणवत्ता नियंत्रण के मानक बेहद सख्त हैं और पर्यावरणीय मानकों का भी सख्ती से पालन किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सोलर पैनल न केवल ऊर्जा उत्पादक हों, बल्कि टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल भी हों।
वहीं दूसरी ओर, चीन विश्व का सबसे बड़ा सोलर पैनल निर्माता है, जो वैश्विक सोलर आपूर्ति का लगभग 80% हिस्सा प्रदान करता है। हालांकि, चीनी सोलर पैनलों की गुणवत्ता में काफी विविधता होती है। कुछ प्रतिष्ठित चीनी ब्रांड्स जैसे कि Jinko, Trina और LONGi उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद प्रदान करते हैं, लेकिन कई छोटे निर्माता सस्ते और निम्न गुणवत्ता वाले पैनल बनाते हैं, जिनमें गुणवत्ता नियंत्रण का अभाव देखा गया है।
लागत और उपलब्धता: चीनी पैनल क्यों हैं लोकप्रिय
जहां अमेरिकी सोलर पैनल गुणवत्ता में अव्वल हैं, वहीं चीनी पैनलों की सबसे बड़ी ताकत उनकी लागत में छिपी है। चीनी पैनल आमतौर पर अमेरिकी पैनलों की तुलना में काफी सस्ते होते हैं। यह कीमत में अंतर खासकर विकासशील देशों के लिए उन्हें आकर्षक बनाता है, जो सीमित बजट में सोलर प्रोजेक्ट्स को साकार करना चाहते हैं।
हालांकि अमेरिकी पैनल्स में कई बार आयातित घटकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे उनकी लागत और बढ़ जाती है। इसके बावजूद, अमेरिकी पैनल्स की विश्वसनीयता और दीर्घकालिक प्रदर्शन उन्हें प्रीमियम कैटेगरी में बनाए रखते हैं।
भारत के सोलर बाजार पर वैश्विक ताकतों का असर
भारत, जो दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते सोलर बाजारों में से एक है, अपने सोलर उपकरणों के लिए लगभग 80% आयात पर निर्भर करता है, और इनमें से अधिकांश आयात चीन से होते हैं। इस निर्भरता ने भारत के घरेलू सोलर निर्माताओं को गहरी प्रतिस्पर्धा में डाल दिया है, जहां वे कीमत और गुणवत्ता दोनों में पिछड़ते दिखते हैं।
चीनी पैनलों की सस्ती कीमतों के चलते भारत के कई प्रोजेक्ट्स चीनी आपूर्तिकर्ताओं पर ही निर्भर करते हैं। नतीजतन, भारतीय निर्माताओं को सरकारी सहायता की आवश्यकता है ताकि वे इस प्रतियोगिता में टिक सकें।
घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की सरकारी रणनीति
भारत सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए कई योजनाएं लागू की हैं, जैसे कि प्रधानमंत्री कुसुम योजना और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना। इन पहलों का उद्देश्य घरेलू सोलर मैन्युफैक्चरिंग को मजबूती देना और आयात पर निर्भरता को कम करना है।
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हालांकि, CRISIL की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय सोलर सेल्स की लागत अभी भी चीनी सोलर सेल्स की तुलना में 1.5 से 2 गुना अधिक है। यह मूल्य अंतर सोलर प्रोजेक्ट्स की कुल लागत को प्रभावित करता है, जिससे इनका क्रियान्वयन धीमा हो सकता है। फिर भी, दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता की दिशा में यह एक आवश्यक निवेश माना जा सकता है।
वैश्विक बाजार में भारत के लिए खुलते अवसर
चीन पर अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के चलते भारतीय सोलर कंपनियों को अमेरिकी बाजार में अपनी पहुंच बढ़ाने का अवसर मिला है। 2023 में भारत के सोलर उत्पादों का निर्यात 227% की उल्लेखनीय वृद्धि के साथ $1.8 बिलियन तक पहुंच गया। आश्चर्य की बात यह है कि इस निर्यात का 97% हिस्सा अमेरिका को गया।
इससे स्पष्ट होता है कि वैश्विक व्यापार नीति भारत के लिए नए दरवाजे खोल सकती है, बशर्ते भारत गुणवत्ता, लागत और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन में सुधार लाए।