ऑस्ट्रेलिया और UK की सोलर पॉलिसी से भारत क्या सीख सकता है? जानें ग्लोबल अनुभव का विश्लेषण

Rooftop Solar, Smart Grid से लेकर कोयले के विकल्प तक ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम की नीतियाँ भारत को दिखा रही हैं सौर ऊर्जा विकास का नया रास्ता। पढ़िए कैसे भारत इन वैश्विक मॉडलों से सीखकर अपनी नीति और भविष्य दोनों को बदल सकता है।

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Written by Rohit Kumar

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ऑस्ट्रेलिया और UK की सोलर पॉलिसी से भारत क्या सीख सकता है? जानें ग्लोबल अनुभव का विश्लेषण
ऑस्ट्रेलिया और UK की सोलर पॉलिसी से भारत क्या सीख सकता है? जानें ग्लोबल अनुभव का विश्लेषण

भारत Renewable Energy क्षेत्र में तेज़ी से प्रगति कर रहा है, खासकर सौर ऊर्जा के क्षेत्र में। हालाँकि, वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए यह स्पष्ट होता है कि भारत अपनी सौर ऊर्जा रणनीतियों को और अधिक प्रभावशाली तथा समावेशी बना सकता है यदि वह ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम (UK) जैसे देशों के अनुभवों से सबक ले। दोनों देशों ने न केवल तकनीकी और नीति स्तर पर उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं, बल्कि सामाजिक समावेश और विकेन्द्रीकरण को भी प्राथमिकता दी है। भारत के लिए यह समय है कि वह इन अनुभवों का गंभीर विश्लेषण कर अपनी रणनीति को सशक्त बनाए।

ऑस्ट्रेलिया: रूफटॉप सोलर और विकेन्द्रीकृत ऊर्जा प्रबंधन में अग्रणी

ऑस्ट्रेलिया में Rooftop Solar का जिस स्तर पर विस्तार हुआ है, वह वैश्विक स्तर पर एक मिसाल है। 3.7 मिलियन से अधिक घरों और छोटे व्यवसायों में Rooftop Solar System स्थापित हैं, जो देश को प्रति व्यक्ति सबसे अधिक रूफटॉप सोलर अपनाने वाला राष्ट्र बनाते हैं। यह सफलता केवल सस्ती तकनीक के कारण नहीं, बल्कि नीति समर्थन और केंद्र सरकार द्वारा दी गई अग्रिम सब्सिडी के चलते संभव हुई।

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साथ ही, ऑस्ट्रेलिया ने Distributed Energy Resources (DER) जैसे कि बैटरियों, इलेक्ट्रिक वाहनों और स्मार्ट ग्रिड तकनीक को एकीकृत करके ऊर्जा तंत्र को अधिक लचीला और प्रभावशाली बना दिया है। इससे देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों दोनों में ऊर्जा की विश्वसनीयता और पहुंच बढ़ी है। यह मॉडल भारत के लिए खासकर ग्रामीण इलाकों में अत्यंत उपयोगी हो सकता है, जहाँ पारंपरिक ग्रिड विस्तार आर्थिक और भौगोलिक कारणों से चुनौतीपूर्ण है।

हालाँकि, ऑस्ट्रेलिया की Renewable Energy नीतियों में कुछ कमजोरियाँ भी हैं। देश ने 2030 तक 82% Renewable Energy हासिल करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन राज्यों के बीच नीति समन्वय की कमी और ग्रिड कनेक्शन में देरी इसके लिए बड़ी बाधा बन रही है। भारत को इस अनुभव से सीखकर अपनी केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करना चाहिए, ताकि नीति कार्यान्वयन में सुगमता बनी रहे।

यूनाइटेड किंगडम: स्थिर नीतियाँ और सामाजिक समावेश का सशक्त उदाहरण

UK की सौर ऊर्जा नीति की सबसे बड़ी ताकत है – नीति में स्थिरता और समय के साथ उसके उन्नयन की क्षमता। 2010 में शुरू की गई Feed-in Tariff (FIT) योजना ने घरेलू और छोटे व्यवसायिक उपभोक्ताओं को सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए आकर्षक वित्तीय प्रोत्साहन दिए। इसके बाद 2019 में इसे Smart Export Guarantee (SEG) से प्रतिस्थापित किया गया, जो उपभोक्ताओं को ग्रिड में अतिरिक्त ऊर्जा आपूर्ति के लिए भुगतान करता है।

UK ने कोयले पर अपनी निर्भरता को समाप्त करते हुए 2024 में अपना अंतिम कोयला आधारित बिजली संयंत्र बंद कर दिया। इस बदलाव को सामाजिक रूप से स्वीकार्य बनाने के लिए सरकार ने प्रभावित समुदायों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और वैकल्पिक रोजगार के अवसर प्रदान किए। यह दृष्टिकोण भारत के उन राज्यों के लिए अत्यंत उपयोगी है जहाँ कोयला आधारित उद्योग और रोजगार का बोलबाला है। सामाजिक समावेश के ऐसे उपाय Just Transition के सिद्धांतों के अनुरूप हैं।

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इसके अलावा, “Merton Rule” नामक एक नीति ने UK में ऊर्जा दक्षता के मानकों को और मज़बूत किया। इसके तहत 1,000 वर्ग मीटर से बड़े नए वाणिज्यिक भवनों को अनिवार्य रूप से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का कम से कम 10% ऑन-साइट Renewable Energy से उत्पन्न करना होता है। यह नीति भारत जैसे देश में शहरी नियोजन और ग्रीन बिल्डिंग मानकों को सुधारने के लिए एक बेहतरीन उदाहरण हो सकती है।

भारत के लिए आगे की राह: नीतिगत समन्वय, विकेन्द्रीकरण और सामाजिक समावेश

भारत को सौर ऊर्जा के क्षेत्र में प्रभावी बनने के लिए कई मोर्चों पर रणनीतिक बदलाव की आवश्यकता है। सबसे पहले, देश को ऑस्ट्रेलिया की तरह विकेन्द्रीकृत ऊर्जा संसाधनों जैसे Rooftop Solar, बैटरी स्टोरेज और स्मार्ट ग्रिड को अपनाने की दिशा में तेज़ी लानी चाहिए। इससे न केवल ग्रामीण क्षेत्रों को सशक्त किया जा सकेगा, बल्कि ग्रिड पर दबाव भी कम होगा।

दूसरे, नीति समन्वय को मजबूत करने और निवेश की गति को बढ़ाने की आवश्यकता है। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय के अभाव से अक्सर ग्रिड कनेक्शन में देरी और निवेश में अनिश्चितता पैदा होती है। UK और ऑस्ट्रेलिया की चुनौतियों से सबक लेते हुए भारत को भी एक स्पष्ट, दीर्घकालिक और निवेशक-अनुकूल नीति ढांचा तैयार करना चाहिए।

तीसरे, कोयला-आधारित क्षेत्रों में सामाजिक समावेश को सुनिश्चित करने के लिए पुनः प्रशिक्षण और वैकल्पिक रोजगार योजनाएँ अत्यंत आवश्यक हैं। UK का मॉडल दिखाता है कि आर्थिक बदलाव को सामाजिक समावेश के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है।

अंत में, भवन निर्माण में ऊर्जा दक्षता और Renewable Energy को प्रोत्साहित करने के लिए नियमों को सख्ती से लागू करना होगा। “Merton Rule” जैसी नीति भारत में भी शहरी क्षेत्र में सौर ऊर्जा को गति दे सकती है।

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Rohit Kumar
रोहित कुमार सोलर एनर्जी और रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में अनुभवी कंटेंट राइटर हैं, जिन्हें इस क्षेत्र में 7 वर्षों का गहन अनुभव है। उन्होंने सोलर पैनल इंस्टॉलेशन, सौर ऊर्जा की अर्थव्यवस्था, सरकारी योजनाओं, और सौर ऊर्जा नवीनतम तकनीकी रुझानों पर शोधपूर्ण और सरल लेखन किया है। उनका उद्देश्य सोलर एनर्जी के प्रति जागरूकता बढ़ाना और पाठकों को ऊर्जा क्षेत्र के महत्वपूर्ण पहलुओं से परिचित कराना है। अपने लेखन कौशल और समर्पण के कारण, वे सोलर एनर्जी से जुड़े विषयों पर एक विश्वसनीय लेखक हैं।

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